साल 2025 की पहली तिमाही में हरियाणा में 4,100 से अधिक लोग लापता हुए, यानी प्रतिदिन औसतन 45 से अधिक व्यक्ति गायब हो रहे हैं। इस दौरान एक हजार से अधिक अपहरण के मामले दर्ज हुए हैं। हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने गुमशुदगी और अपहरण के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए पुलिस महानिदेशक से 8 सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है।
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जस्टिस ललित बत्रा की अध्यक्षता वाले पूर्ण आयोग के आदेशानुसार गुमशुदा व्यक्तियों का मुद्दा केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है। यह गहन मानवीय पीड़ा और संकट को दर्शाता है। गुमशुदा लोगों के परिवारों को गंभीर मानसिक आघात का सामना करना पड़ता है, विशेषकर तब जब उन्हें यह जानकारी तक नहीं होती कि उनके प्रियजन जीवित हैं या नहीं। इस असमंजस से उत्पन्न मानसिक तनाव, अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट जैसी समस्याएं लंबे समय तक बनी रहती हैं। यहां तक कि जब गुमशुदा व्यक्ति मिल भी जाते हैं, तब भी उनके और उनके परिवारों के लिए सामान्य जीवन में वापसी आसान नहीं होती।
इसके अतिरिक्त, हरियाणा मानव अधिकार आयोग यह भी नजरअंदाज नहीं कर सकता कि गुमशुदा व्यक्ति शोषण और आपराधिक गतिविधियों के लिए अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। रिपोर्ट्स और पूर्ववर्ती घटनाएं दर्शाती हैं कि विशेष रूप से महिलाएं, बच्चे और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी, यौन शोषण और अवैध अंग व्यापार जैसी आपराधिक गतिविधियों के शिकार बनते हैं। कई मामलों में गुमशुदगी फिरौती के लिए हत्या या अन्य गंभीर अपराधों में परिवर्तित हो जाती है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों की समय पर और प्रभावी कार्रवाई की विफलता संगठित अपराधों को बढ़ावा देती है, जिससे समाज में भय और कानून व्यवस्था का संकट उत्पन्न होता है।