फोरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (सीएफएसएल) चंडीगढ़ और पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) के वैज्ञानिकों ने एक कमाल की खोज की है।
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एक ऐसा डिवाइस विकसित किया है, जो खून और पेशाब में जहर की पहचान अब पहले से कहीं अधिक तेज और सटीक तरीके से कर सकेगा। रोटेटिंग पेपर डिस्क (आरपीडी) नामक इस तकनीक को पेटेंट भी मिल चुका है। न केवल यह डिवाइस जांच की रफ्तार बढ़ाएगा, बल्कि इसकी लागत भी बेहद कम है।
आरपीडी को सीएफएलएल चंडीगढ़ की निदेशक डॉ सुखमिंदर कौर के मार्गदर्शन में डॉ. राजीव जैन और पीयू की भारती जैन व अन्य ने मिलकर बनाया है। इस नई तकनीक के विकसित होने से पहले पारंपरिक लिक्विड लिक्विड एक्सट्रैक्शन (एलएलई) तकनीक से विभिन्न प्रकार के जैविक नमूनों (खून व यूरिन) से मादक पदार्थों और अन्य दवाओं की जांच होती थी।
एलएलई तकनीक में डीप्रोटीनाइजेशन, फेज सेपरेशन, सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन, सेंट्रीफ्यूगेशन, वॉशिंग और इवापोरेशन जैसे कई जटिल चरण होते हैं, जबकि आरपीडी में केवल दो स्टेप, एब्जॉर्प्शन और डीसॉर्प्शन से सैंपल तैयार हो जाता है। सॉल्वेंट की खपत भी आरपीडी में बेहद कम सिर्फ 1 से 2 एमएल है, जबकि पहले में 100–200 एमएल तक सैंपल की जरूरत पड़ती थी। सैंपल कंजंप्शन में भी आरपीडी बेहतर है। खून के सैंपल के मामले में केवल 1 एमएल काफी होता है, जबकि एलएलई में 4–5 एमएल तक जैविक फ्लुइड चाहिए होता है और टिशू सैंपल के लिए 1 -5 ग्राम सामग्री लेनी पड़ती है।
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