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- Sunita Narain’s Column EV Idea Is Good, But Better Planning Is Necessary
सुनीता नारायण पर्यावरणविद्
आज दुनिया के देशों को इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करने की जरूरत क्यों है? इसके तीन कारण हैं। पहला है, जलवायु परिवर्तन। परिवहन में बड़े पैमाने पर पेट्रोल-डीजल की खपत होती है, जो सालाना सीओ 2 के 15% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। जीरो-एमिशन वाहन या ईवी इसके स्थान पर बिजली से चलेंगे।
इसलिए इन्हें एक समाधान के तौर पर देखा जा रहा है। दूसरा कारण- जो हमारे शहरों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है- यह कि इन जीरो-एमिशन वाहनों के कारण स्थानीय प्रदूषण भी कम होगा। और तीसरा, तेल की खपत घटेगी तो मूल्यवान विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
ये सभी महत्वपूर्ण कारण हैं, लेकिन जो बदलाव आज जरूरी हैं उनके लिए ये अकेले काफी नहीं हैं। हमें एक री-सेट की जरूरत है। इसके लिए एक समीक्षा हो कि हम क्या और क्यों कर रहे हैं। ताकि हम सिर्फ वाहनों का विद्युतीकरण ही नहीं करें, बल्कि वो तमाम लाभ प्राप्त कर पाएं जिनकी आज बहुत जरूरत है।
चलिए, पहले शहरों की बात करते हैं। ईवी से कई फायदे होंगे, लेकिन केवल तभी जब हम नीति के उद्देश्यों के प्रति स्पष्ट हों और आगे बढ़कर इसके परिणामों को बड़े पैमाने पर प्राप्त करें। 2019 में नीति आयोग ने देश की ईवी संबंधी महत्वाकांक्षाओं को रेखांकित किया था। इसके अनुसार 2030 तक नई व्यावसायिक कारों की बिक्री में ईवी का हिस्सा 70% होगा। निजी कारों में 30%, बसों में 40% और दुपहिया-तिपहिया वाहनों की बिक्री में 80% तक होगा।
लेकिन यह वर्ष 2025 है और हम इस लक्ष्य से कोसों दूर हैं। केवल तिपहिया वाहनों के मामले में ही ईवी में बढ़ोतरी हुई है। इनमें करीब 60% नए रजिस्ट्रेशन ईवी के हो रहे हैं। लेकिन इनमें से अधिकतर तिपहिया गैर-ब्रांडेड और स्थानीय स्तर पर निर्मित हैं, जो सड़कों पर भीड़ बढ़ाते हैं।
हालांकि वो किफायती दरों पर यात्रा की सुविधा भी दे रहे हैं। लेकिन दूसरे वाहनों के मामले में ईवी-ट्रांजिशन इतना कम है कि उनके बारे में बात भी नहीं की जा सकती। कार, दुपहिया और बसों के मामले में ईवी के नए रजिस्ट्रेशन महज 5-6% ही हैं। इससे प्रदूषण, तेल आयात और कार्बन उत्सर्जन में कमी नहीं लाई जा सकती।
यह तब है जब हम जानते हैं कि हमारी सांसों में घुल रहे जहर का सबसे बड़ा कारण वाहन हैं। समस्या सिर्फ प्रदूषण फैला रहे विभिन्न प्रकार के वाहन ही नहीं हैं, बल्कि उनकी संख्या भी है। सड़कों पर इनके जमावड़े के कारण प्रदूषण फैलता है। इसलिए प्रदूषण नियंत्रण के लिए कार्रवाई का एजेंडा यह है कि एक ओर जहां स्वच्छ वाहनों की ओर बढ़ा जाए, वहीं दूसरी ओर वाहनों की संख्या भी घटाई जाए।
दिल्ली में वर्ष 2000 में जब सीएनजी को अपनाया गया तो इसके लिए वहां बस, टैक्सी और ऑटो रिक्शा जैसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को चुना गया। ये सार्वजनिक वाहन ही शहर में सर्वाधिक दूरी तय करते हैं। इसके अलावा पुराने वाहनों को नए सीएनजी वाहन से बदलने पर सब्सिडी दी गई, जो सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में सुधार का कदम थी।
लेकिन दिल्ली की कहानी एक नीतिगत खामी के चलते गलत हो गई। इसे हमें नहीं दोहराना चाहिए क्योंकि इसने स्वच्छ हवा के लाभ को नकार दिया और सार्वजनिक निवेश को व्यर्थ कर दिया। सीएनजी क्रांति के दो दशक बाद भी दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के ढांचे को इस हद तक नहीं सुधारा जा सका है कि वहां सड़कों पर वाहनों की बढ़ोतरी को रोका जा सके।
हर दिन दिल्ली में 1800 नए वाहन सड़क पर आ जाते हैं। इनमें से 500 निजी कारें होती हैं। देश में तो यह आंकड़ा हर दिन 10 हजार नए वाहनों का है। नए फ्लाईओवर और सड़कों के बावजूद वाहनों के इस दवाब का मतलब है कि हम सड़कों पर फंसे रहेंगे और गति धीमी रहेगी। लास्ट-माइल कनेक्टिविटी नहीं होने से भी लोग निजी वाहनों का उपयोग करने को मजबूर होते हैं।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना को स्वच्छ वाहन और कम वाहन के दोहरे लक्ष्य की ओर केंद्रित करना होगा। नए ईवी की संख्या गिनना ही पर्याप्त नहीं है, यातायात में उनकी सामान्य हिस्सेदारी भी देखनी होगी, ताकि सार्वजनिक परिवहन बढ़े। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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सुनीता नारायण का कॉलम: ईवी का विचार अच्छा, पर बेहतर प्लानिंग जरूरी है