हास्य नाटक से खोली भ्रष्टाचार की पोल


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हरियाणा कला परिषद व उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला के संयुक्त सहयोग से आयोजित दो दिवसीय उत्थान उत्सव के समापन अवसर पर वसंत सबनीस के लिखे और संजय भसीन के निर्देशन में हास्य नाटक सैंया भए कोतवाल का मंचन किया गया। हास्य-व्यंग्य से भरपूर नाटक को देखने भारी संख्या में लोग कला कीर्ति भवन में पहुंचे। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं संस्कृति विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पुनिया मुख्य अतिथि रहे। वहीं व्यापार मंडल के अध्यक्ष धीरज गुलाटी तथा समाजसेवी शैंलेंद्र पराशर विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित थे। मंच संचालन विकास शर्मा ने किया।
उत्थान उत्सव में जहां पहले दिन हास्य नाटक पंचलाइट ने लोगों को गुदगुदाया वहीं दूसरे दिन नाटक सैंया भए कोतवाल में हास्य-व्यंग्य के माध्यम से व्यवस्था पर चोट करते हुए कलाकारों ने भ्रष्टाचार की पोल खोलने का कार्य किया। तमाशा शैली में मंचित नाटक में सूर्यपुर नगर की कहानी को दिखाया गया। मूर्ख राजा रणधीरा के कोतवाल के मरने के बाद सभी को नए कोतवाल की चिंता लग जाती है। जिसका फायदा प्रधान उठाता है और अपने बेवकूफ साले को कोतवाल बना देता है।
राज्य का हवलदार और सिपाही नए कोतवाल को देखकर खुश नहीं होते और उसे फंसाने की तरकीब सोचने लगते हैं। कोतवाल से बात करने पर हवलदार को पता चलता है कि उसे गाना सुनने का शौक है। ऐसे में हवलदार अपनी प्रेमिका मैनावती के साथ मिलकर कोतवाल को फसाने की चाल चलता है और कोतवाल के आगे मैनावती के प्यार का झांसा डाल देता है। मैनावती कोतवाल से शादी करने की शर्त पर राजा का छपरी पलंग मांग लेती है। कोतवाल हवलदार और सिपाही से छपरी पलंग मंगवा लेता है। वहीं हवलदार राजा को भी इस चोरी की खबर दे देता है। छपरी पलंग आने के बाद कोतवाल जब मैनावती से शादी करने पहुंचता है तो राजा ब्राह्मण का वेश धरकर शादी करवाने पहुंच जाता है, जहां दोनों की शादी हो जाती है, लेकिन बाद में नाटक से जब पर्दा उठता है तो पता चलता है कि दुल्हन मैनावती नहीं बल्कि मैनावती का शागिर्द है। अंत में राजा हवलदार से खुश होकर उसे कोतवाल बना देता है।
नाटक में कोतवाल की भूमिका में रंगकर्मी व प्राध्यापक शिव कुमार किरमच ने अपनी कलाकारी से सभी को लोटपोट कर दिया। वहीं हवलदार की भूमिका में रजनीश भनौट, मैनावती पारुल कौशिक, राजा आश्रय शर्मा, सिपाही गौरव दीपक जांगड़ा, सख्या राजीव कुमार तथा प्रधान की भूमिका में चंचल शर्मा ने अपनी हिस्सेदारी दी। नाटक में शुभम कल्याण ने गायन तथा गोविंदा ने रिदम पर साथ दिया। अन्य कलाकारों में निकेता शर्मा, सिद्धार्थ सिद्धू, अनूप कुमार, आकाश, चमन चौहान शामिल रहे।

हरियाणा कला परिषद व उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला के संयुक्त सहयोग से आयोजित दो दिवसीय उत्थान उत्सव के समापन अवसर पर वसंत सबनीस के लिखे और संजय भसीन के निर्देशन में हास्य नाटक सैंया भए कोतवाल का मंचन किया गया। हास्य-व्यंग्य से भरपूर नाटक को देखने भारी संख्या में लोग कला कीर्ति भवन में पहुंचे। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं संस्कृति विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पुनिया मुख्य अतिथि रहे। वहीं व्यापार मंडल के अध्यक्ष धीरज गुलाटी तथा समाजसेवी शैंलेंद्र पराशर विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित थे। मंच संचालन विकास शर्मा ने किया।

उत्थान उत्सव में जहां पहले दिन हास्य नाटक पंचलाइट ने लोगों को गुदगुदाया वहीं दूसरे दिन नाटक सैंया भए कोतवाल में हास्य-व्यंग्य के माध्यम से व्यवस्था पर चोट करते हुए कलाकारों ने भ्रष्टाचार की पोल खोलने का कार्य किया। तमाशा शैली में मंचित नाटक में सूर्यपुर नगर की कहानी को दिखाया गया। मूर्ख राजा रणधीरा के कोतवाल के मरने के बाद सभी को नए कोतवाल की चिंता लग जाती है। जिसका फायदा प्रधान उठाता है और अपने बेवकूफ साले को कोतवाल बना देता है।

राज्य का हवलदार और सिपाही नए कोतवाल को देखकर खुश नहीं होते और उसे फंसाने की तरकीब सोचने लगते हैं। कोतवाल से बात करने पर हवलदार को पता चलता है कि उसे गाना सुनने का शौक है। ऐसे में हवलदार अपनी प्रेमिका मैनावती के साथ मिलकर कोतवाल को फसाने की चाल चलता है और कोतवाल के आगे मैनावती के प्यार का झांसा डाल देता है। मैनावती कोतवाल से शादी करने की शर्त पर राजा का छपरी पलंग मांग लेती है। कोतवाल हवलदार और सिपाही से छपरी पलंग मंगवा लेता है। वहीं हवलदार राजा को भी इस चोरी की खबर दे देता है। छपरी पलंग आने के बाद कोतवाल जब मैनावती से शादी करने पहुंचता है तो राजा ब्राह्मण का वेश धरकर शादी करवाने पहुंच जाता है, जहां दोनों की शादी हो जाती है, लेकिन बाद में नाटक से जब पर्दा उठता है तो पता चलता है कि दुल्हन मैनावती नहीं बल्कि मैनावती का शागिर्द है। अंत में राजा हवलदार से खुश होकर उसे कोतवाल बना देता है।

नाटक में कोतवाल की भूमिका में रंगकर्मी व प्राध्यापक शिव कुमार किरमच ने अपनी कलाकारी से सभी को लोटपोट कर दिया। वहीं हवलदार की भूमिका में रजनीश भनौट, मैनावती पारुल कौशिक, राजा आश्रय शर्मा, सिपाही गौरव दीपक जांगड़ा, सख्या राजीव कुमार तथा प्रधान की भूमिका में चंचल शर्मा ने अपनी हिस्सेदारी दी। नाटक में शुभम कल्याण ने गायन तथा गोविंदा ने रिदम पर साथ दिया। अन्य कलाकारों में निकेता शर्मा, सिद्धार्थ सिद्धू, अनूप कुमार, आकाश, चमन चौहान शामिल रहे।

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