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पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण और दान करें. इस दौरान मांस, शराब, तामसिक भोजन व अशुभ कार्यों से बचें. घर साफ-सुथरा रखें, शांति बनाए रखें और देवी-देवताओं की पूजा करें. पितरों की तस्वीर दक्षिण की ओर रखें.
पितृपक्ष जिसे श्राद्ध भी कहा जाता है हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है. यह 16 दिनों तक चलता है. इस समय लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज जैसे धार्मिक अनुष्ठान करते हैं.

महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य के अनुसार जिस तिथि को आपके पूर्वज का निधन हुआ था उसी दिन श्राद्ध करना चाहिए. इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में खुशहाली आती है.

तर्पण में काले तिल, जौ और जल से पितरों को अर्घ्य दिया जाता है. पिंडदान और ब्राह्मण भोज करना अनिवार्य है. यदि ब्राह्मण न मिलें तो जरूरतमंद या गाय को भोजन कराया जा सकता है. यह हर दिन नियमित करना चाहिए.

पितृपक्ष में दान करना बहुत शुभ माना जाता है. अन्न, वस्त्र, जूते और अन्य जरूरी चीजें दान करें. इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है.

पितृपक्ष में भोजन में लहसुन और प्याज का प्रयोग न करें. घर में साफ-सफाई रखें और शांत वातावरण बनाए रखें. किसी से बहस या झगड़ा न करें. इससे पितरों की पूजा का फल मिलता है और घर में सुख-शांति रहती है.

महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य के अनुसार पितृपक्ष में पितरों की पूजा के साथ देवी-देवताओं की पूजा भी करनी चाहिए. पूजा के बिना श्राद्ध और पिंडदान का फल पूरा नहीं मिलता. भगवान की पूजा नियमित रूप से करनी चाहिए.

पितरों की तस्वीर कभी देवी-देवताओं के साथ न रखें. तस्वीर का मुख हमेशा दक्षिण दिशा की तरफ रखें और एक से अधिक तस्वीर न रखें. इससे नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती और श्राद्ध के लाभ पूर्ण रूप से मिलते हैं.
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