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हरियाणा विधानसभा चुनाव
– फोटो : संवाद
विस्तार
हरियाणा विधानसभा चुनाव के रण में चर्चित चेहरों और बागियों के उतरने से मुकाबला रोचक हो गया है। भाजपा, कांग्रेस, इनेलो-बसपा, जजपा-आसपा और आप प्रत्याशियों ने 49 दिन के प्रचार में अपने वादों और घोषणाओं से मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश की है। निर्दलीय प्रत्याशी भी कई सीटों पर समीकरण बनाते और बिगाड़ते नजर आ रहे हैं। इस बार चुनाव में कुछ प्रत्याशी परिवार की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए मैदान में उतरे हैं। प्रदेश की ऐसी 12 खास सीटें जहां मुकाबला आमने-सामने या त्रिकोणीय हो चुका है। इन सीटों पर चर्चित प्रत्याशियों के मैदान में होने से परिणाम पर सभी की नजरें टिकी हैं।
हिसार : लोहे के चने चबवा रहीं सावित्री
बांगड़ की सबसे हॉट सीट हिसार में भाजपा के मंत्री डॉ. कमल गुप्ता पांचवीं बार मैदान में है। डॉ. गुप्ता स्वास्थ्य व शहरी विकास मंत्री रहे हैं। उनके लिए सीएम नायब सिंह सैनी, पूर्व सीएम मनोहर लाल और स्टार प्रचारक स्मृति ईरानी पहुंचीं। पीएम मोदी भी हिसार में रैली करके गए। दिग्गजों के प्रचार के बावजूद उनके लिए सबसे बड़ी परेशानी भाजपा से बगावत कर निर्दलीय लड़ने वाली सावित्री जिंदल ने बढ़ाई है। स्टील कारोबारी के रूप में विख्यात सावित्री डॉ. गुप्ता व कांग्रेस के प्रत्याशी रामनिवास राड़ा को उनके ही गढ़ में लोहे के चने चबवाती नजर आ रही हैं। राड़ा के प्रचार के लिए स्टार प्रचारकों में केवल कुमारी सैलजा ही आईं। दीपेंद्र सिंह हुड्डा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने यहां से दूरी बनाए रखी है। राड़ा को सबसे अधिक उम्मीद अनुसूचित वर्ग व जाट मतदाताओं से है। निवर्तमान मेयर गौतम सरदाना भी भाजपा के टिकट के दावेदार थे। वह भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे हैं। पंजाबी मतदाताओं पर उनका प्रभाव रहा है।
- सावित्री व डॉ. कमल दोनों वैश्य समाज से हैं। प्रचार में वैश्य समाज सावित्री के साथ ज्यादा नजर आया। भाजपा व आरएसएस से जुड़े लोग भी सावित्री के साथ दिखे। यह साथ वोटों में कितना बदलता है, इसका पता आठ को चलेगा।
डबवाली : ताऊ का लाल ही करेगा कमाल
राजस्थान और पंजाब से सटे डबवाली में पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल के कुनबे के तीन सदस्यों में टक्कर है। कांग्रेस से अमित सिहाग, इनेलो से आदित्य देवीलाल और जजपा से दिग्विजय चौटाला एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। यहां इनेलो, कांग्रेस और जजपा तीनों का वोट बैंक है। बागड़ी बेल्ट में इनेलो के प्रत्याशी आदित्य की स्थिति मजबूत है, लेकिन उन्हें कांग्रेस-जजपा से कड़ी टक्कर मिल रही है। डबवाली में कांग्रेस के प्रत्याशी को यूं तो हुड्डा और सैलजा दोनों का आशीर्वाद प्राप्त है, लेकिन सैलजा और उनके समर्थकों की सक्रियता अब भी कम है। शहर में मजबूत कांग्रेस प्रत्याशी को चचेरे भाई और भतीजे से कड़ी टक्कर मिल रही है। इनेलो प्रत्याशी को पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व अभय चौटाला का साथ है। दिग्विजय के साथ दादा रणजीत, माता-पिता व भाई है।
