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हरियाणा में कांग्रेस कैसे पूरा करेगी राहुल का टास्क: जो संगठन 11 साल में नहीं बना, वो 25 दिन में खड़ा करने की चुनौती – Chandigarh News Chandigarh News Updates

हरियाणा में कांग्रेस कैसे पूरा करेगी राहुल का टास्क:  जो संगठन 11 साल में नहीं बना, वो 25 दिन में खड़ा करने की चुनौती – Chandigarh News Chandigarh News Updates

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अशोक तंवर, कुमारी सैलजा और उदयभान 11 साल में हरियाणा में कांग्रेस का संगठन नहीं बना पाए हैं।

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अप्रत्याशित हार के 8 महीने बाद राहुल गांधी ने पहली बार प्रदेश में पार्टी संगठन को लेकर काम शुरू किया है। चंडीगढ़ में पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में ‘संगठन सृजन कार्यक्रम’ में पर्यवेक्षकों की बैठक में राहुल ने 30

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हर जिले में 6 नामों का पैनल बनेगा। 35 से 55 साल उम्र के ही जिला अध्यक्ष बन सकते हैं। कांग्रेस ने सभी 22 जिलों में कुल 90 नेताओं की टीम लगाई है। जिनमें केंद्रीय पर्यवेक्षकों के अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 66 पर्यवेक्षक हैं।

इन पर्यवेक्षकों की जिलाध्यक्ष नाम तय करने में अहम भूमिका होगी। हरियाणा में फूलचंद मुलाना के कार्यकाल में साल 2013 में आखिरी बार जिलों में कार्यकारिणी बनी थी। 2014 में मुलाना ने पद छोड़ा। उसके बाद से संगठन भंग है।

पहले अशोक तंवर फिर कुमारी सैलजा प्रदेश अध्यक्ष रहीं। उनके बाद उदयभान का कार्यकाल भी 3 साल का हो चुका। तीनों ने ही संगठन के लिए हाईकमान को लिस्ट सौंपी, लेकिन उस पर सहमति की मुहर नहीं लगवा सके। संगठन न होने से पहले 2019 और अब 2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता की दौड़ में पिछड़ गई।

आइए जानते हैं कि कांग्रेस संगठन क्यों नहीं बना पाई, किस प्रदेशाध्यक्ष ने क्या प्रयास किए और क्यों फ्लॉप रहे?

साल 2014: संगठन बनाने की जिम्मेदारी अशोक तंवर को मिली फूलचंद मुलाना के बाद साल 2014 में अशोक तंवर को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। उनकी दिल्ली दरबार में पहुंच थी। पत्नी अवंतिका तंवर कांग्रेसी दिग्गज अजय माकन की बहन और राष्ट्रपति रहे शंकर दयाल शर्मा की नातिन हैं। राहुल गांधी के कोटे से युवा तंवर को मौका मिला।

दो साल की मेहनत के बाद साल 2016 में हाईकमान को संगठन की लिस्ट सौंपी। ये सूची कभी जारी ही नहीं हुई। उसी साल दिल्ली में एक रैली में हुड्‌डा समर्थकों की तंवर से झड़प हो गई। खटास बढ़ती गई। 2019 विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में नहीं चली तो तंवर ने पद और पार्टी छोड़ दी।

असर: 2019 में बिना संगठन 31 सीटें मिलीं कांग्रेस बिना संगठन ही 2019 के विधानसभा चुनाव में उतरी। पार्टी को 31 हलकों में जीत मिली। नतीजों के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा व अन्य नेताओं ने माना था कि अनुमान नहीं था कि पार्टी इतना बेहतर प्रदर्शन करेगी। थोड़ी और मेहनत होती और संगठन होता तो पार्टी सत्ता में लौट सकती थी।

साल-2019: कुमारी सैलजा प्रदेशाध्यक्ष बनीं, सूची बनी पर संगठन नहीं 2019 विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर हुड्डा गुट और तंवर में मारपीट की नौबत आई। तंवर पार्टी छोड़ गए। कांग्रेस ने राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय कुमारी सैलजा को हरियाणा कांग्रेस की कमान सौंपी। हाईकमान ने संगठन बनाने का टास्क दिया।

तंवर को आउट करने में भूमिका निभाने वाले हुड्डा खेमे की कुछ दिन बाद ही सैलजा से भी पटरी बैठना बंद हो गई। केंद्र की बजाय प्रदेश की राजनीति में पांव जमाना चाह रहीं सैलजा ने संगठन के संभावित पदाधिकारियों की सूची बनाई। ये सूची भी हाईकमान तक पहुंची, मगर संगठन की घोषणा नहीं हो पाई।

साल-2022: हुड्‌डा के करीबी उदयभान प्रदेशाध्यक्ष, संगठन फिर नहीं बना कुमारी सैलजा के बाद 27 अप्रैल 2022 को चार बार के विधायक उदयभान नए प्रदेशाध्यक्ष बने। जिनकी गिनती हुड्डा के करीबियों में है। सभी गुटों और जातीय समीकरण साधने के लिए कांग्रेस ने पहली बार प्रदेश में 4 कार्यकारी अध्यक्ष बनाए। किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी, सैलजा खेमे के रामकिशन गुर्जर के अलावा जितेंद्र भारद्वाज व सुरेश गुप्ता कार्यकारी अध्यक्ष बने।

