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- N. Raghuraman’s Column Did You Know There Is A Connection Between ‘sitting Addiction’ And ‘World No Tobacco Week’?
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
उन दिनों, जब मैं संपादक हुआ करता था, तब अगर मेरे रिपोर्टर अपनी डेस्क पर नहीं मिलते थे, तो मैं सीधे वॉटर कूलर के पास पहुंच जाता था। उनमें से कम से कम दो लोग वहां गहरी चर्चा करते हुए मिल जाते थे। मुझे देखते ही वे बिना पूछे कहते, “बस पानी पीने आए थे!” लेकिन आजकल के दफ्तरों में वॉटर कूलर के पास खड़े होकर, बीती रात देखे गए टीवी सीरियल की चर्चा करने वाले दिन चले गए हैं।
आज अगर आप चाहते हैं कि जेन ज़ी को किसी शो के बारे में पता चले, तो उस शो की रील उनकी सोशल मीडिया फीड पर वायरल होनी चाहिए, कई चैनल मालिक इस बात को बखूबी जानते हैं। टीवी सीरियल निर्माताओं के लिए वॉटर कूलर्स के जरिए इन युवा दर्शकों तक पहुंचना मुश्किल है। इसलिए ताज्जुब की बात नहीं कि वे अब छोटे-छोटे कंटेंट सोशल मीडिया पर डालते हैं।
इससे मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि ये जेन ज़ी छोटी फीड किस तरह देखती है। इस शुक्रवार को जब मैं एक ग्लोबल आईटी कंपनी गया, तो वहां मेरे दिमाग का एंटीना एकदम सतर्कता वाले मोड में था, वहां मैंने देखा कि जेन ज़ी के लोग सबसे पहले बैठने का मौका तलाश रहे थे, फिर चाहे कहीं भी हो।
मैंने देखा कि एक युवा की नजरें कमरे में खाली कुर्सी ढूंढ रही थीं। उसके दिमाग में चल रहा था, “वहां एक खाली कुर्सी है। अगर मैं जल्दी पहुंचा तो मुझे मिल जाएगी।” दूसरा व्यक्ति जो कुछ सेकंड बाद आया, उसने सोचा, “मैं बिना बैठे मीटिंग में शामिल नहीं होऊंगा।
मेरे पास क्लाइंट कॉल है। अगर मुझे बैठने की जगह नहीं मिली तो मैं माफी मांग लूंगा।” मैंने सोचा कि अगर दोनों एक साथ कमरे में आते और दोनों की नजरें उसी खाली कुर्सी पर होतीं, तो यह एक म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता जैसा होता।
मीटिंग के बाद मेट्रो में यात्रा करते समय मैंने उसी जेन ज़ी वाले युवा को देखा जो खड़ा था और उसकी नजरें यह गुणा-भाग कर रही थीं कि कौन सा व्यक्ति अगले स्टेशन पर उतरेगा। जब उसकी गणना गलत हो गई, तो उसके चेहरे पर स्पष्ट निराशा दिखी।
वह खड़े होने की जगह बदलता रहा ताकि अगले स्टेशन पर उतरने वाले व्यक्ति को देख सके। यही जेनरेशन एयरपोर्ट पर भी देखी जा सकती है, जहां सभी सीटें भरी होती हैं, तो वे फर्श पर आराम से बैठ जाते हैं। रेलवे स्टेशनों पर भी यही हाल है। कुछ इसे आधुनिक स्टाइल मानते हैं और कुछ सोचते हैं “किसे परवाह है।” याद रखिए इसका संबंध दूसरों की राय से नहीं, बल्कि खुद से जुड़ा है।
दुर्भाग्यवश, वे यह नहीं समझते कि वे बैठने की लत के चरम पर पहुंच चुके हैं! अगर आप भी लंबे समय तक बैठते हैं, तो यह चेतावनी आपके लिए है। इस सप्ताह प्रकाशित एक शोध के अनुसार, बैठने की लत आपके मस्तिष्क को सिकोड़ सकती है, जिससे संज्ञानात्मक समस्याएं हो सकती हैं और जीवन के बाद के वर्षों में विभिन्न प्रकार के डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है।
एक लेख में कहा गया है, “बैठना नए तरह का धूम्रपान है।” हर साल 31 मई को मनाया जाने वाला ‘वर्ल्ड नो टोबैको डे’ तंबाकू के उपयोग के खतरों के बारे में जनता को जागरूक करता है। आपको राज की बात बताऊं? जो लोग बैठे रहते हैं, वे भले ही नॉन-स्मोकर्स हों, लेकिन जैसे स्मोकर्स खिड़की से सिगरेट बट फेंकने के लिए उठते हैं, वैसे ही बैठने की इस आदत को खिड़की से बाहर फेंकने के लिए उठिए, क्योंकि यह भी स्मोकिंग से कम नहीं है! शोधकर्ताओं का तो यही कहना है।
फंडा यह है कि लंबे समय तक बैठना एक लत की तरह है, जो शुरू करना आसान है लेकिन छोड़ना मुश्किल। इस आदत को छोड़ दें, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब ‘एल्कोहलिक एनोनिमस’ की तरह ही ‘सिटहोलिक्स एनोनिमस’ जैसे संगठन भी मशरूम की तरह फैलने लगेंगे।
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