नई दिल्ली2 घंटे पहले
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सरकार आज यानी 12 नवंबर को अक्टूबर महीने के रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी करेगी। एक्सपर्ट्स के अनुसार बीते महीने महंगाई दर 0.50% के रिकॉर्ड सबसे निचले स्तर पर आ सकती है। इसका कारण खाने-पीने की चीजों की कीमतों में लगातार कमी और GST में कटौती का असर है। ये महंगाई दर बेस ईयर 2012 के आधार पर सबसे कम होगी।
इससे पहले सितंबर में रिटेल महंगाई करीब 8 साल के निचले स्तर 1.54% पर आ गई थी। इससे पहले जून 2017 में ये 1.46% रही थी, जो अब तक की सबसे कम महंगाई दर है। सितंबर में खाने-पीने की कुछ वस्तुओं की कीमतों में गिरावट रही थी। वहीं अगस्त में रिटेल महंगाई 2.07% रही थी।

बेस ईयर क्या होता है?
- बेस ईयर वो साल होता है जिसकी कीमतों को आधार (बेस) माना जाता है। यानी, उसी साल की चीजों की औसत कीमत को 100 का मान देते हैं।
- फिर, दूसरे सालों की कीमतों की तुलना इसी बेस ईयर से की जाती है। इससे पता चलता है कि महंगाई कितनी बढ़ी या घटी है।
- उदाहरण: मान लीजिए आपका घर का बजट 2020 में था (बेस ईयर)। उस साल एक किलो टमाटर ₹50 का था। अब 2025 में वो ₹80 का हो गया। तो महंगाई = (80 – 50) / 50 × 100 = 60% बढ़ी। यही फॉर्मूला CPI में यूज होता है, लेकिन ये पूरे बाजार की चीजों पर लागू होता है।
ये क्यों जरूरी है?
- तुलना आसान बनाता है: बिना बेस ईयर के, हर साल की कीमतें अलग-अलग होंगी। लेकिन बेस ईयर से सब कुछ प्रतिशत (%) में मापा जाता है, तो पुराने और नए साल की साफ तुलना हो जाती है।
- महंगाई का सही अनुमान: ये बताता है कि महंगाई कितनी तेज या धीमी हुई। जैसे, अगर बेस ईयर से 5% महंगाई बढ़ी, तो सरकार और बैंक ब्याज दरें तय करने में इसका इस्तेमाल करते हैं।
- पुरानी आदतों को अपडेट करता है: समय के साथ लोगों की खरीदारी की आदतें बदलती हैं (जैसे पहले साइकिल, अब बाइक ज्यादा यूज करते हैं)। इसलिए हर 10-12 साल में बेस ईयर बदल दिया जाता है, ताकि डेटा पुराना न हो जाए।
- भारत में उदाहरण: भारत में रिटेल महंगाई (CPI) का बेस ईयर अभी 2012 है। यानी 2012 की कीमतों को 100 मानकर 2025 की तुलना की जाती है। अगर CPI 2025 में 150 है, तो महंगाई 50% बढ़ चुकी है।
बेस ईयर कैसे चुना जाता है और कैसे काम करता है?
- सरकार (भारत में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय) आमतौर पर हर 5-10 साल में नया बेस ईयर चुनती है।
- ये ऐसा साल होता है जो सामान्य हो, न ज्यादा सूखा हो, न महामारी, न ज्यादा महंगाई। ताकि आधार मजबूत हो।
- भारत में 1950-51 से शुरू हुआ, फिर 1960-61, 1982, 1993-94, 2001, 2010, और अब 2012।
महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है? महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
CPI से तय होती है महंगाई एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है।

Source: https://www.bhaskar.com/business/news/india-retail-inflation-rate-october-2025-update-136399213.html