उदयभान 3 साल बाद भी संगठन खड़ा नहीं कर पाए। उदयभान कहते रहे हैं कि संगठन के लिए सूची बनाकर तत्कालीन पार्टी प्रभारी दीपक बाबरिया को सौंपी थी।

असरः 2024 में सत्ता की दहलीज पर आकर फिसली कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से प्रदेश की 10 में से 5 सीटें छीनने वाली कांग्रेस का माहौल बनता दिख रहा था। कांग्रेस आ रही है…का नारा चला। बावजूद इसके कांग्रेस 37 सीटों तक ही पहुंच पाई। नतीजों के बाद समीक्षा बैठकों में माना गया कि संगठन होता तो बात कुछ और होती।

हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी के दो उदाहरण…

1. 2014 में तंवर के सामने हुड्‌डा समर्थकों ने कुर्सियां फेंकी हुड्डा के वरदहस्त रहे फूलचंद मुलाना के नाम सबसे लंबे समय तक यानी साढ़े 6 साल कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड है। अगस्त 2007 से फरवरी 2014 तक अध्यक्ष रहते मुलाना हमेशा हुड्डा की छाया में ही रहे। उनके बाद जब दिल्ली दरबार के आशीर्वाद से अशोक तंवर को प्रदेश कांग्रेस की कमान मिली तो पार्टी में अंदरूनी रार बढ़ने लगी।

खटास इतनी बढ़ी कि दिसंबर 2014 में हिसार में कार्यकर्ता सम्मेलन में तंवर और कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी के सामने कार्यकर्ताओं में जमकर मारपीट हुई। कुर्सियां फेंकी गईं। यह हंगामा कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम न लिए जाने के बाद शुरू हुआ था।

2. 2023 में हुड्‌डा समर्थकों ने हिसार और भिवानी में हंगामा किया साल 2023 में उदयभान के प्रदेशाध्यक्ष रहते संगठन बनाने की कवायद शुरू हुई। दीपक बाबरिया ने प्रदेश में ऑब्जर्वरों की सूची बनाई। इस सूची पर पहले हंगामा हुआ। इसके बाद हिसार और भिवानी में यह ऑब्जर्वर जब संगठन चुनाव के लिए बैठक लेने आए तो कांग्रेस कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए।

कांग्रेस वर्करों ने जमकर हंगामा किया। इसके बाद हिसार कांग्रेस भवन से कुमारी सैलजा की तस्वीर हटाने का प्रयास किया गया। कांग्रेस नेता अनिल मान ने कुमारी सैलजा की फोटो फ्रेम में उदयभान की फोटो लगा दी थी।

2 साल पहले नारनौल में फीडबैक लेने पहुंचे ऑब्जर्वरों के सामने कांग्रेस वर्कर आपस में भिड़ गए थे।

2 साल पहले नारनौल में फीडबैक लेने पहुंचे ऑब्जर्वरों के सामने कांग्रेस वर्कर आपस में भिड़ गए थे।

राहुल ने मंच पर हुड्‌डा और सैलजा के हाथ मिलवाए, मन नहीं मिले 2024 लोकसभा चुनाव में हरियाणा में 10 में 5 सीटें जीत कांग्रेस में उत्साह भर गया। हाईकमान को लगा कि हरियाणा में विधानसभा चुनाव जीतने की राह आसान हो जाएगी। लोकसभा के नतीजे देखकर हुड्‌डा को विधानसभा चुनाव में फ्री हैंड दे दिया। टिकट बंटवारे में गुटबाजी उभरकर सामने आने लगी।

हुड्‌डा पर आरोप लगे कि उन्होंने सैलजा समर्थकों के टिकट कटवा अपने लोगों को दिए। नारनौंद हलके में चुनावी रैली के दौरान कुमारी सैलजा पर आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद तो बात और बिगड़ गई।

करीब 8 महीने पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अंबाला के नारायणगढ़ में राहुल गांधी ने पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा और कुमारी सैलजा का हाथ मिलवाया था।

करीब 8 महीने पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अंबाला के नारायणगढ़ में राहुल गांधी ने पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा और कुमारी सैलजा का हाथ मिलवाया था।

सांसद सैलजा ने चुनाव प्रचार से दूरी बना ली। नुकसान भांपकर राहुल गांधी ने अंबाला में एक जनसभा के दौरान मंच पर सैलजा और हुड्‌डा के हाथ मिलवाए। हाथ तो दोनों नेताओं ने मिलाए लेकिन उनके मन नहीं मिले। नतीजा, हवा के बावजूद कांग्रेस चुनाव हार गई।

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संगठन सृजन अभियान के लिए राहुल गांधी ने चंडीगढ़ में 3 घंटे के कार्यक्रम में एक हिदायत और 2 स्पष्ट सलाह दीं। कहा कि गुटबाजी से पार्टी को नुकसान नहीं होना चाहिए। संगठन बनाने में किसी की सिफारिश नहीं चलेगी। जिलाध्यक्ष बनने के लिए 35 से 55 साल के बीच की आयु सीमा की शर्त रहेगी। पूरी खबर पढ़ें…

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