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Karnal News: – विलुप्त होने के कगार पर पहुंची भदावरी भैंस के जीनोम को डिकोड करने में एनडीआरआई की बड़ी सफलता Latest Haryana News

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इस भैंस के दूध में सबसे ज्यादा 13 प्रतिशत रहती है वसा, जिससे बन सकते हैं अत्याधिक दुग्ध उत्पाद

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– जीनोम डिकोड होने से भदावरी की नस्ल को भी किया जा सकेगा संरक्षित, दुनियाभर के वैज्ञानिकों को मिलेगी मदद

देव शर्मा

करनाल। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) करनाल ने भदावरी भैंस की नस्ल के जीनोम को डिकोड करने में सफलता हासिल कर ली है। इसके साथ ही पहली बार एक रेखिक संदर्भ संपूर्ण जीनोम (डी-नोवो) असेंबली भी तैयार कर ली गई है। इस असेंबली का उपयोग अन्य भैसों कि नस्लों के तुलनात्मक अध्ययन में किया जा सकेगा।

अब देश में विलुप्त होती जा रही बहुत पुरानी भदावरी भैंस की नस्ल को आनुवांशिक स्तर पर समझा जा सकेगा और भविष्य में संरक्षित किया जा सकेगा। देश की ये एक ऐसी अनोखी नस्ल है, जिसके दू्ध में करीब 13 प्रतिशत तक वसा होता है, जो अन्य किसी भी भैंस की नस्ल से सर्वाधिक है। यही कारण है कि इसके दूध से सर्वाधिक गुणवत्तापूर्ण दुग्ध उत्पाद बनाए जा सकते हैं।

भदावरी भैंस के जीनोम को डिकोड कर असेंबली तैयार किए जाने की सफलता के बाद एनडीआरआई के निदेशक एवं कुलपति डॉ.धीर सिंह कहते हैं कि एनडीआरआई अब, भैंस की अनुवांशिक क्षमता को बढ़ाने के एक कदम और करीब हैं। भदावरी भैंस के जीनोम को डिकोड कर पाना संस्थान के निरंतर लेकिन सावधानीपूर्वक प्रयासों का सार्थक परिणाम है। इस जीनोम डिकोडिंग का भविष्य के अनुसंधान में महत्वपूर्ण उपयोग और प्रभाव देखने को मिलेगा। इससे हमें भैंस की नस्लों को बेहतर तरीके से समझने और उन्हें भविष्य के लिए संरक्षित करने में बहुत महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।

एनडीआरआई के पशु अनुवांशिक प्रजनन विभाग के अध्यक्ष डॉ. विकास वोहरा ने बताया कि वैज्ञानिकों एवं पीएचडी छात्रों के निरंतर प्रयासों से ये संभव हो पाया है। असेंबली तैयार करने के लिए खास तकनीक सेलेरा असेंबलर को चुना गया था। असेंबली पूरे जीनोम का ड्राफ्ट स्काफोलड के स्तर पर तैयार की गई है। उन्होंने बताया कि असेंबल्ड जीनोम का मूल्यांकन असेंबली की निकटता, पूर्णता और कवरेज के आधार पर किया गया था। ये कार्य भैसों की जीनोम आधारित चयन और प्रजनन में मदद करेगा।

डॉ. वोहरा के अनुसार माइटोकॉंड्रियल जीनोम की अंतदृष्टि से अनुमान लगाया गया है कि आज से करीब 0.72 मिलियन वर्ष यानी करीब 72000 वर्ष पहले भारतीय, मिस्र, चीनी और इराकी भैंसों के विभिन्न एशियाई समूहों का विचलन हो गया था। इसी दौरान यह भदावरी भैंस वजूद में आई थी, जो भारत में खासकर उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में पाई जाती है। एक लंबे समय से धीरे-धीरे इस भैंस की संख्या घटने लगी, अब यह प्राय: विलुप्त होने की स्थिति में पहुंच गई है। ये भैंस दूध तो कम देती है, लेकिन जितना दूध देती है, उसमें वसा सर्वाधिक होता है। जिससे अधिक दूध देने वाली भैंस के दूध से अधिक दुग्ध उत्पाद बनाए जा सकते हैं। जिसे शायद पशुपालक समझ नहीं पाए और ये भैंस पालन में पिछड़ती चली गई।

अब इसका जीनोम संस्थान ने डिकोड किया है। जिसमें कई ऐसी जीन की पहचान हुई हैं, जिनका उपयोग भविष्य में क्रांतिकारी हो सकता है। संदर्भ संपूर्ण जीनोम (डी-नोवो) असेंबली के आधार पर भविष्य में अन्य नस्लों के अच्छे पशुओं की चयन भी हो सकेगा।

– इस नव विकसित भदावरी जीनोम असेंबली को जल्द ही एनसीबीआई जीनोम डिपॉजिटरी (नेशनल सेंटर फॉर बाॅयोटेक्नोलॉजी इंफॉरमेशन डाटाबेस) के माध्यम से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाएगा। जिससे दुनियाभर के अन्य पशु वैज्ञानिकों को मदद मिल सके। जीनोम डिकोड असेंबली तैयार होने से पशुपालन और डेयरी (डीएएचडी) को इस बड़ा लाभ होगा, क्योंकि संपूर्ण जीनोम जानकारी के आधार पर भविष्य की भैंसों का चयन किया जा सकेगा।

– डॉ.धीर सिंह, निदेशक एवं कुलपति, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) करनाल।

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Karnal News: – विलुप्त होने के कगार पर पहुंची भदावरी भैंस के जीनोम को डिकोड करने में एनडीआरआई की बड़ी सफलता

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