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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक अहम मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के तहत सामुदायिक मध्यस्थता को अब तक लागू क्यों नहीं किया गया
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यह कानून लोगों के आपसी झगड़े जैसे मोहल्ले, गांव या समाज में होने वाले विवादों को बिना कोर्ट जाए निपटाने की व्यवस्था करता है। हाईकोर्ट की खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति सुमीत गोयल ने इस मामले में सुनवाई करते हुए अगली तारीख 5 अगस्त तय की है और सभी पक्षों को नोटिस जारी करने के आदेश दिए हैं।
जानिए पूरा मामला क्या था
चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा कि हर समाज में पड़ोसियों, रिश्तेदारों और समुदायों के बीच छोटे-मोटे विवाद होते रहते हैं। अगर इन्हें स्थानीय स्तर पर ही बातचीत से सुलझा लिया जाए तो कोर्ट पर बोझ भी कम होगा और समाज में शांति बनी रहेगी। इसके लिए सामुदायिक मध्यस्थता बेहद कारगर उपाय हो सकता है।

कोर्ट ने कहा कि गांवों में खाप पंचायतें पहले से ही सामाजिक विवादों को सुलझाती रही हैं। इनका अपने समुदाय में बड़ा प्रभाव है। अब इन्हें कानून के दायरे में लाकर विधिवत मध्यस्थ की भूमिका दी जा सकती है।
कानून बना लेकिन अब तक लागू नहीं
कोर्ट ने यह भी बताया कि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 की धारा 43 और 44 में सामुदायिक मध्यस्थता का प्रावधान है, लेकिन अब तक इसे जमीन पर लागू नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा कि ये एक सस्ता और तेज़ तरीका है जिससे झगड़े कोर्ट जाने से पहले ही निपट सकते हैं।
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सामुदायिक मध्यस्थता लागू न होने पर हाईकोर्ट सख्त: कहा- कानून तो बना, लेकिन लागू क्यों नहीं किया, चंडीगढ़ समेत पंजाब व हरियाणा से मांगा जवाब – Chandigarh News