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सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में चीनी प्रोडक्ट की भरमार: एनिमे-गेमिंग कल्चर में शामिल, 20 साल आगे चलने वाला जापान कैसे पिछड़ा Today Tech News

सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में चीनी प्रोडक्ट की भरमार:  एनिमे-गेमिंग कल्चर में शामिल, 20 साल आगे चलने वाला जापान कैसे पिछड़ा Today Tech News

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जगह-जगह लगे बड़े-बड़े रंगीन बोर्ड, इन पर जापान के आर्ट स्टाइल में बने रंग-बिरंगे एनिमे कैरेक्टर। ये सब आंखों को चौंकाता है। चारों ओर चमकती नियॉन लाइटें और हाई-टेक माहौल। पहली नजर में यह जगह अमेरिका के लास वेगास जैसी लगती है। ये टोक्यो का मशहूर अकीहाब

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जापान की कवरेज के दौरान दैनिक भास्कर अकीहाबारा मार्केट पहुंचा। इस मार्केट में खरीदारों के अलावा हजारों टूरिस्ट भी हर रोज आते हैं। हम अकीहाबारा स्टेशन से निकलते ही सीधे ‘बिक कैमरा’ में पहुंचे। ये इस बाजार का सबसे पॉपुलर स्टोर है। 7 मंजिल में फैले इस स्टोर की हर मंजिल पर टेक्नोलॉजी का अलग चेहरा दिखता है।

अकीहाबारा मार्केट में इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट के बड़े-बड़े शोरूम हैं। यहां लोग अनूठे और सस्ते गैजेट्स की तलाश में आते हैं।

जापान के बाजार में अमेरिकी और चीनी ब्रैंड्स हावी स्टोर में घुसते वक्त लग रहा था कि यहां वही सस्ते या वक्त से आगे की टेक्नीक वाले जापानी प्रोडक्ट होंगे, जिनके बारे में हम सुनते आए हैं। हालांकि ऐसा नहीं है। यही सबसे चौंकाने वाली बात थी। यहां कोई भी सस्ता जापानी प्रोडक्ट नहीं है। एपल, सैमसंग, हुवावे, फिटबिट, गार्मिन, JBL जैसी विदेशी कंपनियों के प्रोडक्ट ज्यादा दिखते हैं। अफोर्डेबल या सस्ता सामान चीनी ब्रैंड्स का ही है।

मासाहिको ओहनिशी यहां कई साल से स्टोर चला रहे हैं। वे कहते हैं, ‘दुनिया में शायद ही कोई ऐसा गैजेट हो, जो यहां न मिले। अकीहाबारा अब सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स तक सीमित नहीं रह गया है। ये अब जापानी कॉमिक्स मांगा, एनिमे और गेमिंग कल्चर का भी सेंटर बन चुका है।

अकीहाबारा में 600 से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक्स शॉप हैं। कई तो 6 से 8 मंजिल ऊंचे शोरूम हैं। योदोबाशी कैमरा, टोक्यो पीसी और बिक कैमरा जैसे नाम यहां की पहचान हैं।’

अकीहाबारा मार्केट में विदेशी प्रोडक्ट के कई शोरूम हैं। ज्यादातर प्रोडक्ट अमेरिकी और चीनी कंपनियों के हैं।

अकीहाबारा मार्केट में विदेशी प्रोडक्ट के कई शोरूम हैं। ज्यादातर प्रोडक्ट अमेरिकी और चीनी कंपनियों के हैं।

फैन, हेडफोन, घड़ियों में चीनी प्रोडक्ट की भरमार अकीहाबारा मार्केट में ज्यादातर खरीदार टूरिस्ट होते हैं। हैरानी की बात ये है कि अकीहाबारा का सस्ता बाजार अब चीनी प्रोडक्ट से भर गया है। यहां के बाजार चीनी इलेक्ट्रॉनिक फैन, ब्लूटूथ हेडफोन, घड़ियों जैसे प्रोडक्ट से भरे पड़े हैं।

जापान के लोकल लोग मांगा फैन या गेमिंग के दीवाने हैं। यहां एक से बढ़कर गेमिंग कंसोल एक मिल जाएंगे। यह इलेक्ट्रॉनिक मार्केट एक कल्चर की तरह है, जहां टेक्नोलॉजी से ज्यादा आर्ट और फैंटेसी एक साथ दिखती है।

20 साल आगे चलने वाला जापान कैसे पीछे रह गया जापान के मार्केट में अमेरिकी और चीनी कंपनियों का दबदबा कैसे हो गया, ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट में ये कैसे पिछड़ता गया, इनोवेशन को लेकर अभी क्या स्थिति है, इस पर हमने ग्लोबल टेक्नोलॉजी मार्केट रिसर्च फर्म काउंटर पॉइंट के रिसर्च डायरेक्टर मार्क आइंस्टीन से बात की।

