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यूं ही नहीं है सारन के खच्चरों की पहाड़ों में डिमांड, बोझ उठाने से लेकर यात्रियों को ढोने तक करते हैं सारे काम..लेकिन कीमत है लग्जरी कार जितनी Haryana News & Updates

यूं ही नहीं है सारन के खच्चरों की पहाड़ों में डिमांड, बोझ उठाने से लेकर यात्रियों को ढोने तक करते हैं सारे काम..लेकिन कीमत है लग्जरी कार जितनी Haryana News & Updates

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अंबाला: उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू कश्मीर के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों पर यात्रियों के लिए पहाड़ की ऊंची चढ़ाई पर चढ़ना काफी मुश्किल होता है, ऐसे में उन्हें खच्चर पर बैठाकर मंदिरों तक ले जाया जाता है. ये खच्चर अंबाला जिले के बराड़ा क्षेत्र के पास यमुनानगर के गांव सारन से आते हैं. इन खच्चरों के सहारे पहाड़ी लोग राशन के अलावा अपना और यात्रियों का सामान भी ढोते हैं.

बराड़ा क्षेत्र से सटे यमुनानगर के गांव सारन में काफी लंबे समय से खच्चर पालने और बेचने का व्यवसाय किया जा रहा है. पहले यह लोग शौकिया तौर पर खच्चर बेचते थे, लेकिन अब यह व्यवसाय का रूप ले चुका है. हालांकि, इसको पालने में काफी खर्च आता है, इसके बावजूद पहाड़ी क्षेत्र में इनकी बहुत मांग है. मां वैष्णो देवी, श्री अमरनाथ, श्री केदारनाथ, श्री बद्रीनाथ समेत अन्य कई पहाड़ी तीर्थस्थलों पर यहां के खच्चर यात्री और सामान ढोने का काम कर रहे हैं.

पहाड़ी इलाकों में ज्यादा डिमांड

सारन निवासी मुकेश कुमार और विशाल ने बताया कि शुरूआती दौर में उनके पूर्वज खच्चर को रेहड़े में जोड़कर सामान इत्यादि ढोने का काम करते थे. लेकिन मशीनरी युग में धीरे-धीरे यह काम खत्म हो गया और इन खच्चरों की मांग पहाड़ी क्षेत्र में अधिक होती है, इसलिए उन्होंने यहां खच्चर पालन का व्यवसाय शुरू कर दिया.

क्या होती है कीमत और डाइट

उन्होंने बताया कि इसके लिए करीब 40 हजार से डेढ़ लाख में खच्चर का बच्चा खरीदकर लाते हैं और इसके बाद पालन पोषण होने के बाद दो से ढाई लाख रुपए तक का बिक जाता है. उन्होंने कहा कि करीब एक-डेढ़ साल तक इन खच्चरों को पालते हैं और खच्चरों को रखने के लिए बड़ा अस्तबल और मौसम के अनुसार छत का भी इंतजाम किया जाता है.

उन्होंने बताया कि इन्हें खाने के रूप में चने, चौकर, भूसी और हरी घास व अन्य चीजें दी जाती हैं और इसके बाद यह बेचने लायक हो जाते हैं. इस समय दोनों भाईयों के पास करीब 30 खच्चर हैं.

विशाल मेले में होती है खरीदारी

मुकेश और विशाल ने लोकल 18 को ज्यादा जानकारी देते हुए बताया कि स्थानीय तौर पर इनके खरीदार ना के बराबर हैं और बिलासपुर के कपाल मोचन में गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व पर आयोजित विशाल मेले में इनकी मंडी लगती है. माना जाता है कि उत्तरी हरियाणा में केवल यहीं एकमात्र घोड़ों और खच्चरों की मंडी लगती है, जिसमें उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर और अन्य स्थानों से खरीदार आते हैं और खच्चरों को खरीदकर ले जाते हैं. यह खरीदार उनसे खरीदकर फिर आगे जाकर महंगे दामों पर सामान और यात्री ढोने वालों को बेच देते हैं. उन्होंने कहा कि रंग, कद और नस्ल के आधार पर इनका मूल्य तय होता है.

नहीं मिलती कोई सरकारी सहायता

उन्होंने बताया कि गाय, भैंस, भेड़-बकरी, सुअर समेत अन्य पशुओं के पालन पर सरकार सब्सिडी युक्त आर्थिक सहायता प्रदान करती है, लेकिन खच्चर पालन में उन्हें कोई वित्तीय मदद नहीं मिलती. उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले उनकी एक खच्चर मर गई, जिससे उन्हें लाखों का नुकसान हुआ. ऐसे में सरकार की तरफ से उनके लिए भी योजना बनाई जाए, क्योंकि खच्चरों के लिए कोई बीमा योजना भी नहीं है. यदि खच्चर पालकों को मदद मिले तो इससे उन्हें प्रोत्साहन मिल सकता है.

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