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सेहतनामा- सोशल मीडिया बच्चों को बना रहा आक्रामक: डॉक्टर से जानें, कैसे डेवलप होता बच्चों का ब्रेन, क्यों बढ़ रहा उनमें गुस्सा Health Updates

सेहतनामा- सोशल मीडिया बच्चों को बना रहा आक्रामक:  डॉक्टर से जानें, कैसे डेवलप होता बच्चों का ब्रेन, क्यों बढ़ रहा उनमें गुस्सा Health Updates

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16 मिनट पहलेलेखक: गौरव तिवारी

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नेटफ्लिक्स सीरीज ‘एडोलसेंस’ इन दिनों सुर्खियों में है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे टीनएज बच्चे सोशल मीडिया और इंटरनेट को असली दुनिया मान बैठे हैं। कुछ बच्चे साइबर बुलिंग के शिकार हो रहे हैं, अपने लुक्स को लेकर इनसिक्योर हो रहे हैं और पॉपुलैरिटी न मिलने से परेशान हैं। इन्हीं परेशानियों के बीच, जेमी मिलर नाम का बच्चा बुलीइंग से तंग आकर अपनी ही क्लास की एक लड़की की हत्या कर देता है।

इस सीरीज में बच्चों पर सोशल मीडिया के प्रभाव और उसके जरिए साइबर बुलिंग जैसे मुद्दों पर गहराई से बात की गई है। हम स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया इस्तेमाल करने से हो रहे प्रभाव पर पहले कई आर्टिकल्स में चर्चा कर चुके हैं।

अब बात सिर्फ सोशल मीडिया या इंटरनेट के नैतिक-अनैतिक प्रभाव तक सीमित नहीं है। विज्ञान कह रहा है कि दिमाग पर हमारे आसपास हो रही हर छोटी चीज का प्रभाव पड़ता है। अगर हमारे सोशल मीडिया, स्क्रीन या किसी भी तरह की वर्चुअल दुनिया में वॉयलेंस दिख रहा है तो इससे हमारे वॉयलेंट होने के चांस बढ़ जाते हैं। इसका सबसे अधिक प्रभाव बच्चों पर होता है क्योंकि उनका दिमाग इस कंटेंट को प्रोसेस करने के लिए तैयार ही नहीं है। इसके अलावा उन्हें बचपन में जो माहौल मिलता है, उसका सीधा असर उनके व्यवहार पर पड़ता है।

इसलिए ‘सेहतनामा’ में आज हम विज्ञान के नजरिए से बच्चों के दिमाग को समझेंगे। साथ ही जानेंगे कि-

  • बच्चों का दिमाग किस उम्र में कितना डेवलप होता है?
  • किस तरह के कंटेंट का क्या असर होता है?
  • ब्रेन को हेल्दी बनाने के लिए क्या जरूरी है?

कैसे डेवलप होता है बच्चों का दिमाग?

डॉ. दीपा कहती हैं कि हमारा मस्तिष्क जन्म से लेकर वयस्क होने तक लगातार विकसित होता रहता है। हर उम्र में मस्तिष्क अलग-अलग स्किल्स और क्षमताओं को विकसित करता है। इस दौरान हमारे आसपास जो कुछ भी होता है, दिखता है और सुनाई देता है। उसका मस्तिष्क के विकास पर सीधा असर होता है। वयस्क होने तक किस उम्र में दिमाग में क्या विकसित होता है, ग्राफिक में देखिए-

ग्राफिक में दिए सभी पॉइंट्स विस्तार से समझते हैं-

0-1 साल तक मस्तिष्क का 60% विकास होता है

  • देखने, सुनने, महसूस करने और प्रतिक्रिया देने की क्षमता विकसित होती है।
  • बच्चा अपने माता-पिता की आवाज पहचानने लगता है।
  • बेसिक इमोशन जैसे- रोना, हंसना, घबराहट, खुशी विकसित होती है।
  • बाहरी दुनिया से जुड़ने के लिए नर्व कनेक्शन यानी न्यूरॉन सर्किट बनते हैं।

1-3 साल तक मस्तिष्क लगभग 80% तक विकसित हो जाता है

  • शब्दों को समझने और बोलने की क्षमता विकसित होती है।
  • अपना वजूद समझने लगता है और खुद को पहचानने लगता है।
  • माता-पिता और आसपास के लोगों से भावनात्मक जुड़ाव विकसित होता है।
  • चीजों को एक्सप्लोर करने और उनकी वजह समझने की कोशिश करता है।

3-6 साल तक तर्क और याददाश्त से जुड़े न्यूरॉन्स तेजी से बनते हैं

  • कल्पनाशक्ति विकसित होने लगती है।
  • भाषा की समझ और तार्किक सोच विकसित होने लगती है।
  • दूसरों के साथ समय बिताना और सामाजिक संबंध सीखता है।
  • सही-गलत और अच्छा-बुरा समझने की क्षमता विकसित होने लगती है।

6-12 साल तक मस्तिष्क का आकार 95% तक विकसित हो चुका होता है

  • ध्यान केंद्रित करने और समस्याओं को हल करने की क्षमता बढ़ती है।
  • नियम और सामाजिक जिम्मेदारियां समझने लगता है।
  • पढ़ाई, तार्किक क्षमता और भाषा कौशल में सुधार होता है।
  • सहानुभूति और दूसरों की भावनाएं समझने लगता है।

