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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column The More Thoughts And Memories There Are In The Mind, The More Unrest There Will Be
पं. विजयशंकर मेहता
आजकल किसी से कोई बात करो, उसकी पुष्टि के लिए लोग मोबाइल खोलते हैं और डिजिटल माध्यमों से जानकारी निकालते हैं। जानकारी निकलती भी है। फिर जीवन इतना अधिक जानकारी-केंद्रित हो जाता है कि ज्ञान खो जाता है। जैसे शास्त्रों में मन पर बहुत काम हुआ है।
ऐसा लिखा गया है- माया मरी ना मन मरा, मर-मर गए शरीर। आशा-तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर। तो अब मन को मारना नहीं है। मरेगा भी नहीं। लेकिन फिर भी हमारे यहां मृत्यु की व्यवस्था मनुष्य को स्मृतियों से मुक्त कर देती है। जितने विचार और स्मृतियां मन में होंगे, मनुष्य उतना अशांत होगा।
विज्ञान भी मेमोरी एडिटिंग को मानता है। शास्त्रों ने इसे ही ध्यान कहा है। मनुष्य के मस्तिष्क में हिप्पोकैम्पस और कॉर्टेक्स होते हैं। ये स्मृतियों को सहेजते हैं। और एमिग्डेला, नापसंद और पसंद को रजिस्टर करता है। इन तीनों को व्यवस्थित करने का काम ही योग है। इसलिए विज्ञान को योग से लड़ना नहीं चाहिए और योग को विज्ञान से वैर नहीं रखना चाहिए।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: जितने विचार-स्मृतियां मन में होंगे, उतनी ही अशांति होगी

