बिहार—जिसे कभी प्राचीन भारत की बौद्धिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर माना जाता था—आज देश के सबसे पिछड़े राज्यों में गिना जाता है। सवाल उठता है कि आखिर आज़ादी के समय तमिलनाडु और बिहार आर्थिक रूप से बराबर होने के बावजूद बिहार इतना पीछे कैसे रह गया? इसका बड़ा कारण रही 1952 में लागू की गई Freight Equalization Policy, जिसने बिहार जैसे खनिज-संपन्न राज्य की आर्थिक रीढ़ तोड़ दी। इस नीति के तहत कोयला, लोहा, बॉक्साइट जैसे खनिजों के परिवहन पर सब्सिडी दी गई ताकि देश के किसी भी कोने में उद्योग लगाना सस्ता पड़े। नतीजा यह हुआ कि उद्योग बिहार या झारखंड जैसे खनिज क्षेत्रों में बसने के बजाय मुंबई, गुजरात और दक्षिण भारत में स्थापित हो गए।1993 तक चली इस नीति ने बिहार के औद्योगिक विकास को लगभग ठप कर दिया। जहां तमिलनाडु में फैक्ट्रियों की संख्या 520% बढ़ी, वहीं बिहार में आज भी मुश्किल से 3300 फैक्ट्रियाँ हैं। इसका सीधा असर रोजगार और जीवन स्तर पर पड़ा — यहाँ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार सिर्फ 5.7% है जबकि तमिलनाडु में 17%। आज जब बिहार चुनावों के केंद्र में है, तो ज़रूरत है कि राजनीतिक बहसों में इसके असली आर्थिक दर्द की चर्चा भी हो।
Source: https://www.abplive.com/videos/business/economy-how-the-freight-equalization-policy-set-bihar-s-economy-back-decades-paisa-live-3042032
