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डंपिंग यार्ड के रूप में पहचान रखने वाली जमीन आज घनी हरियाली का मॉडल ज़ोन बन चुकी है। यह बदलाव किसी सरकारी योजना का नहीं, बल्कि हरी भरी वसुंधरा संस्था की प्रधान सुनिता रहेजा और उनकी टीम के निरंतर प्रयासों का नतीजा है। पर्यावरण संरक्षण को समर्पित सुनिता रहेजा 2016 से हर उस गतिविधि के खिलाफ मुहिम चला रही हैं, जो पर्यावरण को प्रदूषित करती है। उनका कहना है कि शहरों में बढ़ती कंक्रीट की इमारतें और वाहनों की संख्या प्रदूषण को लगातार बढ़ा रही हैं, ऐसे में छोटे-छोटे अर्बन जंगल समय की मांग हैं। इसी सोच के साथ उनकी संस्था ने अब तक लगभग 29 हजार पौधे लगाए हैं, जिनमें करीब 85 प्रतिशत पौधे आज भी जीवित हैं।
हरी भरी वसुंधरा संस्था न सिर्फ पौधारोपण करती है, बल्कि उन पौधों की नियमित देखभाल भी करती है। सुनिता के अनुसार, हर सीजन में यहां 65 से अधिक किस्मों के पौधे उगाए जाते हैं, जिन पर नेम-प्लेट्स लगाकर पूरी पहचान दी जाती है। चौथे वर्ष में प्रवेश कर चुके इन सीजनल प्लांट्स में ‘फ्लावर मैन ऑफ इंडिया’ राम जयमल द्वारा डाले गए बीजों से खिले फूल सर्दियों में परागण (पॉलिनेशन) के लिए पूरे क्षेत्र को महका देते हैं। संस्था के पास अपनी एक नर्सरी भी है, जहां से गर्मियों और बरसात में हजारों पौध तैयार कर शहर में लगाए जाते हैं। कई लोग अपने घरों में अधिक संख्या में उगे पौधे भी संस्था को दान करते हैं, जिन्हें आगे विकसित कर सार्वजनिक स्थानों पर रोपा जाता है।
सुनिता बताती हैं कि जहां आज हरियाली नजर आती है, वह जगह पहले एक बदबूदार डंपिंग यार्ड थी। यहां से गुजरना भी मुश्किल था। इसी अव्यवस्था को देखकर उन्होंने निर्णय लिया कि शहर में छोटे-छोटे अर्बन जंगल बनाकर प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इसी सोच को हकीकत बनाने के लिए संस्था ने चार मियावाकी टेकनीक पर आधारित जंगल तैयार किए। इनमें एक सेक्टर 33 के बूस्टिंग स्टेशन पर, एक सेक्टर 13 में दूरदर्शन रेजिडेंशियल एरिया में और दो आजाद नगर में बनाए गए हैं। यह सभी जंगल घने, हरे-भरे और जैव-विविधता से भरपूर हैं, जिन्हें लोग प्रत्यक्ष रूप से देख भी सकते हैं।
संस्था सिर्फ पौधारोपण तक सीमित नहीं है, बल्कि वेस्ट मैनेजमेंट में भी अग्रणी काम कर रही है। यहां सूखे पत्तों और घरों से आने वाले गीले कचरे जैसे सब्जियों के छिलकों से खाद तैयार की जाती है, जिसे लोगों को फ्री ऑफ कॉस्ट उपलब्ध कराया जाता है। इसके अलावा संस्था ने छह साल पहले बर्तन बैंक की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य डिस्पोजेबल उपयोग को कम कर कचरे के पहाड़ को रोकना था। आज यह बर्तन बैंक सफलतापूर्वक चल रहा है और इसे देखकर शहर में कई और बर्तन बैंक खुल चुके हैं।
धार्मिक स्थलों पर फैले कचरे और प्लास्टिक को रोकने के लिए संस्था एक और अनोखा कार्य कर रही है। पीपल के पेड़ों के नीचे या नहरों में डाले गए मंदिरों के सामान को संस्था के वालंटियर्स इकट्ठा करते हैं। उपयोग योग्य मूर्तियों को साफ कर दोबारा धार्मिक उपयोग में लाया जाता है, जबकि खंडित मूर्तियों को विशेष विधि से डिकंपोज किया जाता है। वहीं बचे हुए फूलों को भी खाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
सुनिता कहती हैं कि जब उन्होंने संस्था शुरू की थी, तब उनके साथ चार लोग जुड़े थे, संजय सातरोडिया, मनीष बंसल, अजय जिंदल और डॉ. नारंग। आज वही छोटी-सी टीम एक बड़ा पर्यावरणीय बदलाव लाने में सफल हो रही है। उनकी यह पहल साबित करती है कि यदि संकल्प दृढ़ हो, तो डंपिंग यार्ड भी हरे-भरे जंगल में बदला जा सकता है।
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हिसार: 29 हजार पौधों ने बदली शहर की तस्वीर, सुनिता ने डंपिंग यार्ड को बनाया हरा-भरा


