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- Column By Pt. Vijayshankar Mehta If You Want To Take Care Of Your Body, The Key Is In Your Mind
पं. विजयशंकर मेहता
कम्पित मन का व्यक्ति शरीर से भी व्याकुल रहेगा और कोई काम ठीक से नहीं कर पाएगा। भोजन के लिए कहा जाता है कि ज्यादा स्वाद भी अहितकारी है। किया हुआ भोजन यदि ना पचे तो भी दिक्कत है। निंदा का स्वाद आ जाए तो वह दुश्मनी में बदल जाती है।
बात का अधिक स्वाद आ जाए तो वह चुगली में बदल जाती है। दु:ख का स्वाद अधिक हो जाए तो निराशा में बदल जाता है। सुख का अधिक स्वाद हो जाए तो वह पाप में बदल जाता है। भोजन ना पचे तो रोग बन जाएगा। पैसा ना पचे तो दिखावा होगा।
राज ना पचे तो खतरा बन जाएगा और प्रशंसा ना पचे तो अहंकार बन जाएगी। इसलिए ज्यादा स्वाद के मामले में सावधान रहें। यदि हमारा मन कम्पित है, अस्थिर है तो हम ये आठ काम उल्टे ही करेंगे। और फिर उसका नुकसान उठाते ही हैं। चूंकि इस समय जीवन शरीर केंद्रित हो गया है तो हम मन की ओर ध्यान नहीं देते। जबकि शरीर सम्भालना हो तो उसकी कुंजी मन के पास है। मन सम्भालिए, तन स्वत: सम्भलेगा।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: यदि शरीर सम्भालना हो तो उसकी कुंजी मन के पास है