12-18 साल में प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स यानी मस्तिष्क का निर्णय लेने वाला भाग विकसित होने लगता है

  • खुद के विचारों और भावनाओं को समझने लगता है।
  • आत्मनिर्भर बनने की इच्छा बढ़ती है।
  • जोखिम लेने की प्रवृत्ति बढ़ती है, लेकिन तर्कपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं होती है।
  • सामाजिक दबाव यानी पियर प्रेशर और भावनात्मक अस्थिरता बढ़ सकती है।

18-25 साल- प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स पूरी तरह विकसित हो जाता है

  • लॉन्ग-टर्म प्लानिंग और भविष्य के फैसले लेने की क्षमता विकसित होती है।
  • भावनाओं को नियंत्रित करने की क्षमता बढ़ती है।
  • रिश्तों को गहराई से समझने और बनाए रखने की समझ आती है।
  • करियर और जीवन के लक्ष्य तय करने की प्रक्रिया शुरू होती है।

बच्चों पर कैसे पड़ रहा विपरीत असर?

डॉ. दीपा कहती हैं कि मस्तिष्क में हर उम्र में नई क्षमताएं विकसित होती हैं। इनका स्वरूप जैसा रहेगा, उससे बच्चे का भविष्य तय होता है। इसलिए इस दौरान पेरेंट्स और शिक्षकों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। सही देखभाल, न्यूट्रिशन और सीखने के सही अवसर मिलने पर बच्चे की बौद्धिक और भावनात्मक क्षमता ज्यादा बेहतर तरीके से विकसित हो सकती है। अगर चीजें सकारात्मक नहीं रहीं तो परिणाम विपरीत भी हो सकते हैं।

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ग्राफिक्स में दिए सभी पॉइंट्स साइंटिफिक तरीके से और और स्टडीज की मदद से समझते हैं-

सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बढ़ रही मानसिक समस्याएं

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक स्टडी बताती है कि सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने से लोगों की नींद पूरी नहीं हो रही है। इसकी वजह से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। लगातार स्क्रीन पर समय बिताने से याददाश्त कमजोर हो रही है और लोग एंग्जाइटी व डिप्रेशन जैसी समस्याओं के शिकार हो रहे हैं।

ध्यान केंद्रित करने की क्षमता हो रही कम

अटेंशन स्पैन यानी बिना भटके किसी काम पर ध्यान लगाने की क्षमता तेजी से घट रही है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, इरविन की रिसर्च के अनुसार, पिछले 20 सालों में इंसानों का औसत अटेंशन स्पैन 2.5 मिनट से घटकर सिर्फ 47 सेकेंड रह गया है। इसका मुख्य कारण सोशल मीडिया की लत को माना जा रहा है।

मेमोरी और क्रिएटिविटी हो रही कमजोर

सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल करने से याददाश्त, भाषा सीखने की क्षमता और दिमागी विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है। इससे खासतौर पर बच्चों में लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है। उनके लिए किसी भी क्रिएटिव कार्य को पूरा करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह प्रक्रिया लंबे समय तक फोकस बनाए रखने की मांग करती है।

इमोशनल हेल्थ हो रही प्रभावित

सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों और किशोरों की भावनात्मक सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है। ऑनलाइन कम्पेरिजन, लाइक्स-कमेंट्स की चिंता और साइबर बुलिंग जैसी समस्याएं उनका आत्मविश्वास कमजोर कर रही हैं। इससे उनमें अकेलापन, चिड़चिड़ापन और एंग्जाइटी बढ़ रहा है, जो मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए हानिकारक हो सकता है।

अश्लील कंटेंट देखने से खराब होती मानसिकता

डॉ. दीपा कहती हैं कि बच्चों द्वारा सोशल मीडिया और इंटरनेट पर लगातार अश्लील कंटेंट देखने से उनके व्यवहार और मानसिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है। उन्हें अपना विपरीत जेंडर सिर्फ सेक्सुअल ऑब्जेक्ट की तरह दिखने लगता है। यह खतरनाक है।

वॉयलेंस देखने से बढ़ रही आक्रामकता

‘रिसर्चगेट’ पर मार्च, 2024 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, ज्यादा हिंसक कंटेंट देखने से स्वभाव में आक्रामकता बढ़ती है और सहानुभूति घटती है। लगातार वॉयलेंट कंटेंट कंज्यूम करने से बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है, उन्हें हर चीज का सॉल्यूशन वॉयलेंस ही समझ आता है।

……………………. सेहत की ये खबर भी पढ़िए सेहतनामा- सोशल मीडिया से घट रही बच्चों की याददाश्त: बढ़ रही बीमारियां, सिगरेट-शराब की तरह खतरे की चेतावनी, बता रहे हैं डॉक्टर

सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल लोगों की ब्रेन वायरिंग खराब कर रहा है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों और किशोरों के ब्रेन डेवलपमेंट पर पड़ रहा है। पूरी खबर पढ़िए…

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