GST On Printing Paper: हाल में जीएसटी रिफॉर्म के बाद उसे पहले के चार स्लैब की जगह पर अब दो स्लैब कर दिया गया है, जो 22 सितंबर से प्रभावी हो जाएगा. इसके बाद अधिकतर चीजों के दाम कम हो जाएंगे. लेकिन जीएसटी काउंसिल के फैसले से किताबों की कीमत बढ़ सकती है. इसकी खास वजह ये है कि जिस कागज पर किताबें छपती हैं, उस पर जीएसटी की दरें 12 प्रतिशत से अब बढ़कर 18 प्रतिशत कर दी गई हैं.
महंगी हो सकती है किताबें
किताब के प्रकाशकों की मानें तो सरकार के इस कदम का सीधा बोझ छात्रों के पॉकेट पर पड़ने वाला है क्योंकि किताब की कीमतें अब महंगी होने जा रही हैं. हालांकि, सरकार के इस कदम के विरोध में किताब के कारोबारियों ने लेटर लिखकर अपनी चिंताएं सरकार के सामने रखी हैं.
जीएसटी काउंसिल की बैठक में एक तरफ जहां स्टेशनरी के सामान जैसे नक्शे, नोटबुक, रबर, रजिस्टर, पेंसिल और ड्राइंग पर पूरी तरह से जीएसटी खत्म कर दिया गया है. इन सामानों पर पहले 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी चार्ज किया जाता था.
लेकिन, जिन कागजों पर किताब छपती है, उन पर जीएसटी की दरें 12 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत कर दी गई हैं. इसके बाद यह माना जा रहा है कि किताबें प्रिंटिंग के बाद महंगी हो जाएंगी.
शैक्षिक महासंघ ने उठाया मुद्दा
भारतीय शैक्षिक महासंघ की मानें तो पाठ्यपुस्तकें सरकार की कोशिश के अनुरूप सस्ती नहीं हो पाएंगी क्योंकि जीएसटी स्लैब में विसंगतियां मौजूद हैं, जिसकी वजह से इनके दाम बढ़ सकते हैं. महासंघ के प्रेसिडेंट गोपाल शर्मा और महासचिव राजेश गुप्ता की मानें तो स्टेशनरी और अभ्यास पुस्तकों को जरूर जीएसटी में राहत दी गई है, लेकिन उन किताबों को ऊंचे स्लैब में रखा गया है, जो पाठ्यपुस्तकों के काम आएंगी.
प्रकाशन जगत के लोगों की मानें तो किसी भी पाठ्यपुस्तक की लागत का सिर्फ 60 से 70 प्रतिशत हिस्सा कागजों पर खर्च होता है. ऐसी स्थिति में अगर छपाई की लागत बढ़ती है तो उसके बाद किताबों की कीमत भी जरूर बढ़ जाएगी.
Source: https://www.abplive.com/business/gst-on-printing-paper-for-book-will-be-charge-to-18-percent-resulting-costlier-of-books-3009057