- मतदाताओं का एक वर्ग साइलेंट है। शहरी वोटर ही खुलकर बात नहीं कर रहे। वे दोनों ही तय करेंगे कि इस बार किस लाल के सिर पर अपना हाथ रखेंगे।
तोशाम : भाई-बहन…किस पर पड़ेगी परमार की मार
पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल के गढ़ तोशाम में उनके ही पोते व पोती कांग्रेस प्रत्याशी अनिरुद्ध चौधरी और भाजपा प्रत्याशी श्रुति चौधरी पर एक दूसरे के खिलाफ डटे हैं। 26 साल बाद दोनों परिवार एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरे हैं। तोशाम में दोनों ही खुद को बंसीलाल का वारिस साबित करने की जंग भी लड़ रहे हैं। इन दोनों की इस लड़ाई को रोचक बनाया है भाजपा के बागी शशिरंजन परमार ने। निर्दलीय उतरे परमार ही दोनों की हार-जीत तय करेंगे। वे जितने वोट ले जाएंगे, उतनी ही राह श्रुति व अनिरुद्ध की मुश्किल होती जाएगी। परमार भाजपा को ही ज्यादा नुकसान पहुंचाते नजर आ रहे हैं। इस सीट पर अनिरुद्ध के लिए अभिनेता राज बब्बर, पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग, पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा व दीपेंद्र ने प्रचार किया। भाजपा से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, मुख्यमंत्री नायब सैनी प्रचार अभियान में शामिल हुए।
- अब तक इस सीट पर श्रुति व किरण चौधरी ही जीतती आई हैं, लेकिन इस बार हार-जीत का अंतर कम रह सकता है। परिवार से ही दोनों प्रत्याशी होने से यह स्थिति है।
सिरसा : गोपाल या गोकुल…सस्पेंस फुल
सिरसा शहर व गांव की गलियों में बस दो ही नाम हैं। एक गोपाल व दूसरा गोकुल। हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के प्रत्याशी गोपाल कांडा को भाजपा व इनेलो ने समर्थन दे रखा तो वहीं, कांग्रेस के गोकुल सेतिया बिना किसी के सहारे अकेले ही डटे रहे। प्रचार का मैदान हो या सोशल मीडिया, दोनों हर मंच पर एक-दूसरे के खिलाफ डटकर खड़े हुए। नशे केे मुद्दे व शहर के विकास पर दोनों ने अपने काम बताए। वैसे इन दोनों के अलावा यहां आप से श्याम सुंदर मेहता और जजपा-असपा गठबंधन से पवन भी मैदान में हैं, लेकिन चर्चा में नहीं हैं। पिछली बार 2019 में इनेलो ने निर्दलीय गोकुल सेतिया का समर्थन किया था। उस चुनाव में सेतिया 602 वोट से हार गए थे। लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेसियों में उत्साह है और सरकार विरोधी लहर के कारण कांग्रेस की स्थिति भी पिछले चुनाव से बेहतर है। किसानों पर लाठीचार्ज और भ्रष्टाचार को लेकर सेतिया लगातार कांडा को घेर रहे हैं।
- टिकट वितरण के बाद गोकुल के लिए उपजी स्थानीय नेताओं की नाराजगी दूर नहीं हुई। कांडा के पास इनेलो-बसपा के समर्थन की ताकत है, लेकिन गांवों में उनका विरोध भी है।
रानियां : चर्चा दादा-पोते की लड़ाई कांबोजों में
रानियां के रण में शुरुआती दौर में मैदान में निर्दलीय उतरे दादा चौधरी रणजीत सिंह और उनके पोते इनेलो प्रत्याशी अर्जुन चौटाला में सीधी टक्कर नजर आ रही थी, लेकिन उसके बाद मुकाबला बहुकोणीय हो गया। कांग्रेस के सर्वमित्र कांबोज भी मुख्य मुकाबले में आ गए। भाजपा प्रत्याशी शीशपाल कांबोज को भी लोग कमजोर नहीं मान रहे हैं। इनके अलावा आप प्रत्याशी हरपिन्द्र कांबोज भी असर डाल रहे हैं। शुरुआत में कांग्रेस की आपसी खींचतान के कारण पार्टी को नुकसान होने की आशंका थी, लेकिन हुड्डा पिता-पुत्र के दौरे के बाद माहौल बदल गया।
