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Spinach Farming Tips: फरीदाबाद के साहुपुरा गांव के किसान बसंत पालक की खेती से परिवार का पालन कर रहे हैं. जानिए 30 दिनों में तैयार होने वाली इस फसल की मेहनत और मुनाफे की पूरी कहानी.
फरीदाबाद के साहुपुरा गांव के किसान पालक की खेती से जीवन यापन कर रहे हैं.
हाइलाइट्स
- पालक की फसल 30-32 दिनों में तैयार होती है.
- कीट लगने पर ‘505’ दवा का उपयोग करें.
- एक बीघा में 6 किलो बीज की लागत 2-2.5 हजार रुपये होती है.
विकास झा/फरीदाबाद: गर्मी की तेज लपटों के बीच जब ज़्यादातर लोग घरों में पंखे और कूलर के नीचे राहत तलाशते हैं, तब साहुपुरा गांव के किसान बसंत और उनके जैसे कई साथी खेतों में पसीना बहा रहे होते हैं. पालक की खेती उनके जीवन की धुरी है और यही मेहनत उनके परिवार की थाली में रोटी और सब्जी बनकर आती है.
बसंत बताते हैं कि खेती करना सिर्फ बीज बो देना नहीं होता, इसमें हर दिन की मेहनत जुड़ी होती है. पालक की फसल को तैयार करने में लगभग 30 से 32 दिन लगते हैं. सबसे पहले खेत को कई बार जोतना पड़ता है, चार से पांच बार ताकि मिट्टी नरम और उपजाऊ हो जाए. फिर ज़मीन को समतल कर बीज छिड़के जाते हैं और हल्के से मिट्टी में दबा दिए जाते हैं. इसके बाद पानी देने के लिए मेड बनाना पड़ता है और समय-समय पर सिंचाई करनी होती है.
बसंत बताते हैं कि एक बीघा ज़मीन में करीब 6 किलो बीज लगता है और इसकी लागत 2 से ढाई हजार रुपये तक आती है. अगर मौसम साथ दे और फसल पर कीट न लगें, तो मंडी में सौ गड्डियों की कीमत 200 से 250 रुपये तक पहुंच जाती है. लेकिन ये मुनाफा मेहनत के सामने छोटा ही लगता है. कीट लगने पर ‘505’ नाम की दवा का इस्तेमाल करना पड़ता है, जो एक तरह से फसल की ढाल बन जाती है.
बसंत का मानना है कि खेती एक दिन का काम नहीं, बल्कि जीने का तरीका है. खेत ही उनकी दुनिया है, और पालक के साथ-साथ वे दूसरी मौसमी सब्जियों की खेती भी करते हैं. उन्हीं से घर चलता है, बच्चों की पढ़ाई होती है, और त्यौहार मनाए जाते हैं.
इन किसानों की जिंदगी भले ही आसान न हो, लेकिन हर एक पत्ते में मेहनत की महक और पसीने की खुशबू होती है. पालक की हर गड्डी सिर्फ हरी सब्जी नहीं, बल्कि एक किसान के संघर्ष और आत्मनिर्भरता की कहानी होती है
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