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नीरज कौशल का कॉलम: रिसर्च और एआई में निवेश के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते Politics & News

नीरज कौशल का कॉलम:  रिसर्च और एआई में निवेश के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते Politics & News

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3 घंटे पहले

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नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर

यूके को पीछे छोड़कर भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। एक-दो वर्षों में वह जापान से आगे निकलकर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन जाएगा। देश में कोविड के बाद हुई आर्थिक वृद्धि को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

बीते तीन वर्षों में जब विश्व की अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल मची थी तो भारत की जीडीपी तकरीबन 8% की दर से बढ़ी है। यह प्रभावी है। फिर भी भारत की बढ़ती आर्थिक क्षमताओं से अधिक उत्साहित होना क्या तर्कसंगत है? हमें विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के सांख्यिकीय मायनों को समझ लेना चाहिए।

भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में हमारी रैंकिंग अब भी निम्न-मध्यम आय वाले देश की है। पर-कैपिटा नॉमिनल जीडीपी में भारत 194 देशों में 143वें स्थान पर है और प्रति व्यक्ति क्रय शक्ति (पीपीपी) में 125वें स्थान पर। इन रैंकिंग्स में हमारी स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है, लेकिन बहुत अधिक नहीं।

शायद ये आंकड़े हमें थोड़ा विनम्र बनाएं। लेकिन हमें समग्र जीडीपी के लिहाज से भी दुनिया के शीर्ष पांच देशों में खड़े होने की अपनी महत्ता को कमतर नहीं आंकना चाहिए। चीन का उदाहरण लें। नॉमिनल पर-कैपिटा जीडीपी के लिहाज से वह दुनिया में 69वें और पीपीपी पर-कैपिटा जीडीपी के मानकों पर 72वें क्रम पर है। इन आंकड़ों के बावजूद दुनिया में उसके दबदबे पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उसकी आर्थिक और रणनीतिक ताकत दुनिया में अमेरिका के बाद सबसे अधिक है और कहीं-कहीं तो उससे भी अधिक है।

दुनिया पर भारत के प्रभाव को भी उसकी प्रति व्यक्ति रैंकिंग के बजाय उसकी ओवरऑल जीडीपी रैंकिंग के आधार पर ही मापा जाना चाहिए। लेकिन विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं और भारत के बीच जो अंतर है, हमें उसको भी ध्यान में रखना होगा। अमेरिका की नॉमिनल जीडीपी 30 ट्रिलियन डॉलर की है और चीन की 19 ट्रिलियन डॉलर की। जबकि भारत की अभी महज 3.9 ट्रिलियन डॉलर ही है।

2018 में भारत सरकार ने कहा था कि 2025 तक हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था होंगे। बहुत-से विशेषज्ञों ने उस समय इस लक्ष्य पर संशय जताया था। कोविड के दो सालों में भी भारत की अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचा। लेकिन भारत के 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनने का सपना देख रहे लोग इस बात पर निराश होंगे कि हम लक्ष्य से पिछड़ गए हैं। 2018-19 में भारत की जीडीपी 2.8 ट्रिलियन डॉलर थी और 2024-25 में 3.9 ट्रिलियन डॉलर है। हम 1.1 ट्रिलियन डॉलर पीछे हैं। अब आशा है कि हम यह लक्ष्य 2029 तक हासिल कर लेंगे।

अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सेक्टरों में दुनिया भारत के बढ़ते प्रभाव को मानती है, लेकिन इनका भी विश्लेषण करें तो मिली-जुली-सी कहानी ही सामने आती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा एआई यूजर है और दुनिया की 16 प्रतिशत एआई प्रतिभा भी हमारे यहां है।

भारत चाहता है कि एआई के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व वह करे। फिर भी इस क्षेत्र में निवेश के मामले में हम दूसरे देशों से बहुत पीछे हैं। स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का अनुमान है कि एआई सेक्टर में भारत में सिर्फ 1.2 अरब डॉलर का ही निजी निवेश हुआ है।

अमेरिका में सर्वाधिक 109 अरब डॉलर का निवेश हुआ है, लेकिन चीन में भी भारत से सात गुना अधिक निवेश हुआ है। इकोनॉमिस्ट के एक नए लेख में सवाल उठाया गया है कि क्या भारत एआई के क्षेत्र में विजेता बन पाएगा? लेख का निष्कर्ष यह है कि भारत को अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

हाल के दिनों में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की सबसे चर्चित खबर यह रही है कि एपल अमेरिका में बिकने वाले अपने 20 प्रतिशत स्मार्ट फोन की असेंबलिंग भारत में कर रहा है और 2026 तक यह आंकड़ा 100 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। यह निश्चित ही प्रभावित करता है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि भारत में सिर्फ फोन की असेंबलिंग हो रही है, लगभग सभी पुर्जे तो अब भी चीन में बन रहे हैं।

भविष्य की आर्थिक वृद्धि का सबसे बड़ा जरिया अनुसंधान एवं विकास (आर-एंड-डी) क्षेत्र में निवेश होता है, लेकिन दु:खद है कि भारत में सार्वजनिक और निजी- दोनों ही क्षेत्र इसमें निवेश को लेकर हाथ रोके बैठे हैं। भारत अपनी जीडीपी के अनुपात में महज 0.64 प्रतिशत ही आर-एंड-डी में खर्च करता है, जबकि चीन 2.4 और अमेरिका अपनी विशाल जीडीपी का 3.5 प्रतिशत हिस्सा इस पर खर्च करता है।

भारत अपनी जीडीपी के अनुपात में 0.64% ही आर-एंड-डी में खर्च करता है, जबकि चीन 2.4 और अमेरिका अपनी विशाल जीडीपी का 3.5% हिस्सा खर्च करता है। अपनी संभावनाओं का लाभ लेना है तो इसे बदलना होगा। (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

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