- रानियां पंजाबी और बागड़ी बेल्ट में बंटा हुआ है। यहां कुम्हार व कांबोज समाज का वोट बैंक सबसे ज्यादा है। हार-जीत का निर्णय यही दोनों बिरादरी करती हैं।
जुलाना : जाट वोट बंटे तो विनेश को खतरा
मुकाबला जाट बनाम ब्राह्मण पर आकर टिक गया है। 2005 के बाद से जीत न सकी कांग्रेस ने इस बार ओलंपियन विनेश फोगाट को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस को विनेश के जाट चेहरे और सेलिब्रिटी स्टेटस का सहारा है। दूसरी तरफ भाजपा ने योगेश बैरागी को मैदान में उतारकर ओबीसी वोटों को साधने का प्रयास किया है। कांग्रेस के बागी डॉ. सुरेंद्र लाठर इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। लाठर अपनी सामाजिक संस्था के कारण क्षेत्र में खासी पकड़ रखते हैं। पिछली बार जीते जजपा के अमरजीत ढांडा फिर मैदान में हैं। विनेश, लाठर व अमरजीत जाट हैं। जितने अधिक वोट लाठर व अमरजीत को जाएंगे, विनेश को उतने ही नुकसान का अंदेशा है।
- जाट बहुल हलके में ओबीसी वोटों की अच्छी खासी संख्या है। यही निर्णायक होंगे।
उचाना कलां : किसी भी करवट बैठ सकता है ऊंट
जाट बहुल कांग्रेस से पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह, जजपा से पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला और भाजपा से देवेंद्र अत्री मैदान में हैं। कांग्रेस के बागी वीरेंद्र घोघड़ियां भी रेस से बाहर नहीं हैं। अत्री ब्राह्मण चेहरा हैं, बाकी प्रत्याशी जाट। अगर जाट मतदाताओं के वोट बंटे तो भाजपा को फायदा हो सकता है। किसान आंदोलन का विरोध भाजपा के साथ ही बाकी प्रत्याशियों के साथ भी किसी न किसी रूप में देखने को मिल रहा है। किसान आंदोलन के कारण दुष्यंत का पहले विरोध हुआ पर अब विरोध छंटता नजर आ रहा है। किसान आंदोलन के समय भाजपा से सांसद रहे बृजेंद्र को भी विरोध का सामना करना पड़ा। अत्री भी धीरे-धीरे अपना चुनाव प्रचार चरम पर ले आए हैं।
- यह कहना मुश्किल है कि ऊंट किस करवट बैठेगा।
नूंह : मुकाबला कांग्रेस व इनेलो में
एक साल पहले हिंसा के कारण पूरे देश में चर्चा में आए नूंह में इस बार दो बड़े राजनीतिक घरानों में वर्चस्व कायम करने की चिंगारी सुलग रही है। मुख्य मुकाबला यहां कांग्रेस व इनेलो के प्रत्याशियों में ही है। इनेलो से यासीन खानदान की चौथी पीढ़ी के ताहिर हुसैन अपनी राजनीतिक पारी शुरू करना चाहते हैं। उनके सामने कांग्रेस से वरिष्ठ नेता स्व. खुर्शीद अहमद के पुत्र और दो बार के विधायक व मंत्री रह चुके सीएलपी उपनेता आफताब अहमद हैं।
- मुस्लिम बहुल इस हलके में शहरी क्षेत्रों में कांग्रेस व गांवों में इनेलो की हवा है।
लाडवा : सैनी को ओबीसी का सहारा
प्रदेश की सबसे चर्चित व हॉट सीट लाडवा में हार-जीत जाट व ओबीसी वोट बैंक पर टिकी है। 60 फीसदी ओबीसी हैं, जिनमें से 20 फीसदी से अधिक सैनी हैं, जबकि 18 फीसदी से अधिक व 11 फीसदी ब्राह्मण हैं, जिनका भी अपना प्रभाव है। भाजपा प्रत्याशी के रूप में यहां से मुख्यमंत्री नायब सैनी मैदान में हैं, जो पार्टी के ओबीसी वर्ग के बड़े चेहरे हैं। जाट समुदाय के कांग्रेस प्रत्याशी एवं निवर्तमान विधायक मेवा सिंह नायब सैनी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं। उन्होंने 2019 के चुनाव में भाजपा से सीट छीनकर यहां कांग्रेस के लिए जमीन तैयार की थी। इसी समुदाय से इनेलो-बसपा की प्रत्याशी सपना बड़शामी हैं और उनके ससुर इनेलो से पूर्व विधायक शेर सिंह बड़शामी भी क्षेत्र में अपना अच्छा प्रभाव रखते हैं। बड़शामी भी जाट बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं।
