गांव बूरे निवासी व स्वतंत्रता सेनानी बनवारी लाल भारद्वाज ने देश को आजादी दिलाने में अतुलनीय योगदान दिया। बनवारी लाल भारद्वाज को विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने के आरोप में आसाम में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें छह माह सजा सुनाई गई। बेशक बनवारी लाल भारद्वाज ने देश को स्वतंत्रता दिलवाने में काफी योगदान दिया लेकिन आज उनके उत्तराधिकारी अपने हकों के लिए लड़ रहे हैं। गांव बूरे निवासी व स्व. बनवारी लाल के बेटे अंजनी शर्मा बताते हैं कि उनके पिता का जन्म 15 अगस्त 1914 को हुआ था।
उनके दादा का नाम मूलचंद भारद्वाज था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना कटू-कूट कर भरी हुई थी। वह महात्मा गांधी के विचारों से भी बहुत प्रभावित थे। काफी कम उम्र में ही वह आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। सबसे पहले उन्हें सिवानी में स्वतंत्रता सेनानियों का सहयोग करने पर गिरफ्तार किया गया था। उस समय उन्हें 5 रुपये जुर्माना किया गया था। दादी बुरजी देवी ने वह जुर्माना भरा और उन्हें जेल छुड़वाया था।
असहयोग आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने उनके पिताजी की ड्यूटी आसाम में लगा दी थी। असहयोग आंदोलन में विदेशी कपड़ों के बहिष्कार को लेकर वह आसाम के डूमडूमा शहर में पकड़े गए और उन्हें 6 माह की जेल और 25 रुपये जुर्माने की सजा हुई। जुर्माना न भरने पर उन्हें डेढ़ माह की और सजा हुई। सजा पूरी करने के बाद वह हिसार आ गए। साल 1932 में उन्हें हिसार की अदालत ने 6 माह की कठोर कारावास और 25 रुपये की जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना न भरने पर उन्हें डेढ़ माह की अतिरिक्त सजा काटनी पड़ी फरवरी 1932 में उन्हें लाहौर जेल स्थानांतरित कर दिया गया।