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कुरुक्षेत्र। गुरुकुल के प्राकृतिक कृषि फार्म का भ्रमण करते हुए आईसीएआर के डीडीजी डॉ. एसके चौधरी
कुरुक्षेत्र। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) पूरे देश में प्राकृतिक खेती पर रिसर्च करेगा ताकि अलग-अलग क्षेत्रों के किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जा सके। इसमें कम पानी, रेतीली भूमि, अधिक बरसात सहित अलग-अलग क्षेत्राें पर प्राकृतिक खेती पर अनुसंधान के जरिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्राकृतिक खेती के लिए अनुकूल वातावरण किस प्रकार से तैयार किया जा सकता है। ये कहना है आईसीएआर के उपनिदेशक जनरल डॉ. एसके चौधरी का, जो मंगलवार को गुरुकुल कुरुक्षेत्र के प्राकृतिक कृषि फार्म का भ्रमण करने पहुंचे थे। उनके साथ 55 सदस्यीय दल ने भी प्राकृतिक खेती की बारीकियां जानी।
डॉ. चौधरी ने कहा कि गुरुकुल का यह फार्म प्राकृतिक खेती का विश्वविद्यालय है। देशभर के कृषि वैज्ञानिक यहां से बहुत कुछ सीख सकते हैं। प्राकृतिक खेती के साथ आधुनिक तकनीक को जोड़कर यदि किसान काम करेगा तो निश्चित तौर पर यह कृषि के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी पहल होगी। डॉ. चौधरी के साथ सहायक निदेशक जनरल डॉ. राजबीर और डॉ. वेलमुरूगन सहित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के 15 केंद्रों के प्रमुख तथा कृषि वैज्ञानिक शामिल रहे। यहां पहुंचने पर राज्यपाल आचार्य देवव्रत के ओएसडी डॉ. राजेंद्र विद्यालंकार, व्यवस्थापक रामनिवास आर्य और वैज्ञानिक डॉ. हरिओम ने सभी सदस्यों को प्राकृतिक कृषि फार्म का भ्रमण करवाया। प्राकृतिक गन्ना और धान की फसलों को देखकर हर कोई हैरान हुआ।
सीनियर माइक्रो बायोलॉजिस्ट डॉ. बलजीत सहारण ने बताया कि आमतौर पर खेत की छह इंच, एक फीट या दो फीट मिट्टी के तत्वों की बात होती है। जबकि सच्चाई यह है कि मिट्टी में फसलों के लिए आवश्यक सभी तत्वों का अथाह भंडार है, उन तत्वों को ऊपरी सतह पर लाने के लिए सही वातावरण उपलब्ध कराने की जरूरत है। प्राकृतिक खेती, जीवाणुओं की खेती है। यह पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है।
प्राकृतिक खेती में केंचुआ की अहम भूमिका : डॉ. हरिओम
कृषि वैज्ञानिक डॉ. हरिओम ने बताया कि प्राकृतिक खेती में केंचुआ की भूमिका बहुत अहम है। एक केंचुआ एक वर्ष में करीब साढ़े तीन किलो उपजाऊ मिट्टी खेत में छोड़ता है, जिसमें सात गुणा नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश होता है। सूखा पड़ने पर भी प्राकृतिक खेती पर कोई खास असर नहीं पड़ता। यदि पूरे देश में पूरे नियमों के साथ प्राकृतिक खेती की जाए तो किसानों को खेतों में कोई भी खाद खरीदकर डालने की जरूरत नहीं रहेगी। गोमूत्र के प्रभाव से खेत में चूहे, नीलगाय व फसल को नुकसान पहुंचाने वाले दूसरे कीट नहीं आते, जिससे किसान की फसल की सुरक्षा स्वयं हो जाती है।
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प्राकृतिक खेती पर देशभर में शोध करेगा आईसीएआर : डॉ. एसके चौधरी