- जाट वोट बंटने की प्रबल संभावना है। इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।
जगाधरी : बसपा ने त्रिकोणीय बनाया मुकाबला
भाजपा-कांग्रेस में कड़ा मुकाबला है, मगर यहां इनेलो-बसपा गठबंधन और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी भी मुकाबले को रोचक बना रहे हैं। भाजपा से शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर के सामने कांग्रेस प्रत्याशी एवं बसपा से पूर्व विधायक रहे अकरम खान मैदान में हैं। तीन बार यहां बसपा का विधायक बन चुका है, इसलिए यहां बसपा मुकाबले को त्रिकोणीय भी बना रही है। इनेलो के साथ गठबंधन के चलते बसपा को सोशल इंजीनियरिंग का फायदा मिल सकता है, क्योंकि दलित और जाट वोट बैंक के साथ-साथ बसपा प्रत्याशी दर्शनलाल खेड़ा पंजाबी बिरादरी में भी अच्छा प्रभाव रखते हैं। यहां मुस्लिम वोट बैंक पर भी बसपा की अच्छी पकड़ है।
- यदि दलित और मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस और बसपा में बंटता है तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।
अंबाला छावनी : विज-परी की चाबी चित्रा के हाथ
अंबाला छावनी से भाजपा प्रत्याशी अनिल विज और कांग्रेस प्रत्याशी परविंदर सिंह परी की राह में निर्दलीय प्रत्याशी चित्रा सरवारा रोड़ा बनी हुई हैं। चित्रा ने मुकाबले को त्रिकोना बना दिया है। चित्रा कांग्रेस से टिकट न मिलने पर बागी होकर मैदान में हैं। उनके पिता पूर्व मंत्री निर्मल सिंह अंबाला सिटी सीट से बताैर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। हुड्डा खेमे से सीट छीनकर सांसद कुमारी सैलजा ने यहां से परविंदर सिंह परी को टिकट दिलवाया है। इसी के चलते चित्रा मैदान में हैं। इसका फायदा विज को मिल सकता है। चित्रा पिछली बार दूसरे स्थान पर रही थीं। विज और परी दोनों पंजाबी हैं तो चित्रा जाट बिरादरी से ताल्लुक रखती हैं।
- किसान अंबाला-पटियाला बाॅर्डर पर बैठे हैं, इनकी नाराजगी भाजपा प्रत्याशी को झेलनी पड़ सकती है।
बादशाहपुर : बादशाहपुर की बादशाहत..अनुभव बनाम उम्र
- हरियाणा के सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्र बादशाहपुर में बादशाहत की लड़ाई इस बार अनुभव बनाम उम्र की है। अनुभव भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व मंत्री राव नरबीर का और उम्र कांग्रेस के सबसे युवा नेता व पहली बार चुनाव लड़ रहे वर्धन यादव की। नरबीर पहली बार साल 2014 में इस सीट पर जीते थे और मनोहर सरकार में मंत्री बने थे। अब दोबारा से भाजपा ने उन्हें मैदान में उतरा है। पिछले दिनों उनके चुनाव प्रचार में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आए थे। दूसरी ओर वर्धन के समर्थन में दीपेंद्र व पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के साथ राजस्थान से कांग्रेस नेता सचिन पायलट आ चुके हैं। निर्दलीय कुमुदनी दोनों के ही समीकरण बिगाड़ रही हैं। उनके पति राकेश की चुनाव से पहले मौत हो गई थी, इस कारण लोगों में उनसे सहानुभूति है।
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