पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बेटी की कस्टडी के लिए पिता की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि बालिग महिला पर उसका पति, पिता या अन्य कोई व्यक्ति अपनी इच्छा नहीं थोप सकता।
हाईकोर्ट ने कहा कि पिता बेटी का उससे बेहतर संरक्षक होता है यह धारणा संविधान में दिए स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है। सामाजिक भूमिका के आधार पर इच्छा थोपना महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। मोहाली निवासी पिता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए अपनी बेटी को एक व्यक्ति की कथित अवैध हिरासत से मुक्त कराने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी।
याचिका के जवाब में बेटी ने बताया कि वह 30 वर्ष की है और अपनी मर्जी से आरोपी पुरुष के साथ रह रही है। वह उसके साथ हुई हिंसा के कारण न तो अपने पति के घर लौटना चाहती है और न ही अपने पिता के घर। पिता के वकील ने कहा कि बेटी की सामाजिक चिंताओं और स्वतंत्र रूप से रहने के संभावित परिणामों को ध्यान में रखते हुए उसकी कस्टडी पिता को सौंपी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह की धारणा संविधान में निहित समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा अपमान है।
एक महिला जो पूरी तरह से परिपक्व वयस्क है, अपने फैसले लेने में सक्षम है। उसने स्वतंत्र रूप से रहने की इच्छा व्यक्त की है तो अदालत उसे खारिज नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि हम किसी वयस्क को दूसरे के पास लौटने के लिए मजबूर नहीं कर सकते, न करना चाहिए, भले ही वह व्यक्ति नेक दिल माता-पिता हो। यह तर्क कि एक पिता एक वयस्क महिला का उससे बेहतर संरक्षक होगा, न केवल पुराना है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सांविधानिक गारंटी के भी विपरीत है। इस वजह से यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि महिला के अधिकारों की रक्षा की जाए और सामाजिक विचारों के आगे झुके बिना उसकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाए।
High Court: महिला का पिता या पति उस पर नहीं थोप सकता अपनी इच्छा, मोहाली निवासी पिता की याचिका खारिज