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Superbug Infection Treatment: सुपरबग के इलाज को लेकर आईसीएमआर के अध्ययन में एक चौंका देने वाला खुलासा हुआ है. स्टडी में सामने आया है कि सरकारी अस्पतालों में सुपरबग का इलाज कराने पहुंच रहे मरीजों को हर दिन 4000 से 5000 खर्च करने पड़ रहे हैं. इस इलाज में इतना पैसा लगने की बड़ी वजह है सुपरबग में इलाज होने वाली दवाओं का महंगा होना. महंगी दवाइयां और आईसीयू में लंबे समय तक रहने की वजह से उनका खर्च बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण परिजनों को पैसे उधार लेने पड़ रहे हैं. नौबत मकान बेचने तक आ रही है.
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देश के अस्पतालों में सुपरबग इन्फेक्शन का इलाज कराने पहुंच रहे मरीजों की राहत फिलहाल मुश्किल होती दिखाई दे रही है. हालात यहां तक बन गए हैं कि इलाज कराने और आईसीयू में भर्ती करने के लिए परिजनों को उधार लेना पड़ रहा है. यहां तक की मकान बेचने तक की नौबत आ रही है. अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल बीएमजे ओपन में प्रकाशित स्टडी में आईसीएमआर में देश के 8 बड़े सरकारी और प्राइवेट हॉस्पिटल्स समेत करीब 12 मेडिकल इंस्टिट्यूट को शामिल किया था.
सुपरबग क्या है
सुपरबग का वास्ता जर्म्स है, जो माइक्रोबियल स्ट्रेन हैं. मतलब बैक्टीरिया, वायरस और फंगस के नए स्ट्रेंस। जब कोई बैक्टीरिया, पैथोजेन या वायरस एंटीबायोटिक्स और दूसरे एंटीमाइक्रोबियल ड्रग्स के खिलाफ रेजिस्टेंस बना लेता है तो सुपरबग बन जाता है. इसस पर दवाइयों का असर नहीं होता है, इसलिए इलाज ज्यादा मुश्किल हो जाता है.
हर दूसरा मरीज़ आर्थिक बोझ से परेशान
इस अध्ययन में रिसचर्स ने पाया कि करीब 46.5 प्रतिशत मरीजों को इलाज करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इतने प्रतिशत मरीज इलाज पूरा कराने के लिए पैसे उधार लेने के लिए मजबूर हो रहे हैं. यहां तक की उन्हें अपनी संपत्ति तक बेचनी पड़ रही है. मतलब साफ है कि सुपरग का इलाज करा रहा लगभग हर दूसरा मरीज अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक बोझ से भी जूझ रहा है.
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आईसीयू के नाम पर भी लूट
स्टडी के मुताबिक सुपरबग से इनफेक्टेड होने के बाद मरीज को इलाज के साथ-साथ एंटी इनफेक्टिव दवाइयों पर भी खर्च करना पड़ रहा है. सरकारी अस्पतालों में यह खर्च लगभग 17000 से लेकर 20000 तक हो सकता है जबकि प्राइवेट अस्पतालों में यही खर्च दो से तीन लाख रुपये होने का अनुमान है. दवाइयां के साथ-साथ आईसीयू में भी रहने की अच्छी खासी कीमत चुकानी पड़ रही है.
ऐसे मरीज बन रहे हैं कर्जदार
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए 1,723 मरीजों के मेडिकल हिस्ट्री और 170 मरीजों को बातचीत शामिल किया. आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया के अनुसार सरकारी अस्पतालों में एंटरोबैक्टीरिया के 53.9%, एसिनेटोबैक्टर के 43.8% और स्टैफिलोकोकस के 49.7% मामलों में मरीजों को इलाज पर सबसे ज्यादा खर्च करना पड़ा और वे कर्जदार हो गए.
सुपरबग्स से बचने के लिए सावधानियां
1. अच्छी तरह हाथ धोएं और साफ करें
2. खाने में साफ-सफाई बरतें, गंदगी से बचें.
3. सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन से बचने की कोशिश करें. कंडोम का इस्तेमाल सही तरह करें.
4. बीमार लोगों से एक उचित दूरी बनाकर रखें.
5. रिकमेंडेड वैक्सीन लगवानें में देरी या लापरवाही न बरतें.
6. सही समय पर डॉक्टर की दवाइयां लें. थोड़े से जुकाम-बुखार पर एंटीबायोटिक लेकर न खाएं.
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सुपरबग का इलाज कराने में टूट रही हैं मरीजों की कमर, उधार लेने से लेकर मकान बेचने तक को मजबूर