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छह दशक (60 साल) से इंसाफ के लिए लड़ रही 1965 के युद्ध वीर की विधवा को आखिरकार पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट से इंसाफ मिल गया है। हाईकोर्ट ने सशस्त्र बल अधिकरण के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने 1965 के भारत-पाक युद्ध में गंभीर रूप से घायल हुए सैनिक की पत्नी को विशेष पारिवारिक पेंशन का हकदार माना है।
हिमाचल के मंडी जिले के दिवंगत सैनिक चंदरमणि ने 8 अप्रैल 1964 को सेना जॉइन की थी और 1965 के युद्ध में हिस्सा लिया था। युद्ध के दौरान उन्हें गंभीर शारीरिक और मानसिक चोटें आईं। उनका इलाज लखनऊ के मिलिट्री अस्पताल में हुआ लेकिन चोटों की गंभीरता के कारण वे ड्यूटी जारी नहीं रख सके। उन्हें 21 सितंबर 1968 को सेवा की आवश्यकता नहीं लिखी टिप्पणी के साथ दो सैनिकों की मदद से घर भेज दिया गया। बाद में 24 मार्च 1987 को उनकी मृत्यु हो गई।
सैनिक की पत्नी मिन्नी देवी उर्फ मुन्नी ने विशेष पारिवारिक पेंशन का दावा किया। इस पर सशस्त्र बल अधिकरण चंडीगढ़ ने 14 जुलाई 2023 को उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें साधारण पारिवारिक पेंशन देने का आदेश दिया था। इसके बाद सैनिक की विधवा ने पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में न्याय के लिए याचिका दायर की थी।
केंद्र सरकार ने इस फैसले को चुनौती दी कि मिन्नी देवी का दावा बहुत देर से किया गया क्योंकि सैनिक की मौत 1987 में हो चुकी थी। अदालत ने कहा कि यह साफ है कि सेवा से सैनिक की छुट्टी 1965 युद्ध में लगी चोटों के कारण हुई थी इसलिए उसे विकलांगता पेंशन मिलनी चाहिए थी। मौत के बाद उनकी पत्नी को विशेष पारिवारिक पेंशन का अधिकार था। साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि सशस्त्र बल अधिकरण को साधारण पारिवारिक पेंशन नहीं बल्कि विशेष पारिवारिक पेंशन देनी चाहिए थी, क्योंकि सैनिक युद्ध में लगी शारीरिक और मानसिक चोटों से अक्षम हो गया था।
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60 साल लड़ी न्याय की लड़ाई: 1965 भारत-पाक युद्ध लड़ने वाले सैनिक की विधवा की हुई जीत, हाईकोर्ट ने हक में सुनाया फैसला


