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खंड के गांव लांधड़ी निवासी स्वतंत्रता सेनानी लालचंद बगड़िया ने देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। वह करीब आठ वर्षों तक सिंगापुर की जेल में बंद रहे थे। उस दौरान अंग्रेजों ने उन्हें कई यातनाएं दी थीं लेकिन नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नारे तुम मुझे खून दो मैं तुझे आजादी दूंगा… को साकार करने के लिए उन्होंने अपने दिल में बैठा लिया था।
लालचंद का जन्म वर्ष 1920 में गांव लांधड़ी में हुआ था। वे छह बहन-भाइयों में तीसरे नंबर के थे। उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें देश को आजाद करवाना है। अंग्रेजी सरकार चाहे कितने ही जुल्म किए और यातनाएं दीं लेकिन उन्होंने देश की आजादी तक संघर्ष किया।
इसके लिए अंग्रेजों ने उन्हें करीब आठ वर्षों तक सिंगापुर जेल में बंद रखा। इस कारण वे लंबे समय तक गांव में नहीं आ सके। इस कारण ग्रामीणों और परिजनों ने उनके शहीद होने का अनुमान लगाया लेकिन कुछ साल बाद वह गांव पहुंचे। उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी।
तभी उनके जीवित होने का पता चला। इससे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई थी। वनवास के बाद भगवान राम की अयोध्या वापसी जैसी माहौल था। इस खुशी में ग्रामीणों ने उनका जोरदार स्वागत किया। जेल से आने के बाद उनकी शादी हुई था। करीब 66 साल की उम्र में अक्तूबर 1986 में उनका निधन हुआ था।
उन्होंने आजीवन भाईचारा निभाया। इसके लिए गांव और क्षेत्र में गरीबों की मदद करने सहित समाजसेवा के कई कार्य किए थे। जैसा कि स्वतंत्रता सेनानी लालचंद की पत्नी निंबो देवी और बड़े भाई के पोते राजकुमार बगड़िया ने बताया। संवाद
सेनानी को मिले कई ताम्रपत्र और सम्मान पत्र
स्वतंत्रता सेनानी लालचंद को आजाद हिंद फौज के प्रमाणपत्र से सम्मानित किया गया। उनके नाम से कई ताम्र पत्र मिले। इनमें से सबसे पहला ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध स्वतंत्रता सेवा के उपलक्ष्य में पंजाब सरकार से मिला। दूसरा ताम्रपत्र स्वतंत्रता के 25वें वर्ष पर राष्ट्र की ओर से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1972 में भेंट किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शताब्दी 1885 से 1985 के अवसर पर हरियाणा राज्य की ओर से 15 अगस्त 1985 को सम्मान पत्र से सम्मानित किया गया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्म शताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल ने 21 अक्तूबर 1997 को ताम्रपत्र सम्मानित किया था। स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी निंबो देवी को सिर्फ पेंशन मिल रही है। उनके परिवार का कहना है कि स्वतंत्रता सेनानियों को सरकार ने जमीन या प्लॉट दिया था लेकिन उन्हें इसका पता नहीं है।
हालांकि गांव में स्थित सरकारी स्कूल का नाम इसी वर्ष जनवरी से स्वतंत्रता सेनानी लालचंद राजकीय कन्या उच्च विद्यालय रखा गया। परिवार की मांग है कि उनके पोतों को सरकारी नौकरी दी जाए। गांव में बने शहीद स्मारक में भी उनकी प्रतिमा लगाई जाए ताकि आने वाली पीढ़ी इतिहास जान सके।
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सिंगापुर की जेल में बंद रहे थे हिसार के लांधड़ी के लालचंद बगड़िया, नेता जी सुभाष चंद्र बोस से थे प्रेरित