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आरती जेरथ का कॉलम: बसपा में उथल-पुथल से यूपी की राजनीति प्रभावित होगी Politics & News

आरती जेरथ का कॉलम:  बसपा में उथल-पुथल से यूपी की राजनीति प्रभावित होगी Politics & News

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2 घंटे पहले

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आरती जेरथ राजनीतिक टिप्पणीकार

हाल ही में मायावती तब सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने अपने भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद को पार्टी से निष्कासित कर दिया। उन्होंने लगभग एक साल पहले भी आकाश को बर्खास्त किया था, फिर उन्हें बहाल किया और अब फिर से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

यह बसपा में चल रहे आंतरिक सत्ता-संघर्ष को उजागर करता है। यह भी बताता है कि मायावती के ब्राह्मण कानूनी सलाहकार सतीश मिश्रा का दलितों के हक के लिए लड़ने वाली इस पार्टी में कितना प्रभाव है। एक दूसरे स्तर पर, यह कहानी यूपी में दलित राजनीति के भविष्य के बारे में बड़े सवाल उठाती है। क्योंकि बसपा का लगातार गिरता चुनावी ग्राफ उस वादे को झुठलाता है, जो मायावती ने कभी समाज और सत्ता की संरचनाओं के पुनर्गठन के ज​रिए किया था।

लंदन से एमबीए की डिग्री प्राप्त 30 वर्षीय आकाश के पार्टी में बढ़ते कद को निहित स्वार्थों द्वारा खतरे के रूप में देखा जा रहा था। उनका युवा उत्साह, सोशल मीडिया कौशल, आधुनिक विचारों का उपयोग करके युवा जाटवों तक उनकी दूरदर्शी पहुंच और भाजपा पर उनके तीखे हमलों ने पार्टी में स्थापित व्यवस्था को हिला दिया था। अंदेशा जताया जाने लगा था कि आकाश के नेतृत्व में पार्टी में व्यापक बदलाव हो सकते हैं।

भतीजे के प्रति मायावती के विश्वास को डिगाने में ज्यादा समय नहीं लगा। पुराने नेताओं ने बस उनकी असुरक्षा का फायदा उठाया और आकाश, उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ और उनकी पत्नी प्रज्ञा की तिकड़ी के बढ़ते प्रभाव के बारे में कानाफूसी करके उन्हें डरा दिया।

दावा किया गया कि वे जल्द ही उनकी जगह ले लेंगे। मायावती ने तीनों को निष्कासित कर दिया। प्रज्ञा के निष्कासन की घोषणा करते समय तो वे बहुत तल्ख थीं जबकि सिद्धार्थ बसपा के पुराने कार्यकर्ता हैं, जिनका पार्टी से नाता कांशीराम के समय से है।

बसपा में हुई इस उथल-पुथल में मिश्रा की छिपी हुई भूमिका का अंदाजा आकाश की जगह उनके निष्ठावान रामजी गौतम को राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त करने से लगाया जा सकता है। मायावती पर मिश्रा का प्रभाव जगजाहिर है।

न केवल वे भ्रष्टाचार के मामलों और भूमि विवादों सहित उनकी सभी कानूनी समस्याओं को संभालते हैं, बल्कि उनके राजनीतिक निर्णयों को निर्देशित करने की हद तक उनकी आंतरिक मंडली में एक महत्वपूर्ण आवाज भी रहे हैं। इसमें भाजपा की छाप भी देखी जा सकती है।

गौतम 2020 में भाजपा की मदद से ही राज्यसभा के लिए चुने गए थे। उस समय विधानसभा में बसपा के केवल 19 सदस्य थे, जो राज्यसभा की सीट हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। त​ब भाजपा ने अपने अतिरिक्त वोट गौतम को हस्तांतरित कर दिए थे। इससे दोनों दलों के बीच एक अघोषित करार के बारे में धारणाओं को बल मिला है।

बसपा में जारी उथल-पुथल यूपी के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकती है। राज्य में 2027 की शुरुआत में चुनाव होने वाले हैं और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा यहां जीत की हैट्रिक लगाने की उम्मीद कर रही है। बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि जाटव वोट किस तरफ जाते हैं।

यूपी में जाटव आबादी 14% के करीब है और वे मायावती के उतार-चढ़ाव के हर दौर में उनके प्रति निष्ठावान रहे हैं। इसलिए भले ही उन्होंने यूपी की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार अन्य समुदायों के वोट खोए हों, लेकिन 2017 में 30% वोट शेयर के साथ जाटव-वोटों पर अपनी पकड़ के कारण उन्होंने अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखी थी।

उनके जनाधार में 2024 के लोकसभा चुनावों में सेंध लगती दिखाई दी, जब उनका वोट शेयर गिरकर 9% हो गया था। इस गिरावट ने संकेत दिया कि जाटवों का एक वर्ग भी उनसे दूर हो गया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि युवा आकांक्षी जाटव कांग्रेस की ओर चले गए थे।

याद दिला दें कि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यूपी में बेहद खराब प्रदर्शन किया था और 80 में से केवल 31 सीटें जीती थीं। बसपा के उदय से पहले तक जाटव ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस के समर्थक रहे थे। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि दलित एकमत होकर वोट नहीं देते हैं।

यही कारण था कि जहां जाटवों ने कांग्रेस का साथ छोड़कर बसपा का दामन थामा, वहीं वाल्मीकि और पासी जैसे अन्य दलित समुदाय भाजपा की ओर मुड़ गए। ऐसे में 2027 के लिए भाजपा के गेम प्लान की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि मायावती जाटव वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपने पास बनाए रखें, ताकि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनावों में हुए लाभ को बरकरार न रख सके।

2027 के लिए भाजपा के गेम प्लान की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि मायावती जाटव वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपने पास बनाए रखें, ताकि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनावों में हुए लाभ को बरकरार न रख सके। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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