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हाईकोर्ट का अहम निर्देश: समयपूर्व रिहाई के मामलों में भेदभाव नहीं कर सकती सरकार, स्वतंत्रता सबके लिए मूल्यवान Chandigarh News Updates

हाईकोर्ट का अहम निर्देश: समयपूर्व रिहाई के मामलों में भेदभाव नहीं कर सकती सरकार, स्वतंत्रता सबके लिए मूल्यवान Chandigarh News Updates

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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार समयपूर्व रिहाई के मामले में मनमानी नहीं कर सकती है। समान परिस्थितियों वाले दोषियों में से चुनिंदा लोगों को ही लाभ देना न्यायोचित नहीं होगा। हाईकोर्ट सरकार के इस रवैये को अत्यंत अन्यायपूर्ण बताते हुए कहा कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार के विपरीत है।

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पानीपत निवासी पवन कुमार ने समयपूर्व रिहाई की मांग को खारिज करने के हरियाणा सरकार के फैसले को चुनौती दी थी। पवन कुमार को एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। याची के वकील ने दलील दी कि सरकार ने उसकी रिहाई की मांग को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उनके खिलाफ बारह आपराधिक मामले लंबित थे। इनमें से आठ मामलों में वे पहले ही बरी हो चुके हैं और शेष तीन मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है। 

जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ की पीठ ने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यंत मूल्यवान होती है। जो व्यक्ति आजीवन कारावास की सजा काट रहा हो, उसके लिए यह और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि यह धारणा नहीं बनाई जा सकती कि जेल से रिहा होने के बाद हर दोषी बदले की भावना से कार्य करेगा। इसके बजाय, किसी भी दोषी की समयपूर्व रिहाई के विषय में निर्णय लेने से पहले उसके जेल में आचरण, मानसिक स्थिति, अपराध की गंभीरता, सामाजिक पृष्ठभूमि और पैरोल के दौरान उसके व्यवहार को ध्यान में रखना चाहिए।

जस्टिस बराड़ ने कहा कि यदि कोई दोषी राज्य सरकार की नीति के अनुसार समयपूर्व रिहाई के लिए पात्र है, तो उसे यह लाभ देने से इनकार करने के लिए राज्य सरकार को उपयुक्त और उचित कारण प्रस्तुत करने होंगे। राज्य सरकार के पास यह अधिकार नहीं है कि वह समान परिस्थितियों में मौजूद दोषियों में से कुछ को मनमाने तरीके से यह लाभ दे और कुछ को इससे वंचित रखे। हाईकोर्ट ने कहा कि यह मानना कि समाज में कभी अपराध नहीं होंगे, अवास्तविक है, लेकिन एक कल्याणकारी राज्य के रूप में सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह दोषियों के पुनर्वास के प्रयास करें और उन्हें समाज का उपयोगी सदस्य बनने का अवसर प्रदान करे। कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को खारिज करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के मामले पर दोबारा विचार किया जाए और चार सप्ताह के भीतर उचित निर्णय लिया जाए।

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