सवाल: ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट में जापान क्यों पिछड़ गया? जवाब: इसकी वजह साउथ कोरिया और चीन की कंपनियां हैं। इन कंपनियों ने 1990 के दशक में ऐसे प्रोडक्ट बनाने शुरू किए जो क्वालिटी में भले ही कमजोर थे, लेकिन इनकी कीमत काफी कम थी। यहीं से जापान का पिछड़ना शुरू हुआ। इसके बाद सैमसंग और एलजी जैसे साउथ कोरियाई ब्रांड दुनियाभर में बढ़ते गए। बाद में सस्ती चीनी ब्रांड के प्रोडक्ट मिलने लगे।

चीन के वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में शामिल होने के बाद अमेरिका और यूरोप की कंपनियों ने भी चीन में प्रोडक्शन शुरू कर दिया। जापान के ऑटोमोबाइल सेक्टर ने अमेरिका में प्रोडक्शन शुरू कर दिया। इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर ऐसा नहीं कर पाया। इसके बाद एपल ने हाई क्वालिटी के पर्सनल कंप्यूटर और स्मार्टफोन बाजार में नया कॉम्पटीशन शुरू कर दिया।

सवाल: जापान 1980–90 के दशक में टेक पावरहाउस था, फिर क्या हुआ? जवाब: जापान के इस तरह पिछड़ने की बड़ी वजह इंटरनेट है। विश्वयुद्ध के बाद बढ़ती मैन्युफैक्चरिंग के दौर में जापान हार्डवेयर पर फोकस कर रहा था। यह स्ट्रैटजी तब तक बेहतर रही, जब तक इंटरनेट नहीं आया था।

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जापान ने शुरू में ऑनलाइन सॉल्यूशन पर काम किया, लेकिन ग्लोबल लेवल पर नहीं। इससे इंटरनेट ईको सिस्टम अलग-थलग पड़ गया। इसे जापान में गैलापागोस कहते हैं, जैसे गैलापागोस द्वीपों पर कुछ अनोखे जीव, सिर्फ वहीं पाए जाते हैं।

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सवाल: क्या जापान इनोवेशन में पीछे है? जवाब: जापान की गिनती आज भी टॉप के इनोवेटिव देशों में होती है। यह रोबोटिक्स, डीप टेक, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमेटिव इंडस्ट्री में काफी आगे है। हालांकि, कंपनियां इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ रही हैं। उनका बजट भी कम है।

सवाल: क्या जापानी ईकोसिस्टम में कोई बदलाव होना चाहिए? जवाब: यहां कॉर्पोरेट टैक्स को कम करने की जरूरत है। स्टार्टअप को सपोर्ट किया जाना चाहिए। सबसे जरूरी एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की जरूरत है। यहां अंग्रेजी और आईटी पर जोर दिया जाए। विदेशी कंपनियों के साथ ज्यादा मिलकर काम करने की अप्रोच की जरूरत है।

जापानी प्रोडक्ट दुनिया के बाजार में कम हुए, इनोवेशन क्यों धीमा पड़ा

1. साउथ कोरिया और चीन कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक सेगमेंट में बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे। उनके मुकाबले सख्त कॉपीराइट नियम और भाषा की बाध्यता से जापान पिछड़ता गया।

2. सॉफ्टवेयर के सेक्टर में जापान कभी दूसरे देशों का मुकाबला नहीं कर पाया। दुनिया के मुकाबले वहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर की सैलरी भी कम रही।

3. जापान ने स्टार्टअप कल्चर को देर से अपनाया। जापान में नौकरी के लिए बड़ी कंपनियों को सम्मान से जोड़ा गया। अब यह कल्चर तेजी से बदल रहा है।

4. यहां मैन्युफैक्चरिंग की रफ्तार लंबे समय तक धीमी रही। समय पर फैसले नहीं लिए गए और उम्र के आधार पर वेतन देने की परंपरा रही। काबिलियत पर टिका सिस्टम बहुत धीमे तरीके से आगे बढ़ा।

VCR से समझिए जापान क्यों पिछड़ा एक वक्त था जब पूरी दुनिया में जापान से VCR यानी वीडियो कैसेट रिकॉर्डर जाते थे। अमेरिका में VCR बनता नहीं था। यूरोप की कंपनियां क्वालिटी और कीमत में जापानी कंपनियों का मुकाबला नहीं कर पाती थीं।

1980 के दशक में जापानी कंपनियां जैसे सोनी, पेनासॉनिक JVC, और शार्प हर साल लाखों VCR बेचती थीं। वे 1990 के दशक में उभरी एनालॉग जैसी डिजिटल तकनीकों से मुकाबला नहीं कर सकीं।

जापानी कंपनी फुनाई ने अपना पहला VCR 1983 में बनाया था। एक वक्त ये कंपनी हर साल डेढ़ करोड़ VCR बेचती थी। इस कंपनी ने 2016 में VCR का प्रोडक्शन बंद कर दिया। उससे काफी पहले 2002 में सोनी ने VCR बेचना बंद कर दिया था।

2000 का दशक आते–आते डिजिटल तकनीक में जापान पिछड़ा और दुनिया में एक से बढ़कर एक डिजिटल डिवाइस बनने लगे। टेप रिकॉर्डर और वॉकमैन के साथ भी ऐसा ही हुआ। इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि जापान के लोगों को अपनी इंजीनियरिंग पर गर्व था। उन्होंने समय रहते नई तकनीक को जगह नहीं दी।

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