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10जेएनडी31: तेरापंथ भवन में प्रवचन करती साध्वी तिलक श्री। संवाद
उचाना। पुरानी अनाज मंडी स्थित तेरापंथ भवन में विराजमान साध्वी तिलक श्री ने प्रवचन में कहा कि हमारा यह जीवन परमात्मा द्वारा दिया हुआ सुंदर उपहार है। प्रकृति की तरफ से हमें सब सामग्री मिलती है, लेकिन यह हम पर निर्भर है कि हमें पुण्य की सामग्री लेनी है या पाप की। हम प्रकृति से क्या ले सकते है, यह हमारे हाथ में है। जीवन को किस तरह से जीना है यह जिम्मेदारी हमारी स्वयं की है। इस जीवन को हमने स्वयं बनाया है। जीवन निर्माण का दायित्व हमारा स्वयं का है। जीवन जीने के दो तरीके है। एक हमारी स्वयं की मर्जी से जीना और दूसरा परमात्मा की मर्जी से जीना।
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उन्होंने कहा कि हम अपनी मर्जी से जिएंगे तो हमें क्षणिक आनंद मिलेगा और परमात्मा की मर्जी से जिएंगे तो भव-भव का आनंद प्राप्त होगा इस पुण्य की सामग्री की वजह से ही हमें धर्म का प्लेटफार्म मिला है। यह अब हमारा कर्तव्य है की पुरुषार्थ द्वारा किस प्रकार हम इस जीवन को जीते है। उन्होंने कहा कि जैन होना जैन कहलाना दोनों अलग-अलग है।
आध्यात्मिक जीवन में रमण करने के पश्चात भी हम पूर्ण रूप से जैन नहीं बने है। जैन कहलाने से जैन बनने की जो यात्रा है उस ओर हमें कदम बढ़ाने होंगे। हमारा कमाया हुआ धन न्याय नीति से होना चाहिए। जब न्याय से सब कुछ चल सकता है तो अन्याय की कमाई क्यों करें। हमें सिर्फ धर्म स्थलों में ही जैन नहीं रहना है, संपूर्ण जीवन में जैन बनना है। इसलिए आध्यात्मिक होकर न्याय का आचरण करना आवश्यक है। परमात्मा का प्रेम हमारे लिए जीवन को पावन पवित्र बनाता है लेकिन हमारा प्रेम सांसारिक प्रेम है।