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दिल्ली एनसीआर में बढ़ता हुआ एयर क्वालिटी इंडेक्स अब गंभीर चिंता का कारण बन गया है. दिल्ली की जहरीली हवा अब न केवल फेफड़ों तक सीमित रही बल्कि इसका असर शरीर के दूसरे अंगों पर भी दिखने लगा है. रिपोर्ट्स के अनुसार, दिल्ली एनसीआर का प्रदूषण ऑटोइम्यून डिजीज जैसे रूमेटाइड आर्थराइटिस का कारण भी बन सकता है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि दिल्ली एनसीआर की जहरीली हवा सिर्फ फेफड़े ही नहीं बल्कि दिमाग और दिल पर भी कैसे असर कर रही है.
दिल्ली की हवा से दिल की सेहत पर बढ़ता खतरा
दिल्ली की जहरीली हवा को देखते हुए एक्सपर्ट्स बताते हैं कि प्रदूषित हवा में मौजूद पीएम 2.5 जैसे छोटे-छोटे कण खून में घुसकर नसों में सूजन पैदा कर देते हैं. वहीं यह सूजन ब्लड क्लोट बनने का कारण बनती है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि जिन लोगों को पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर या होर्डेड आर्टरीज की समस्या है, उनके लिए यह प्रदूषण और ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है. ऐसे में एक्सपर्ट्स यह भी बताते हैं कि दिल को प्रदूषण के असर से बचाने के लिए लोगों में हवा के संपर्क को कम करना, साफ हवा की पहल को बढ़ावा देना, और हार्ट हेल्थ को लेकर जागरूकता जरूरी है.
दिमाग और मेंटल हेल्थ पर भी असर
दिल्ली की जहरीली हवा अब सिर्फ फेफड़ों ही नहीं बल्कि मेंटल हेल्थ पर भी बुरा असर डाल रही है. एक्सपर्ट्स के अनुसार लंबे समय तक जहरीली हवा के संपर्क में रहने से दिमाग पर खतरनाक असर पड़ सकता है. प्रदूषण के कारण न्यूरो इन्फ्लेमेशन यानी दिमाग में सूजन हो सकती है, जिससे न्यूरॉनकनेक्शन कमजोर होते हैं. न्यूरोट्रांसमीटर का संतुलन बिगड़ता है और अल्जाइमर व पार्किंसंस जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि जहरीली हवा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ाती है जिससे मेमोरी, ध्यान और निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ता है. वहीं बच्चों में यह कंडीशन और गंभीर हो सकती है क्योंकि इस समय उनके दिमाग की ग्रोथ चल रही होती है. ऐसे में प्रदूषित हवा से बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर और ADHD जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियां बढ़ सकती है.
डिप्रेशन और आत्महत्या का खतरा भी बढ़ रहा
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि जो लोग पिछले 5 सालों से प्रदूषण के हाई लेवल वाले इलाकों में रह रहे हैं, उनमें डिप्रेशन और सुसाइड के थॉट्स और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट जैसे लक्षण बढ़ रहे हैं. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि विशेष रूप से बच्चे इसके ज्यादा खतरे में है, क्योंकि उनके विकसित होते दिमाग पर प्रदूषण का सीधा असर पड़ता है. इससे डिप्रेशन, स्किजोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर और सुसाइडल थॉट्स का खतरा बढ़ जाता है.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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