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ई-कॉमर्स पर ‘कंट्री ऑफ ओरिजिन’ अनिवार्य होगा: उपभोक्ता मंत्रालय ने नियम ड्राफ्ट किया; मेड इन इंडिया प्रोडक्ट्स आसानी से ढूंढ सकेंगे Today Tech News

ई-कॉमर्स पर ‘कंट्री ऑफ ओरिजिन’ अनिवार्य होगा:  उपभोक्ता मंत्रालय ने नियम ड्राफ्ट किया; मेड इन इंडिया प्रोडक्ट्स आसानी से ढूंढ सकेंगे Today Tech News

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मुंबई10 मिनट पहले

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ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को अब पैकेज्ड सामानों के लिए ‘कंट्री ऑफ ओरिजिन’ का फिल्टर अलग से देना होगा। जिससे प्रोडक्ट सर्च कर रहे कस्टमर को उसका ओरिजिन (सामान मूल रूप से किस देश में बना है) का पता आसानी से पता चल सके। डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर ने इसे मेंडेटरी करने के लिए प्रस्ताव लाया है। अगर ये पास हो गया, तो 2026 से लागू हो सकता है।

मंत्रालय ने सोमवार, 10 नवंबर को कहा है कि ये बदलाव 2011 के लीगल मेट्रोलॉजी रूल्स में संशोधन के जरिए होगा। पैकेज्ड सामानों पर कंट्री ऑफ ओरिजिन लिखने की अनिवार्यता पहले से ही है। नया नियम ई-कॉमर्स पर सर्च के लिए फिल्टर लगाने के लिए लाया जा रहा है। इससे डिजिटल मार्केटप्लेस पर ट्रांसपेरेंसी बढ़ेगी और लोकल मैन्युफैक्चरर्स को बराबरी का मौका मिलेगा।

उपभोक्ता मंत्रालय के प्रस्ताव की बड़ी बातें

मंत्रालय ने ड्राफ्ट लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज) (सेकंड) अमेंडमेंट रूल्स, 2025 जारी किया है। इसमें कहा गया है कि हर ई-कॉमर्स एंटिटी जो इम्पोर्टेड प्रोडक्ट्स बेचती है, उसे प्रोडक्ट लिस्टिंग्स में कंट्री ऑफ ओरिजिन का फिल्टर देना होगा। ये फिल्टर सर्चेबल और सॉर्टेबल होंगे, यानी यूजर्स आसानी से फिल्टर लगा कर लोकल या इम्पोर्टेड आइटम्स छांट सकेंगे।

  • क्या बदलेगा: अभी प्रोडक्ट्स की लिस्टिंग में ओरिजिन की जानकारी छिपी रहती है, जिससे कंज्यूमर्स को मैन्युअली चेक करना पड़ता है।
  • टारगेट क्या है: डिटेल्ड प्रोडक्ट लिस्टिंग्स में टाइम बचाना और इन्फॉर्म्ड चॉइस को बढ़ावा देना।
  • कैसे लागू होगा: ये रूल्स पैकेज्ड कमोडिटीज पर फोकस्ड हैं, जैसे FMCG आइटम्स, इलेक्ट्रॉनिक्स या क्लोथिंग।

क्यों आया ये प्रस्ताव, बैकग्राउंड में क्या है

ई-कॉमर्स का बाजार भारत में तेजी से बढ़ रहा है। 2025 तक ये 3 लाख करोड़ रुपए का हो चुका है, लेकिन कंज्यूमर्स अक्सर प्रोडक्ट्स का ओरिजिन न जान पाने की शिकायत करते रहे हैं। मंत्रालय का मानना है कि ट्रांसपेरेंसी न होने से इम्पोर्टेड सामानों को ज्यादा एडवांटेज मिलता है।

पिछले सालों में कई कंज्यूमर कंप्लेंट्स आईं, जहां लोग ‘मेड इन इंडिया’ प्रोडक्ट्स ढूंढने में परेशान हुए। मंत्रालय ने इसे नोटिस किया और डिजिटल मार्केट को रेगुलेट करने के लिए ये स्टेप उठाया।

मंत्रालय ने कहा- ट्रांसपेरेंसी और कंप्लायंस पर जोर

मंत्रालय ने स्टेटमेंट में कहा, ‘ये फीचर कंज्यूमर्स को विस्तृत लिस्टिंग्स में ओरिजिन लोकेट करने का टाइम बचाएगा। साथ ही, ये अथॉरिटीज को भी मदद करेगा। अब मैन्युअल रिव्यू की बजाय ऑटोमेटेड चेकिंग से नियमों के उल्लंघन पकड़े जा सकेंगे।

ये बदलाव नेशनल प्रायोरिटीज से मैच करता है। कंज्यूमर ट्रस्ट बढ़ेगा और डिजिटल इकोसिस्टम ज्यादा कॉम्पिटिटिव बनेगा। एक सीनियर अधिकारी ने बताया, ‘प्रोडक्ट इंफॉर्मेशन वेरिफाई करना आसान हो जाएगा, जिससे कंप्लायंस मॉनिटरिंग तेज होगी।’

लोकल मैन्युफैक्चरर्स को बूस्ट मिलेगा

ये प्रपोजल ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ को डायरेक्ट सपोर्ट देगा। कंज्यूमर्स को ‘मेड इन इंडिया’ प्रोडक्ट्स आसानी से मिलेंगे, जिससे डोमेस्टिक गुड्स की विजिबिलिटी बढ़ेगी।

  • कंज्यूमर्स के लिए: इन्फॉर्म्ड बायिंग, जैसे हेल्थ प्रोडक्ट्स में ओरिजिन चेक करना आसान।
  • मैन्युफैक्चरर्स के लिए: लेवल प्लेइंग फील्ड (मार्केट में बाराबरी का मौका), इम्पोर्टेड गुड्स के साथ बराबरी।
  • गवर्नमेंट के लिए: वायलेशंस डिटेक्ट करना सिंपल, जैसे फेक ओरिजिन क्लेम्स।
  • ओवरऑल इम्पैक्ट: ई-कॉमर्स पर कंज्यूमर सेंट्रीक अप्रोच, ट्रस्ट बढ़ेगा।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे छोटे और लोकल ब्रांड्स को 20-30% ज्यादा सेल्स मिल सकती है, क्योंकि फिल्टर से ‘मेड इन इंडिया’ कैटेगरी टॉप पर आएगी।

ई-कॉमर्स इकोसिस्टम ज्यादा कॉम्पिटिटिव बनेगा

लॉन्ग टर्म में ये बदलाव ई-कॉमर्स को ज्यादा कंज्यूमर-फ्रेंडली बनाएगा। कंपनियों को टेक्निकल चेंजेस करने पड़ेंगे, जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी प्लेटफॉर्म्स पर नया फिल्टर ऐड करना। लेकिन ये नेशनल गोल्स से जुड़े होने से सपोर्ट मिलेगा।

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