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सुप्रीम कोर्ट ने NCPCR की याचिका खारिज की।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की उस याचिका खारिज कर दिया, जिसमें आयोग ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 2022 के आदेशों चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में दो मुस्लिम विवाहित जोड़ों को संरक्षण दिया था। इस तथ्य के
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शीर्ष अदालत ने पूछा सवाल
जस्टिस बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने सवाल किया कि मामले में तीसरा पक्ष यानी बाल अधिकार संरक्षण आयोग ऐसे मामले में कैसे हस्तक्षेप कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संस्था उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमे से अनजान है। न्यायालय ने पूछा कि आप रिट याचिका से अनजान हैं। अगर दो लोग आकर सुरक्षा की मांग करते हैं और न्यायालय ने सुरक्षा प्रदान कर दी है, तो आप आदेश को चुनौती दे रहे हैं?” NCPCR के वकील ने जवाब दिया, “कानून के प्रश्न को ध्यान में रखते हुए आदेश को चुनौती दी गई है।”
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट।
हाईकोर्ट ने यह आदेश जारी किए थे
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, एक लड़की कम से कम 15 वर्ष की होने पर वैध रूप से विवाह कर सकती है। इसी तरह का एक फैसला जून 2022 में पारित किया गया था, और उसी वर्ष अक्टूबर में इसी तरह का एक और फैसला पारित किया गया था।
एनसीपीसीआर ने दोनों आदेशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। अपनी अपील में, एनसीपीसीआर ने कहा कि यह फैसला बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो अधिनियम) का उल्लंघन है,
क्योंकि यह प्रभावी रूप से बाल विवाह और बच्चों के साथ यौन संबंध बनाने की अनुमति देता है। हालांकि, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने आज मौखिक रूप से कहा कि जमीनी हकीकत को ध्यान में रखना ज़रूरी है, जहां नाबालिग प्यार में पड़ सकते हैं और पर्सनल लॉ के तहत शादी कर सकते हैं। न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे मामलों में, अगर उनके साथी को केवल परिवार के विरोध के कारण पॉक्सो अधिनियम के तहत जेल भेज दिया जाता है, तो इससे युवा लड़कियों को केवल आघात ही होगा।
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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की NCPCR की याचिका: हाईकोर्ट के आदेशों को दी थी चुनौती; मुस्लिम लड़कियां 15 साल की शादी कर सकती है – Punjab News
