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भास्कर ओपिनयन: आरक्षण और क्रीमीलेयर आख़िर मामला क्या है? Politics & News

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2 दिन पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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आरक्षण तो वर्षों से चला आ रहा है लेकिन ये क्रीमीलेयर क्या है? दरअसल, आरक्षण जो चला आ रहा है, वो जाति आधारित है। आज़ादी के वक्त हमारे नेताओं ने आरक्षण की यह व्यवस्था केवल दस साल के लिए इसलिए की थी कि जो जाति या जातियों का समूह वर्षों से शोषण झेलते आ रहा है उसका उत्थान हो सके।

बाद में वोट की राजनीति ने इस आरक्षण को स्थाई जैसा कर दिया। हर दस साल में इसकी मियाद बढ़ती गई और अब यह कभी न ख़त्म होने वाला प्रावधान बनकर रह गया। कभी न ख़त्म होने वाला इसलिए क्योंकि किसी सरकार में इसे ख़त्म करने या कम करने की हिम्मत नहीं है।

सही है, जिनका वर्षों तक शोषण होता रहा और आज भी हो रहा है, उनके उत्थान के ईमानदार प्रयास होने ही चाहिए। जातिगत आरक्षण इन्हीं प्रयासों का हिस्सा है। कुछ राज्यों को छोड़ दें तो फ़िलहाल देश में दो तरह के आरक्षण हैं। एक वो जो अनुसूचित जाति और जनजाति को बिना शर्त दिया जा रहा है। दूसरा पिछड़ा वर्ग को दिया जाने वाला आरक्षण है जिसमें क्रीमीलेयर लागू है।

आरक्षण अब कभी न ख़त्म होने वाला प्रावधान बनकर रह गया है क्योंकि किसी सरकार में इसे ख़त्म करने या कम करने की हिम्मत नहीं है।

आरक्षण अब कभी न ख़त्म होने वाला प्रावधान बनकर रह गया है क्योंकि किसी सरकार में इसे ख़त्म करने या कम करने की हिम्मत नहीं है।

ये क्रीमीलेयर लागू होने से आरक्षण एक तरह का आर्थिक आरक्षण बन जाता है। दिया तो ये भी जाति विशेष को ही जाता है लेकिन सरकार इसके लिए एक आय सीमा निर्धारित कर देती है। फिलहाल पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण पाने वाले बच्चों के माता पिता दोनों की शामिल आय आठ लाख रुपए से कम है तो ही वह इस श्रेणी के तहत आरक्षण पा सकता है।

हाल में सरकार ने यह फ़ैसला लिया है कि अजा-जजा आरक्षण में क्रीमीलेयर लागू नहीं किया जाएगा। हो सकता है इस तरह के निर्णय सरकारें जातियों या समूहों के दबाव में लेती हों लेकिन क्रीमीलेयर लागू करने के पक्षधर लोगों और विशेषज्ञों का तर्क भी जायज़ लगता है।

उनका सीधा- सा तर्क यह है कि कोई आरक्षण का हक़दार चाहे किसी भी जाति का हो, अगर वह आरक्षण पाकर कलेक्टर या अन्य अधिकारी बन गया है तो वह अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने में सक्षम हो जाता है। फिर उस कलेक्टर या अन्य अधिकारी के बच्चों को आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिए?

दरअसल, हिंदुस्तान की दिक़्क़त यह है कि यहाँ कलेक्टर का बेटा तो आरक्षण के जरिए कलेक्टर बनता जा रहा है लेकिन इसी जाति के अधिसंख्य लोग आज भी ऐसे हैं जिनके पास शिक्षा का उजाला पहुँच ही नहीं पाया है। वे आज भी गाँवों में, क़स्बों में और शहरों में भी लोगों की चाकरी ही कर रहे हैं। …और जिनके घर या खेतों में ये लोग पीढ़ियों से काम करते चले आ रहे हैं, वे भी नहीं चाहते कि ये ऊपर उठें। वे बड़े लोग इन ग़रीबों का उत्थान नहीं चाहते। क्योंकि ये गरीब अगर पढ़- लिख गए तो उनकी चाकरी कौन करेगा?

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