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एन. रघुरामन का कॉलम: एलएनटी के लिए पृथ्वी की गुहार हमने नहीं सुनी तो सरकार ने डीआरएस लगा दिया! Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:  एलएनटी के लिए पृथ्वी की गुहार हमने नहीं सुनी तो सरकार ने डीआरएस लगा दिया! Politics & News

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11 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

अगर आप इस सर्दी में गोवा घूमने जा रहे हैं, तो आपको ज्यादातर पैकेज्ड उत्पादों के एमआरपी से ज्यादा दाम चुकाना पड़ेंगे। ऐसा नहीं है कि खुदरा विक्रेता आपको ठग रहे हैं। आपको अतिरिक्त पैसे वापस मिल जाएंगे! लेकिन तुरंत नहीं! उलझन में हैं? तो आगे पढ़ें।

गोवा पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने डिपॉजिट रिफंड सिस्टम (डीआरएस) लागू किया है। इस नई पद्धति के तहत, आप किसी भी गैर-बायोडिग्रेडेबल उत्पाद की खरीद के लिए अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करते हैं। यह शुल्क तब वापस किया जाएगा, जब उपभोक्ता किसी कलेक्शन पॉइंट पर उत्पाद की पैकेजिंग वापस करेगा।

डीआरएस-योग्य उत्पाद के प्रकार के आधार पर जमा राशि अलग-अलग हो सकती है। वर्तमान में, प्लास्टिक की बोतलों और एल्युमीनियम के डिब्बों पर 5 रुपए का डिपॉजिट लागू होता है, जबकि कांच की बोतल पर 10 रुपए।

जब आप कोई डीआरएस-योग्य उत्पाद खरीदते हैं, तो यह छोटी और पूर्णतया रिफंडेबल जमा राशि आपसे एमआरपी के ऊपर ली जाएगी। आप इन कंटेनरों को उनकी पैकेजिंग पर छपे एक यूनीक क्यूआर कोड और डीआरएस लोगो के माध्यम से पहचान सकते हैं।

गोवा में आबादी से दस गुना अधिक पर्यटक आते हैं, और इससे सफाई-व्यवस्था के लिए नगरीय-निकायों पर बहुत बोझ पड़ता है। डीआरएस प्रणाली उसके मौजूदा कचरा-संग्रह और प्रोसेसिंग के तंत्र को मजबूत करेगी।

डीआरएस प्रदूषण में योगदान देने वाले सभी लोगों पर जिम्मेदारी भी डालता है, चाहे वे स्थानीय हों या पर्यटक। राज्य सरकार का मानना ​​है कि डीआरएस रीसाइक्लिंग उद्योग को भी विकसित करेगा, ग्रीन-रोजगार सृजित करेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान देगा। सरकार बोली लगाने वालों को डीआरएस की प्रणाली विकसित करने के लिए आमंत्रित करेगी, ताकि उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करके उनसे उपयोग किए जा चुके उत्पादों का संग्रह ​किया जा सके।

अब आप सोच रहे होंगे यह एलएनटी क्या है? चलिए मैं आपको कर्नाटक ले चलता हूं, जहां यह अभियान लोकप्रिय हो रहा है। हम सभी जानते हैं कि देश भर में दर्शनीय स्थल और एडवेंचर से जुड़ी जगहें बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित करती हैं, लेकिन साथ ही वे कचरे की समस्या से भी जूझती हैं।

ऐसे में एलएनटी यात्रा के लिए सामान पैक करने के तरीके को बदलने का प्रयास है। तटीय कर्नाटक में, आउटडोर गतिविधियों में स​म्मिलित होने वाले जागरूक लोगों का बढ़ता समुदाय इस चुनौती को समझता है और आउटडोर में समय बिताने के अपने तरीकों को बदल रहा है।

आज वे कैम्प फायर से दूर हो गए हैं। वे अपना कचरा वापस ले जाते हैं और सचमुच में अपने पीछे ‘कोई निशान नहीं छोड़ते’ (लीव नो ट्रेस)। यही एलएनटी है, जो 20वीं सदी के मध्य की अवधारणा है। यह सबसे पहले जंगलों में आउटडोर मनोरंजक गतिविधियों के कारण होने वाली पारिस्थितिक क्षति के प्रत्युत्तर के रूप में अमेरिका में उत्पन्न हुई थी।

एलएनटी का सार वैसे उत्तरदायी प्रयासों को प्रोत्साहित करने में है, जो पर्यावरण पर प्रभाव को कम करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि आउटडोर की सुंदरता और अक्षुण्णता आने वाली पीढ़ियों के लिए कायम रहे।

मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के लिए प्रो. गणेश नायक द्वारा समन्वित आउटडोर अध्ययन केंद्र एलएनटी सिद्धांतों के पालन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यह केंद्र छात्रों को साइकिल चलाने, ट्रेकिंग और कयाकिंग जैसी कई तरह की आउटडोर गतिविधियों के लिए प्रशिक्षित करता है, जिसमें सस्टेनेबिलिटी पर जोर दिया जाता है। हर अभियान के लिए वे अपने साथ खाली कंटेनर और कटलरी ले जाते हैं।

वे होटलों से डिस्पोजेबल वस्तुओं का उपयोग करने से बचने सहित पर्यावरण के अनुकूल प्रयासों की आवश्यकता का पहले से अनुमान लगाते हैं। प्रोफेसर कहते हैं, एलएनटी प्राकृतिक परिवेश के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए समर्पित नैतिक सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करता है।

फंडा यह है कि अगर हम अपने ग्रह का ख्याल नहीं रखेंगे और एलएनटी नियमों का पालन नहीं करेंगे तो हमें सरकारों को डीआरएस की तरह अधिक भुगतान करना होगा।

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