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- Derek O’Brien’s Column Something Can Be Learned Even From Political Opponents
डेरेक ओ ब्रायन राज्यसभा में टीएमसी के नेता
आप उन लोगों से भी सीख सकते हैं, जिनसे असहमत हों। उनसे भी, जिनकी विचारधारा का विरोध करते हों। सांसद के तौर पर यह मेरा तीसरा कार्यकाल है और इस दौरान भारत की संसद नामक विश्वविद्यालय में एक छात्र के रूप में मैंने बहुत कुछ सीखा है।
तत्कालीन सेंट्रल हॉल में अरुण जेटली से मौलिक कथाकार कोई दूसरा नहीं हुआ करता था। क्रिकेट से लेकर फाउंटेन पेन तक, टेलीविजन एंकरों के किस्सों से लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों तक- जेटली के साथ कॉफी हमेशा यादगार होती थी।
2015 में शुक्रवार की वह दोपहर तो और खास थी। राज्यसभा में ट्रांसजेंडरों के अधिकारों को लेकर तिरुचि सिवा के प्राइवेट मेंबर्स बिल पर चर्चा हुई। सरकार ने विधेयक वापस लेने के लिए सिवा को मनाने की कोशिश की। लेकिन जब सिवा ने मत-विभाजन के लिए आग्रह किया तो जेटली सदन को सम्बोधित करने उठे।
उन्होंने कहा यह विधेयक ‘सदन की भावना को प्रदर्शित करता है और सदन ध्वनिमत से इसके प्रति सहमत होगा।’ 45 वर्षों में यह पहली बार था, जब एक प्राइवेट मेंबर्स बिल सदन में पारित हुआ। अब वैसी संसद कहां?
जेटली अकसर उस सलाह को याद किया करते थे, जो आडवाणी ने उन्हें 1999 में संसद में पहली बार प्रवेश के वक्त दी थी- ‘जब आप संसद में या बाहर बोलें तो मुद्दों पर ही बात करें, व्यक्तिगत टिप्पणी से बचें।’ अलबत्ता जेटली स्वीकारते थे कि ‘कभी-कभी यह नियम मुझसे भी टूटा, लेकिन जहां तक सम्भव हो मैंने इसका पालन करने की ही कोशिश की है।’ इसके बावजूद जेटली की विरासत पर उस इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के कारण दाग लग गया, जिसे 2024 में असंवैधानिक करार दिया गया। जेटली के कार्यकाल में ही जीएसटी कानून भी जल्दबाजी में लागू हुआ था।
प्रकाश जावड़ेकर ने एक मंत्री के रूप में कई मंत्रालय सम्भाले, लेकिन संसदीय कार्य राज्यमंत्री के रूप में छह महीने (मई-नवंबर 2014) का उनका कार्यकाल मुझे विशेष तौर पर याद है। जावड़ेकर सौम्य और मिलनसार व्यक्ति हैं और विपक्षी दलों में भी लोकप्रिय हैं। शायद इसी कारण उन्हें पद गंवाना पड़ा।
जब संसद सत्र चल रहा होता तो वे ट्रेजरी बेंच की तुलना में विपक्षी सदस्यों के साथ अधिक समय बिताते थे और उनकी चिंताओं को सुनते थे। सदन के सुचारु संचालन के लिए वे रणनीतियां बनाते थे। अनेक वरिष्ठ सांसद याद करते हैं कि प्रियरंजन दासमुंशी भी ऐसे ही काम किया करते थे। वे विवादों से दूर रहते थे, फिर भी मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप उन्होंने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि ‘कुछ स्कूल पैसों की मांग करते हुए भीख का कटोरा लेकर आ जाते हैं।’
सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं। वे इंदिरा गांधी के बाद विदेश मंत्रालय संभालने वाली दूसरी महिला भी थीं। संसद में जब मैं नौसिखिया था, तब उनकी गिनती दिग्गजों में होती थी। हमारी बातचीत लोकसभा या राज्यसभा की लॉबी में क्षणिक मुलाकातों तक ही सीमित थी, लेकिन वे हमेशा नए सांसदों का भी मुस्कराते हुए, नाम पुकारकर अभिवादन करती थीं। लेकिन वे भी 2015 में ललित मोदी को यूके जाने में मदद करने को लेकर विवाद में आ गईं।
नि:संदेह, संसदीय समितियों की अध्यक्षता के लिए पीपी चौधरी भाजपा के पसंदीदा सांसद हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने चार समितियों की अध्यक्षता की है। मैं भी पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 के लिए गठित जेपीसी में शामिल था।
पीपी इस जेपीसी के अंतिम पांच महीनों के लिए अध्यक्ष थे। समिति की हर बैठक में वे निष्पक्षता के साथ डेटा गवर्नेंस पर चर्चा करते। बैठक में अकसर विरोधाभासी राय आतीं, लेकिन पीपी सुनिश्चित करते कि हर मत को सुनें और दर्ज करें।
लेकिन हालिया वर्षों में इस बात के प्रमाण मिलते रहे हैं कि भाजपा जेपीसी का उपयोग विधायी कार्यों की गुणवत्ता सुधारने के बजाय नैरेटिव बनाने के लिए करती है। 2014 से 2024 के बीच संसद ने 11 जेपीसी गठित कीं। इनमें से 7 मामलों में जेपीसी गठन का प्रस्ताव सत्र के अंतिम दिन पारित किया गया। जबकि 2004 से 2014 के बीच गठित हुई 3 जेपीसी में से भी किसी का भी प्रस्ताव अंतिम दिन पारित नहीं हुआ था।
चलते-चलते : विपक्ष द्वारा आजकल राज्यसभा में अपनाई जा रही इस रणनीति का श्रेय इस स्तम्भकार को दिया जा रहा है कि अपनी बात रखने की कोशिश करें, अगर सभापति ध्यान न दें तो विरोध में दस मिनट के लिए वॉकआउट करें और फिर लौटकर कार्यवाही में शामिल हो जाएं। लेकिन मुझे यह सीताराम येचुरी ने सिखाया था!
आप उन लोगों से भी सीख सकते हैं, जिनसे असहमत हों। उनसे भी, जिनकी विचारधारा का मुखर होकर विरोध करते हों। सांसद के तौर पर भारत की संसद नामक विश्वविद्यालय में एक छात्र के रूप में मैंने भी बहुत कुछ सीखा है। (ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख के सहायक शोधकर्ता आयुष्मान डे और वर्णिका मिश्रा हैं)
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डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम: राजनीतिक विरोधियों से भी कुछ सीखा ही जा सकता है