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रैंडस्टैड इंडिया के एक हालिया सर्वे में भारतीय वर्क फोर्स की प्राथमिकताओं में बड़ा बदलाव देखने को मिला है. ‘वर्कमॉनिटर 2025’ सर्वे के मुताबिक, 52 फीसदी कर्मचारी उन नौकरियों को छोड़ने के लिए तैयार हैं, जो उन्हें वर्क प्लेस पर फ्लेक्सिबिलिटी नहीं देतीं. इसके अलावा, 60 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि अगर उनके मैनेजर के साथ उनके संबंध अच्छे नहीं हैं, तो वे नौकरी छोड़ सकते हैं.
फ्लेक्सिबिलिटी अब बेसलाइन एक्सपेक्टेशन
सर्वे के मुताबिक, पारंपरिक कारण जैसे सैलरी अब पीछे छूट रही हैं. कर्मचारी अब वर्कप्लेस फ्लेक्सिबिलिटी, सीखने और विकास के अवसर (L&D) और वर्क प्लेस पर एक समावेशी संस्कृति को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रैंडस्टैड इंडिया के MD और CEO विश्वनाथ PS ने कहा, “फ्लेक्सिबिलिटी अब एक लाभ नहीं है, बल्कि सभी आयु वर्ग के कर्मचारियों की बेसलाइन एक्सपेक्टेशन बन गई है.”
कर्मचारियों की नई प्राथमिकताएं
सर्वे में यह बात सामने आई कि कर्मचारी अब सिर्फ वेतन से ज्यादा अपने व्यक्तिगत मूल्यों और जीवन के लक्ष्यों के साथ मेल खाने वाले काम को महत्व दे रहे हैं. नौकरी की सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और वर्क-लाइफ बैलेंस जैसे कारक अब ज्यादा मायने रखते हैं. वेतन अब महत्व के मामले में चौथे स्थान पर खिसक गया है.
ऑफिस कल्चर और सीखने के अवसर
सर्वे के अनुसार, 69 फीसदी भारतीय कर्मचारी वर्क प्लेस पर एक समावेशी संस्कृति (Inclusive Culture) को प्राथमिकता देते हैं. वहीं, 67 फीसदी कर्मचारियों ने कहा कि अगर उनकी नौकरी में सीखने और विकास के अवसर नहीं हैं, तो वे इसे छोड़ देंगे. AI ट्रेनिंग को लेकर भी भारतीय कर्मचारियों में काफी दिलचस्पी है. 43 फीसदी भारतीय कर्मचारियों ने AI ट्रेनिंग को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण L&D अवसर बताया, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा सिर्फ 23 फीसदी है.
फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स की मांग
भारत में सभी पीढ़ियों के कर्मचारी फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स को लेकर वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा सजग हैं. जेन जी (62 फीसदी) और मिलेनियल्स (66 फीसदी) के बीच फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स की मांग सबसे ज्यादा है. जेन जी के लिए डिजिटल-फर्स्ट जॉब मार्केट में लंबे कम्यूट और काम के दबाव के कारण वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखना जरूरी है. वहीं, मिलेनियल्स बच्चों की देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियों के साथ काम को बैलेंस करने के लिए फ्लेक्सिबिलिटी चाहते हैं.
वैल्यू अलाइनमेंट भी है जरूरी
सर्वे में यह भी पता चला कि 70 फीसदी कर्मचारी उस संगठन के लिए काम नहीं करना चाहते, जो उनके सामाजिक और पर्यावरणीय मूल्यों के साथ मेल नहीं खाता. इसके अलावा, 58 फीसदी कर्मचारियों ने टॉक्सिक वर्क एनवायरनमेंट के कारण नौकरी छोड़ी है, जबकि 53 फीसदी ने व्यक्तिगत विचार साझा करने में असहज महसूस करने के कारण ऐसा किया.
संगठनों के लिए चुनौती
विश्वनाथ PS ने कहा, ‘भारतीय वर्क प्लेस में पीढ़ीगत अंतर कम हो रहा है और डेटा स्पष्ट है. फ्लेक्सिबिलिटी अब एक लाभ नहीं है, बल्कि सभी आयु वर्ग के कर्मचारियों की बेसलाइन एक्सपेक्टेशन है. संगठनों को इस बदलाव को समझना होगा और अपनी रणनीतियों को नए तरीके से ढालना होगा. जो ऐसा नहीं करेंगे, वे टॉप टैलेंट को खो देंगे.’
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