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महावीर गुप्ता। प्रदीप गिल। डॉ. कृष्ण मिड्ढा।
– फोटो : संवाद
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जींद को प्रदेश की राजनीतिक राजधानी माना जाता है। यहां सियासी गतिविधियां माैसम की तरह चढ़ती हैं। जींद को बांगर की धरती का वो हिस्सा भी माना जाता है जहां राजनीति से लेकर बड़े आंदोलन तक का देश साक्षी रहा है। चाहे किसान आंदोलन हो या चौटाला सरकार में बिजली बिल माफी का आंदोलन, जींद ने नेतृत्व किया है और यहां के लोगों ने हमेशा मुखिया की भूमिका निभाई है। जींद को राजनीति का चौराहा भी कहा जाता है।
चाहे राष्ट्रीय पार्टी हो या क्षेत्रीय दल, सभी बांगर की धरती पर रैली कर राजनीति में सफलता की राह खाेजते हैं। यहां भाजपा अपने विकास के एजेंडे काे मजबूती से पकड़े है तो कांग्रेस छोटे दलों के वोट काटने की चिंता से परेशान है। राजनीति का गढ़ और आंदोलन की धुरी कहे जाने वाला कंडेला गांव भी यहीं है जो कि किसान आंदोलन का कभी मुख्य रणनीतिक केंद्र हुआ करता था।
जींद से 8 किलोमीटर दूर स्थित कंडेला गांव में सर्वजातीय कंडेला खाप के प्रधान व सर्वजातीय खाप पंचायत के राष्ट्रीय संयोजक टेकराम कंडेला बताते हैं कि ओमप्रकाश चौटाला की सरकार में बिजली बिल माफी को लेकर हुए आंदोलन का केंद्र कंडेला गांव ही था।
खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चाैटाला यहां से निकलने की जगह अपना रास्ता बदल लेते थे। ओमप्रकाश चौटाला 2000 में बिजली के बिल माफी का नारा देकर सत्ता में आए थे, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार बिजली के बिल माफ करने की जगह उल्टा भरने के लिए दबाव बनाने लगी। इसके चलते आंदोलन शुरू किया।
कंडेला गांव आंदोलन का केंद्र था। सरकार ने कंडेला सहित पांच गांवों की मुख्य लाइन ही पावर हाउस से कटवा दी। लोगों ने सड़क जाम कर दिया। इसके बाद कंडेला में फायरिंग हुई, फिर नगूरां और गुलकनी गांव में फायरिंग हुई। इसमें आठ किसानों की मौत हो गई तब आंदोलन भड़का।
किसानों ने कई अधिकारियों को बंधक बनाया था। इसके चलते दो महीने तक कंडेला गांव में जींद-चंडीगढ़ मार्ग बंद रहा। इसके बाद से ही कंडेला गांव को आंदोलन के प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा। टेकराम कंडेला कहते हैं कि भाजपा ने मुझे टिकट का आश्वासन दिया, लेकिन टिकट नहीं दिया फिर भी कंडेला गांव के लोग सहयोग करेंगे। अंदर गांव में जाने पर चौपाल में बैठे पालेराम कहते हैं कि सब वोट कांग्रेस का है। आंदोलन के समय भाजपा कहां होती है। कांग्रेस ने कंधे से कंधा मिलाकर सभी आंदोलन में साथ दिया। कांग्रेस के कारण ही कृषि कानून पर सरकार को उल्टे पांव फैसला लेना पड़ा, तब किसानों की जीत इसी आंदोलन की वजह से हुई थी और अब हम आंदोलन के अगुआकारों को भूल जाएं। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी को लेकर पालेराम के मन में टीस जरूर है। यहां कांग्रेस की टिकट पर पूर्व विधायक मांगेराम गुप्ता के बेटे महावीर गुप्ता प्रत्याशी हैं।
पालेराम का जोर निर्दलीय प्रत्याशी प्रदीप गिल की ओर ज्यादा था, साथ बैठे गिरिवर वाल्मीकि बोले- कांग्रेस पार्टी तो ठीक है, लेकिन प्रत्याशी गड़बड़ उतार दिया। किसी की सुनता नहीं, मिलता भी अजीब तरीके से है। अभी ये हाल है तो विधायक बनने के बाद तो चक्कर कटवाएगा। पार्टी को टिकट चुनने में गलती हुई। वैसे आपको बता दें कि यहां सबका वोट कांग्रेस को ही जाएगा, वो टेकराम कंडेला ने जरूर टिकट के चक्कर में भाजपा जाॅइन कर ली। अब वही कुछ अपना वोट भाजपा को डलवा दें तो वही बहुत है। यहां दयानंद भी सबकी हां में हां मिलाते रहे। ग्रामीण रणधीर सिंह बताते हैं कि यहां माहौल भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय प्रदीप गिल के बीच बना हुआ है। कांग्रेस का प्रत्याशी कमजोर है, लेकिन भाजपा जीतेगी। वे समीकरण भी रखते हैं कि कांग्रेस के बागी प्रदीप गिल व महावीर गुप्ता के वोट आपस में बंट जाएंगे। सब अपने को किसानों का रहनुमा बता रहे हैं। सब आपस में लड़ेंगे और इसका फायदा भाजपा उठाएगी। ये तीनाें जितनी मजबूती से लड़ेंगे, उतना भाजपा मजबूत होगी।
