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फरीदाबाद: शौक सिर्फ वक्त काटने की चीज़ नहीं है. जब यही शौक जुनून बन जाए, तो इंसान नामुमकिन को भी मुमकिन कर देता है. फरीदाबाद के सतीश सिंघल ऐसा ही कर दिखाया. पुराने सिक्के और नोट जमा करने का उनका शौक अब एक म्यूजियम बन चुका है जिसे देखने लोग पूरे देश से आते हैं. ये सिर्फ सिक्कों-नोटों का ढेर नहीं है बल्कि इतिहास विरासत और संस्कृति का खजाना है, जिसमें सिंघल दंपति ने अपने 21 साल लगा दिए.
100 से ज्यादा देशों की करेंसी
सतीश सिंघल बताते हैं कि ये सफर 2004 में एक छोटे से शौक के साथ शुरू हुआ था. बस पुराने नोट-सिक्के अच्छे लगते थे कुछ मिलने लगे और धीरे-धीरे कलेक्शन बढ़ता चला गया. अब उनके पास 100 से ज्यादा देशों की करेंसी है विदेशी-देशी सब कुछ. राजा-महाराजा के दौर के सिक्के भी हैं आज़ादी के बाद के भी. खास बात ये है कि उन्होंने अपने घर को ही एक म्यूजियम बना दिया है जहां कोई भी आकर मुफ्त में ये इतिहास देख सकता है.
15 बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज
सतीश सिंघल हरियाणा स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में Honorary Director रह चुके हैं. वे कहते हैं, सिक्के जमा करने का ये सफर जितना लंबा था उतना ही मज़ेदार भी था. उन्होंने कभी नोट या सिक्के बाजार से प्रीमियम देकर नहीं खरीदे जहां जो मिला वही जोड़ लिया. यही शौक इतना बड़ा हो गया कि उनका नाम 15 बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में आया. इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी उनकी जगह पक्की है.
अमेरिकी सिक्के भी हैं पास
म्यूजियम में अमेरिका, हांगकांग समेत ढेरों देशों के नोट-सिक्के हैं. सतीश बताते हैं अमेरिका के अब तक जितने राष्ट्रपति हुए हैं 46 उन सबके नाम पर अलग-अलग सिक्के निकले थे और वो सब उनके पास हैं. उनके पास हांगकांग का एक ऐसा नोट भी है जो सिर्फ एक तरफ से छपा हुआ है और वहीं चलता था.
राजा-महाराजा दौर के सिक्के
विदेशी करेंसी के साथ-साथ उनका इंडियन कलेक्शन तो और भी दिलचस्प है. राजा-महाराजा के ज़माने का दमड़ी, पाई, एक आना, दो आना, छेद वाले सिक्के, घोड़े वाले सिक्के, ब्रिटिश टाइम के सिल्वर दो आना से लेकर आज के सिक्के सब कुछ उनके पास है. वे बताते हैं भारत में 1862 में ब्रिटिश सरकार ने सिक्के शुरू किए थे और उस दौर का प्योर सिल्वर का दो आना भी उनके पास सुरक्षित है.
200 से लेकर 1000 रुपये तक का सिक्का
राम मंदिर शिलान्यास पर जारी खास सिक्का दांडी मार्च पर बना 100 रुपये का सिक्का प्राण प्रतिष्ठा पर निकले गोल्ड-सिल्वर के सिक्के, 200, 350, 500, यहां तक कि 1000 रुपये के सिक्के भी उनके म्यूजियम में रखे हैं. सबसे बड़ी बात इतने अनमोल कलेक्शन के बावजूद सिंघल दंपति ने कभी किसी से पैसे नहीं लिए. उनका कहना है ये संग्रह समाज के लिए है ताकि लोग जान सकें कि देश की करेंसी कैसे बदली.
उनके पास इंडियन करेंसी की पूरी टाइमलाइन है. सतीश बताते हैं कभी भारत में रुपया चलता ही नहीं था कोड़ी चलती थी. एक कोड़ी नहीं दूंगा वाली कहावत आज भी लोग बोलते हैं वो ऐतिहासिक कोड़ी भी उनके पास है. पाई भी है जिसकी वैल्यू 1 रुपये के 1/12 हिस्से के बराबर थी. उसके बाद आना आया फिर पैसे का चलन शुरू हुआ. क्वार्टर आना की वैल्यू एक पैसे के बराबर मानी जाती थी.
अब उनके पास 1 रुपये के 120 अलग-अलग तरह के सिक्के हैं जो हर दौर के हैं. 10 पैसे के 52, 10 रुपये के 42, और 5 पैसे के ढेरों सिक्के भी उनकी अलमारी में सजे हैं.
पास हैं कई यूनिक नंबर वाले नोट
नोटों का कलेक्शन भी कम कमाल नहीं. उनके पास यूनिक नंबर वाले कई नोट हैं जैसे 000000, 000001, 000002, 000003, 000004, 000006 तक की पूरी सीरीज़. इसी तरह 100000, 200000, 300000, 400000, 500000 नंबर वाले नोट्स भी. 786 सीरीज़ के नोट जो इस्लाम में खास माने जाते हैं वो भी 10 से 500 तक के नोटों में मौजूद हैं 000786, 786000, 768786 जैसे नंबर.
सतीश बताते हैं पहले 100 रुपये का नोट बहुत बड़ा होता था फिर धीरे धीरे उसका साइज घटता गया हर बदलाव हर डिज़ाइन हर कहानी सब उनके म्यूजियम में दर्ज है.
सतीश सिंघल अब 63 साल के हैं लेकिन जोश आज भी पहले दिन जैसा है. वे कहते हैं ये सिर्फ शौक नहीं देश के इतिहास को संभालने की कोशिश है.
उनके घर-म्यूजियम में अब तक कई बड़े लोग आ चुके हैं केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर हरियाणा सरकार के मंत्री विपुल गोयल और भी कई अधिकारी-नेता. 15 अगस्त को जिला स्तर पर उन्हें सम्मानित भी किया गया.
म्यूजियम में है सिक्कों का इतिहास और सीख
सतीश सिंघल मानते हैं, ये म्यूजियम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सीख है इतिहास क्या होता है, करेंसी की अहमियत क्या है और कैसे हर सिक्का अपने साथ एक कहानी लाता है. उनके मुताबिक नोट और सिक्के सिर्फ पैसे नहीं बल्कि इतिहास, संस्कृति और जज़्बात का दस्तावेज़ हैं.
आज उनका घर फरीदाबाद का वह पता बन गया है जहां लोग मुफ्त में इतिहास देखने आते हैं. और सतीश सिंघल अपनी मुस्कान और गर्व भरी आंखों के साथ हर आने वाले को इन सिक्कों नोटों के पीछे छुपी कहानियां सुनाते हैं. उनकी कहानी यही बताती है अगर शौक जुनून में बदल जाए तो इंसान अपने घर को भी म्यूजियम बना सकता है. और यही जुनून है जो आने वाली पीढ़ियों को इतिहास से जोड़ता है. सतीश सिंघल की खुद की अपनी कम्पनी हैं जो नट बोल्ट बनाती हैं.
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