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श्री कृष्ण मंदिर सेक्टर-14 में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में प्रवचन करते हुए श्री धाम गोदा विहार मंदिर महंत स्वामी शाश्वत आचार्य ने कहा कि श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता निस्वार्थ थी। श्रीकृष्ण द्वारिकाधीश थे जबकि सुदामा निर्धन था। उनमें कोई समानता नहीं थी, लेकिन इसके बाद भी उनकी मित्रता को आज भी स्मरण किया जाता है। जीवन में सच्चे मित्र का होना आवश्यक होता है। अच्छे मित्र हमेशा सुख-दुख में काम देते हैं। मित्रता में अमीरी और गरीबी का कोई भेद नहीं रहता है। हर व्यक्ति को भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की पवित्र मित्रता से सीख लेनी चाहिए, लेकिन आज के समय में लोग मित्रता सामाजिक प्रतिष्ठा देखकर करते हैं। उन्होंने कहा कि मित्रता हैसियत से नहीं दिल से की जाती है भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा ने एक ही गुरु के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की थी इसके बाद श्रीकृष्ण मथुरा चले गए। जबकि सुदामा अपने घर लेकिन इसके बाद भी भगवान श्रीकृष्ण सुदामा को कभी नहीं भूले सुदामा बहुत निर्धन थे तब उनकी धर्मपत्नी ने कहा कि वह अपने मित्र श्रीकृष्ण से सहायता मांग लें। सुदामा अपने मित्र श्रीकृष्ण के महल पहुंचते हैं। वहां पर सुदामा को द्वारपाल रोक लेता है। लेकिन सुदामा की आवाज सुनकर श्रीकृष्ण दौड़कर चले आए। सुदामा को अपने गले से लगाया और उन्हें अपने सिंहासन पर बिठाया साथ ही जब उन्हें विदा किया उससे पहले ही उन्हें बताए बिना और उनकी मदद मांगे बिना ही सबकुछ दे दिया। आज के समय में लोगों के लिए श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता अनुकरणीय है । बुधवार 11 जून को सुबह हवन और भंडारे के साथ कथा को दिया जाएगा विश्राम।
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करनाल: श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता को लेकर भागवत कथा में सुनाया गया प्रसंग


