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बिहार विधानसभा चुनाव में अब प्रचार पूरी रफ्तार पकड़ चुका है. कहीं नेताओं के बड़े रोड शो हैं तो कहीं करोड़ों की गाड़ियों के काफिले देखने को मिल रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा उम्मीदवार सबका ध्यान खींच रहा है, जिसके पास न दौलत है, न रसूख. नाम है कयामुद्दीन अंसारी, आरा विधानसभा सीट से महागठबंधन के भाकपा-माले (CPI-ML) प्रत्याशी. उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का ‘सबसे गरीब उम्मीदवार’ भी कहा जा रहा है.
सादगी बनी चर्चा का केंद्र
50 वर्षीय कयामुद्दीन अंसारी ने एमएचडी जैन कॉलेज, आरा से उर्दू में एमए किया है. जाति से अंसारी (जुलाहा) हैं, यानी अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं. वे इससे पहले दो बार आरा से चुनाव लड़ चुके हैं. साल 2020 में वे भाजपा के अमरेन्द्र प्रताप सिंह से मात्र 3,002 वोटों से हार गए थे, लेकिन उस चुनाव में उनका संघर्ष और सादगी चर्चा में रही थी.
न जमीन, न कारोबार
इस बार भी कयामुद्दीन मैदान में हैं, लेकिन हालात और मुश्किल हैं. उनके पास न कोई संपत्ति है, न कारोबार. उनकी पत्नी खुशबु एक आंगनबाड़ी सेविका हैं और यही उनके घर की एकमात्र नियमित आय है. हलफनामे में उन्होंने अपनी आय बताई है. उनके पास सिर्फ 20 हजार रुपये नकद और बैंक खाते में 5 हजार रुपये हैं. वे एक छोटे से घर में रहते हैं.
जनता से चंदा, साइकिल पर प्रचार
कयामुद्दीन से पूछा गया कि जब पैसे नहीं हैं, तो प्रचार कैसे? तो उन्होंने साफ कहा- जनता के भरोसे. वे गांव-गांव जाकर लोगों से छोटे-छोटे चंदे जुटा रहे हैं. कोई 50 रुपये देता है, कोई 100. इसी पैसों से वे पोस्टर छपवाते हैं और साइकिल पर बैठकर घर-घर जाकर जनता से मिल रहे हैं.
बड़े नामों के बीच ‘जनता का उम्मीदवार’
आरा सीट पर उनके सामने भाजपा के संजय सिंह टाइगर और जन सुराज के डॉ विजय कुमार गुप्ता जैसे दिग्गज उम्मीदवार हैं, लेकिन कयामुद्दीन की ईमानदारी और सादगी ने लोगों के दिलों में जगह बनाई है.
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