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पैरालिंपिक में देश को गोल्ड दिलाने वाले नितेश की कहानी: 15 साल पहले ट्रेन-एक्सीडेंट में पैर गंवाया, मां से कहा था- वापसी करूंगा; IIT मंडी से बी-टेक कर चुके Today Sports News

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स्पोर्ट्स डेस्क2 घंटे पहलेलेखक: राजकिशोर

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कमबैक…4 अक्षर का यह शब्द सुनने में तो बहुत छोटा लगता है, लेकिन इसके मायने बड़े हैं। इसके असल मायने करनाल (हरियाणा) के पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी नितेश कुमार की सक्सेस स्टोरी में छिपे हैं।

30 साल के नितेश ने पेरिस पैरालिंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया। ये वही नितेश है, जिसने 15 साल पहले 2009 में एक ट्रेन हादसे में बायां पैर गंवा दिया था। वे विशाखापट्नम में एक लोकल फुटबॉल टूर्नामेंट खेलने जा रहे थे। यहां नितेश का फुटबॉलर बनने का सपना टूट गया। 15 साल के नितेश ने हार नहीं मानी और अस्पताल में मां को रोता देखकर कहा- ‘मां मैं वापसी करूंगा।’

हादसे से रिकवर करते हुए नितेश ने IIT मंडी से बी-टेक इंजीनियरिंग की। उन्होंने पढ़ाई का स्ट्रेस दूर करने के लिए फिर खेलों का सहारा लिया, लेकिन इस बार फुटबॉल की जगह बैडमिंटन को चुना। इतना ही नहीं, 2 अगस्त को पेरिस पैरालिंपिक में भारत को दूसरा गोल्ड दिलाया और दादा (सौरव गांगुली) की स्टाइल में जर्सी लहराई।

स्वदेश लौटे नितेश कुमार ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। उन्होंने कहा- ‘मैं खुश हूं कि किसी न किसी रूप में देश की सेवा कर पाया।’ नितेश कुमार से दैनिक भास्कर से बातचीत के अंश…

नितेश कुमार की यह फोटो इसी साल 2 सितंबर की है। जब उन्होंने पैरालिंपिक में गोल्ड जीता था।

नितेश कुमार की यह फोटो इसी साल 2 सितंबर की है। जब उन्होंने पैरालिंपिक में गोल्ड जीता था।

सवाल- यहां तक के सफर के संघर्षों के बारे में बताएं? जवाब- मैंने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। पहले फुटबॉलर बनना चाहता था। मेरे पिता नेवी में रहे हैं, इसलिए मुझे सफेद वर्दी से भी लगाव था। मैं नेवी जॉइन कर देश की सेवा भी करना चाहता था। लेकिन, उस हादसे में मेरा यह सपना 2009 में टूट गया।

पापा के सपोर्ट से मैंने रिकवरी की और पढ़ाई पर फोकस किया। पढ़ाई के दौरान खुद को रिफ्रेश रखने के लिए बैडमिंटन खेलना शुरू किया। यही से करियर की शुरुआत हुई।

सवाल- एक बड़े हादसे से वापसी की है, क्या मोटिवेशन रहे हैं? जवाब- हादसे के बाद जब मुझे होश आया, तो मैनें खुद को अस्पताल में पाया। मां रो रही थी…तो मैंने उनसे कहा- चिंता मत करो। मैं फिर वापसी करूंगा। नेशनल चैंपियनशिप में मेडल जीतने के बाद अन्य खिलाड़ियों से मिला। वहां साथियों के संघर्षों से खुद को मोटिवेट किया। 2017 में आयरिश पैरा-बैडमिंटन इंटरनेशनल में गोल्ड जीता, तो मुझे लगा कि खिलाड़ी बनने का सपना इससे पूरा हो सकता है।

सवाल- पेरिस पैरालिंपिक में क्या रणनीति थी? जवाब- जब क्वालिफाई हुआ, तो लगा कि एक पड़ाव पार हो गया है। पेरिस जाने से पहले कभी नहीं सोचा था कि मैं गोल्ड जीतूंगा। एक के बाद एक मैच जीतता गया और फाइनल में पहुंच गया, तब मन में आया कि मुझे भी वही करना है, जो 3 साल पहले टोक्यो में प्रमोद भैया (प्रमोद भगत) ने किया था। फाइनल के बाद कोच ने कहा कि तुमने अपना बेस्ट सही समय पर दिया।

सवाल- आपका फेवरेट खिलाड़ी कौन हैं? जवाब- मेरे फेवरेट खिलाड़ी विराट कोहली हैं। उनसे काफी प्रभावित हूं। वे खुद को काफी फिट रखते हैं। मैंने उनके कई इंटरव्यू देखे, जिसमें उन्होंने कहा है कि वे 2013 से किस तरह से अपने में बदलाव लाए हैं। अपने को फिट रखने के लिए किस तरह से हार्ड वर्क करते हैं। कैसे प्लान कर ट्रेनिंग पर फोकस करते हैं।

सवाल- टोक्यो में आप कैसे मिस कर गए? जवाब- टोक्यो के लिए मैं क्वालिफाई नहीं कर सका। बैडमिंटन में क्वालिफाई रैंकिंग के आधार पर होता है। मेरा एग्जाम था। ऐसे में मैं उस दौरान कम इवेंट में हिस्सा ले सका। उस दौरान मेरा फिटनेस भी सही नहीं था। मैं बीमार भी था। लेकिन उस समय जो चूक हुई, उसे पेरिस की तैयारी में सुधारा। इसमें मेरी मदद स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) के कोचों ने की। मैं टॉप्स में सिलेक्ट हुआ। मुझे हर तरह की सपोर्ट और ट्रेनिंग मिली। जिससे मैं बैडमिंटन को लेकर जागरूक हुआ और पैरालिंपिक के लिए क्वालिफाई किया।

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