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- Jean Dreze’s Column It Is Important That Health Insurance Actually Becomes Social Insurance As Well
ज्यां द्रेज प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री व समाजशास्त्री
स्वास्थ्य बीमा योजनाएं गरीब मरीजों को कुछ राहत जरूर देती हैं, लेकिन इन योजनाओं में कई खतरे भी हैं। पिछले दस सालों में भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में एक उल्लेखनीय बदलाव आया है। स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की पहुंच काफी बढ़ गई है।
इनमें प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) नामक राष्ट्रीय योजना है, जिसे केंद्र सरकार वित्तपोषित करती है। लगभग सभी राज्य सरकारों ने भी अपनी स्वास्थ्य बीमा योजनाएं लागू कर दी हैं। सभी को जोड़कर देखा जाए तो राज्यों की स्वास्थ्य बीमा योजनाएं पीएमजेएवाई से बड़ी हैं। कुछ राज्यों में, अधिकांश लोग अब स्वास्थ्य बीमा के दायरे में हैं।
स्वास्थ्य बीमा को समझने के लिए हमें व्यावसायिक और सामाजिक बीमा के अंतर को समझना होगा। व्यावसायिक बीमा का उद्देश्य निजी मुनाफा है। सामाजिक बीमा सार्वजनिक लाभ के लिए है। उदाहरण के लिए, कनाडा और अमेरिका को देखें। अमेरिका में, स्वास्थ्य बीमा व्यवसाय है।
स्वास्थ्य सेवा भी अपने आप में व्यवसाय ही है। नतीजतन अमेरिका की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली सबसे महंगी, अक्षम और असमान है। समाज के बड़े हिस्से के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है। ऐसे देश में जहां स्वास्थ्य सेवा बहुत महंगी है, यह एक आपदा है।
कनाडा सामाजिक बीमा का अच्छा उदाहरण है। वहां स्वास्थ्य बीमा अनिवार्य और सार्वभौमिक है। इसे कर से वित्तपोषित किया जाता है। स्वास्थ्य सेवा निःशुल्क है। निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र दोनों हैं, लेकिन निजी अस्पताल मुख्य रूप से गैर-लाभकारी हैं। सभी स्वास्थ्य केंद्र बीमा के दायरे में हैं। यह एक प्रभावी, समतावादी और लोकप्रिय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली है।
भारत की स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में सामाजिक बीमा के साथ-साथ व्यावसायिक बीमा की भी कुछ विशेषताएं हैं। इन योजनाओं का प्रबंधन करने वाली एजेंसियां निजी कंपनियों के बजाय ज्यादातर सार्वजनिक संस्थान हैं, लेकिन इन योजनाओं में शामिल कई अस्पताल व्यावसायिक हैं। इसी तरह, सरकार लाभार्थियों की ओर से बीमा प्रीमियम का भुगतान करती है, लेकिन स्वास्थ्य बीमा का कवरेज सार्वभौमिक नहीं है।
भारत की स्वास्थ्य बीमा योजनाएं निश्चित रूप से गरीब मरीजों को राहत देती हैं, जब सार्वजनिक सुविधाएं अपर्याप्त होती हैं। हालांकि, इन योजनाओं में कई खतरे भी हैं। पहले, स्वास्थ्य बीमा प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के बजाय अस्पताल में उपचार को प्राथमिकता देता है। दूसरा, वे निजी स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देते हैं, जबकि भारत में व्यावसायिक स्वास्थ्य सेवा का प्रभाव पहले ही बहुत ज्यादा है। तीसरा, स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में भ्रष्टाचार और दुरुपयोग की संभावना अधिकतर है।
स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के अध्ययन से इन योजनाओं के कई और चिंताजनक पहलू सामने आते हैं। उदाहरण के लिए, गरीब लोग अक्सर इनका लाभ नहीं उठा पाते; कई रोगियों से निजी अस्पताल पैसे वसूलते हैं; दावों के भुगतान में अक्सर देरी होती है; और कुछ निजी अस्पताल इस योजना का फायदा उठाने के लिए अनावश्यक उपचार करते हैं।
सरकारी अस्पतालों में भी स्वास्थ्य बीमा से समस्याएं पैदा होती हैं। इससे कई बार बीमाकृत और गैर-बीमाकृत रोगियों के बीच भेदभाव होता है। अस्पताल बीमाकृत मरीजों को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि उनका इलाज करने से उन्हें कुछ पैसे मिल जाते हैं।
गैर-बीमाकृत रोगियों को सही उपचार मिलने की कोई गारंटी नहीं है। कभी-कभी, उन पर उपचार प्राप्त करने से पहले स्वास्थ्य बीमा के लिए पंजीकरण करने का दबाव भी डाला जाता है। इससे देरी और अन्य परेशानियां हो सकती हैं।
ये समस्याएं तब उत्पन्न होती हैं, जब स्वास्थ्य बीमा वास्तव में सामाजिक बीमा नहीं होता। आम जनता स्वास्थ्य सेवा में सार्वजनिक निवेश की कमी की कीमत चुका रही है। सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अधिक खर्च करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसके बिना, अधिक से अधिक लोग स्वास्थ्य बीमा का उपयोग करके निजी अस्पतालों की ओर भागेंगे। इससे निजी मुनाफा तो बढ़ेगा, लेकिन स्वस्थ जीवन दूर रहेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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ज्यां द्रेज का कॉलम: जरूरी है कि स्वास्थ्य बीमा वास्तव में सामाजिक बीमा भी बने
