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शशि थरूर का कॉलम: रूस के बाद मोदी की यूक्रेन यात्रा के क्या मायने हैं? Politics & News

शशि थरूर का कॉलम:  रूस के बाद मोदी की यूक्रेन यात्रा के क्या मायने हैं? Politics & News

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6 घंटे पहले

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शशि थरूर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन के दौरे पर निकल चुके हैं। मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के साथ उनकी विवादास्पद मुलाकात को अभी एक महीने से थोड़ा अधिक ही समय हुआ है। वह भेंट-वार्ता तब हुई थी, जब वॉशिंगटन में नाटो का शिखर सम्मेलन चल रहा था।

मोदी द्वारा पुतिन को गले लगाने की तस्वीरों ने तब यूक्रेन में व्यापक आक्रोश पैदा किया था, क्योंकि उसी दिन रूस ने कीव में बच्चों के एक अस्पताल पर बमबारी की थी और यूक्रेन में हवाई हमलों में कम से कम 42 नागरिकों को मार डाला था। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने इस भेंट-वार्ता को शांति प्रयासों के लिए झटका बताया था। तो अब मोदी यूक्रेन क्यों जा रहे हैं?

वास्तव में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही भारत ने बहुत कड़ा संतुलन साधने की कोशिश की है। इन दो वर्षों की अवधि में भारत ने रूस के साथ अपने पुराने संबंधों के साथ ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति अपने समर्थन को कायम रखने के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष किया है।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर सम्प्रभु राष्ट्रों की सीमाओं के सम्मान और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बल प्रयोग पर रोक जैसे सिद्धांतों को सामने रखता है। लेकिन अगर भारत रूस से बिगाड़ नहीं करना चाहता तो यह भी समझा जा सकता है। भारत अपने 40% से ज्यादा हथियार रूस से खरीदता है।

यह ठीक है कि समय के साथ इसमें कमी आ रही है, क्योंकि भारत अब अमेरिका, फ्रांस, इजराइल और अन्य पश्चिमी देशों से भी तेजी से हथियार खरीद रहा है। लेकिन अतीत की विरासत वर्तमान पर भारी पड़ रही है : भारत के 86% सैन्य उपकरण रूसी मूल के हैं, और उनके स्पेयर पार्ट्स अभी भी उसके लिए जरूरी हैं।

दूसरी तरफ, पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूस के साथ भारत के ऊर्जा-संबंध और भी गहरा गए। आकर्षक छूट के कारण भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल का आयात 2021-22 में 2.4 अरब डॉलर से बढ़कर 2023-24 में 46.5 अरब डॉलर का हो गया।

रूस अब भारत का प्रमुख तेल और गैस का आपूर्तिकर्ता बन गया है और इस व्यवस्था को पश्चिमी देश, यह मानते हुए कि भारत की खरीद वैश्विक तेल कीमतों में उछाल को रोक रही है, चुपचाप स्वीकार करते हैं।

इन्हीं सब कारणों से भारत ने अब तक यूक्रेन-युद्ध के लिए रूस की आलोचना करने से इनकार किया है, यूक्रेन में संघर्ष-विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्तावों पर वोटिंग से परहेज किया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि मोदी की मॉस्को यात्रा के बाद भारत-रूस के संयुक्त बयान में ‘यूक्रेन के आसपास’ हो रहे संघर्ष का उल्लेख किया गया था, ‘यूक्रेन में’ हो रहे संघर्ष का नहीं, जिसका अर्थ था कि भारत यूक्रेन की धरती पर रूस के कुछ क्षेत्रीय दावों को मान्यता भी देता है।

लेकिन भारत ने रूसी आक्रमण का समर्थन नहीं करने को लेकर भी सावधानी दर्शाई है। 2022 और 2023 में, मोदी ने द्विपक्षीय शिखर सम्मेलनों के लिए मॉस्को की यात्रा करने से इनकार कर दिया था। सितंबर 2022 में, उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में, उन्होंने पुतिन से खुले तौर पर कहा था कि आज का युग युद्धों का युग नहीं है।

मोदी ने मॉस्को की अपनी यात्रा के दौरान भी इन भावनाओं को दोहराया और कहा कि युद्ध का समाधान युद्ध के मैदान में नहीं पाया जा सकता है। जहां अमेरिकी सरकार ने भारत के इस संतुलनकारी रवैए को स्वीकार किया है, वहीं उसने मोदी की मॉस्को यात्रा पर भारत सरकार के साथ अपनी निराशा भी साझा की।

अमेरिका ने दशकों से भारत को चीन के साथ बढ़ते टकराव में अपना एक लोकतांत्रिक सहभागी माना है, और रूस के साथ भारत के संबंध दोनों के बीच दरार पैदा कर सकते हैं। जुलाई में भारत-रूस के संयुक्त वक्तव्य में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आधार पर शांति प्रस्तावों का स्वागत किया गया था।

मोदी अपनी यूक्रेन यात्रा का उपयोग इसकी हकीकत का पता लगाने के लिए कर सकते हैं। मोदी यूक्रेन को मानवीय सहायता भी प्रदान कर सकते हैं। युद्ध शुरू होने के तुरंत बाद भी भारत ने यूक्रेनी सरकार को 90 टन राहत सामग्री भेजी थी। मोदी की यूक्रेन यात्रा पर रूस की ओर से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने की संभावना है, ठीक वैसे ही जैसे उनकी मॉस्को यात्रा से अमेरिका नाराज हुआ था।

भारतीय कूटनीति के लिए चुनौती यह है कि वह अपने निजी संदेशों को दोनों देशों की चिंताओं को दूर करने के लिए किस तरह से संतुलित करे, साथ ही इस यात्रा को एक साहसिक नई पहल के रूप में कैसे पेश करे। ऐसा सफलतापूर्वक कर पाना भारत के लिए एक भू-राजनीतिक जीत होगी।

मोदी की यूक्रेन यात्रा पर रूस की ओर से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने की संभावना है, ठीक वैसे ही जैसे उनकी मॉस्को यात्रा से अमेरिका नाराज हुआ था। भारत के सामने चुनौती है कि दोनों ध्रुवों के बीच संतुलन कैसे कायम करे।

(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

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