जींद की रियासत भी राजनीतिक संग्राम में पीछे नहीं है। हालांकि जींद रियासत का राजनीति में सीधा हस्तक्षेप नहीं है, लेकिन रियासत का वजूद आज भी है। राजा का तालाब स्थित जींद के राजा का जो महल (घर) है, वहां आज भी दो झंडे (तिरंगा और जींद रियासत) लगे हैं। रानी इंद्रजीत काैर कहती हैं कि कांग्रेस अगर प्रदीप गिल को टिकट देती तो बेहतर रहता। वो लोकल का है और मेेहनत भी बड़ी कर रहा है। कांग्रेस के गढ़ में इस बार भी भाजपा का पलड़ा भारी लग रहा है। वहीं, जयंती देवी मंदिर में मिले युवा बलवान बताते हैं कि रैलियों का गढ़, लेकिन रोजगार के नाम पर यहां कोई उद्योग धंधा या फिर कोई एकाध बड़ी कंपनी भी नहीं है। युवाओं को सबसे ज्यादा रोजगार की चिंता है। पुराने लोग आज भी पुरानी बात लिए बैठे हैं। हमें आज अच्छी सड़क चाहिए। 24 घंटे बिजली चाहिए। जींद में क्षि विश्वविद्यालय चाहिए। इसकी बात हो नहीं रही, बस राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं। विकास की उम्मीद जिस पार्टी में दिखेगी, मेरा वोट वहीं जाएगा।

अब तक 14 चुनाव हुए, छह बार कांग्रेस जीती
जींद विधानसभा क्षेत्र में 36 गांव आते हैं, लेकिन ग्रामीण वोटरों की संख्या शहरी मतदाताओं से कम है। अब तक 14 विधानसभा चुनाव हुए हैं। लेकिन, सिर्फ एक बार ही यहां से जाट चेहरे को जीत नसीब हुई है। 14 में से 11 बार शहरी क्षेत्र के प्रत्याशियों का दबदबा रहा है। जींद विधानसभा क्षेत्र का पहला चुनाव 1967 में हुआ था। 2000 और 2005 में लगातार दो बार कांग्रेस के टिकट पर मांगेराम गुप्ता विधायक बने। इस समय इन्हीं के बेटे महावीर गुप्ता कांग्रेस से प्रत्याशी हैं। 2009 और 2014 में लगातार दो बार इनेलो के टिकट पर पंजाबी समाज से डॉ. हरिचंद मिड्ढा विधायक चुने गए। साल 2018 में विधायक डॉ. हरिचंद मिड्ढा का निधन हो गया। इस पर 2019 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ। इसमें भाजपा के टिकट पर डॉ. हरिचंद मिड्ढा के बेटे डॉ. कृष्ण मिड्ढा विधायक बने। साल 2019 के चुनावों में भी डॉ. कृष्ण मिड्ढा विधायक चुने गए। इस बार भी भाजपा प्रत्याशी हैं। वहीं कांग्रेस से टिकट न मिलने पर बागी चुनाव लड़ रहे गिल जाट समुदाय से हैं। कांग्रेस के परंपरागत वोट में सेंधमारी के साथ जाट मतदाताओं को भी आकर्षित करेंगे।
डॉ. कृष्णलाल मिड्ढा – भाजपा प्रत्याशी
डॉ. कृष्णलाल मिड्ढा को उम्मीद है कि लोग उनको उनके पिछले कार्यकाल में करवाए गए विकास कार्यों के आधार पर वोट देंगे। डॉ. मिड्ढा अपने विकास कार्यों को गिना रहे हैं, लेकिन विपक्ष इस बात को सिरे से नकार रहा है। डॉ. मिड्ढा का कहना है कि उन्होंने जींद शहर में हजारों करोड़ रुपये के विकास कार्य करवाए हैं। अमृत योजना के तहत शहर की बदहाल सीवरेज व्यवस्था को दुरुस्त किया गया है। हैबतपुर गांव में मेडिकल कॉलेज बन रहा है, जल्द ही शहर को नहरी आधारित पेयजल योजना पर काम शुरू हो जाएगा।
महावीर गुप्ता – कांग्रेस प्रत्याशी
महावीर गुप्ता का कहना है कि पिछले दस साल में जींद में कोई काम नहीं हुआ। प्रॉपर्टी आईडी, परिवार पहचान पत्र के नाम पर खुली लूट हुई है। गरीब लोगों की परिवार पहचान पत्र में दस-दस लाख रुपये की आय दिखाकर उनको लाभकारी योजनाओं से वंचित किया गया। शहर की सड़कें आज भी टूटी पड़ी हैं। बार-बार सड़कों को उखाड़ा जा रहा है। किसी की प्रॉपर्टी आईडी किसी के नाम से बना दी और प्लाॅट के साइज भी बदल दिए गए। इनको ठीक करवाने के लिए पैसे लिए जाते हैं। महावीर गुप्ता को जाट वोट बैंक पर भरोसा है। सरकार के खिलाफ वोट करने वाले लोगों से उम्मीद है।
प्रदीप गिल – निर्दलीय
जींद में कांग्रेस के बागी निर्दलीय प्रत्याशी प्रदीप गिल का भी अच्छा प्रभाव है। गिल बार-बार एक-दो परिवारों को ही टिकट देने के विरोध में बोल रहे हैं। उनका कहना है कि मेहनत और जींद का विकास करने के सपने देखने वाले लोगों को यहां टिकट नहीं दिया जाता। प्रदीप गिल जाट समुदाय से हैं, लेकिन उनकी शहर में दूसरे समुदाय में भी अच्छी पकड़ है।
ये प्रत्याशी भी मैदान में
इनेलो से नरेंद्र नाथ शर्मा, जजपा से इंजीनियर धर्मपाल प्रजापत, आप से वजीर ढांडा भी चुनाव मैदान में हैं। यह तीनों ही काफी शिक्षित हैं। ये भी जनता के सामने अपनी बात रख रहे हैं।
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