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5 घंटे पहले
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सना मारिन फिनलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री
रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कराने के लिए अमेरिका की पहल को देखते हुए अब यूरोप को भी आगे आने की जरूरत है। यूरोपीय नेताओं को ताकत दिखाने और अपनी सुरक्षा दूसरे के हवाले करने की मुश्किलों के बीच चुनाव करना है। शांति वार्ता से युद्ध के मैदान की तस्वीर सामने आएगी। अगर रूस को सैनिक कामयाबी का भरोसा होगा तो उसके सामने बातचीत करने की कोई वजह नहीं होगी।
यूक्रेन के मजबूत स्थिति में होने पर रूस के युद्ध बंद करने की अधिक संभावना रहेगी। यदि यूरोपीय देश अपनी खुद की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत नहीं बनाते हैं तो समझौते के बाद भी उन पर भविष्य में हमले होने की आशंका रहेगी। शांति वार्ता में अगर यूरोप प्रमुख भूमिका अदा करना चाहता है तब उसे फौरन यूक्रेन की फौजी सहायता बढ़ा देना चाहिए।
यूरोप को इस खतरनाक धारणा से पीछा छुड़ाना होगा कि वह कमजोर है। उसे ऐसा बर्ताव बंद करना होगा। यूरोप के नाटो सदस्यों की कुल जीडीपी लगभग 200 लाख करोड़ रुपए है। यह रूस से दस गुना अधिक है। रूस और उसके गरीब सहयोगी देश यूक्रेन को पश्चिमी देशों की मदद से 40% अधिक धन यूक्रेन के खिलाफ खर्च कर रहे हैं। यूक्रेन को रूस की बराबरी पर खड़ा करने का खर्च अनुमान से कम होगा।
टोनी ब्लेयर इंस्टीट्यूट की नई रिसर्च के अनुसार यूक्रेन को हर साल 3.47 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त फौजी मदद युद्ध में रूस के संसाधनों का मुकाबला करने के लिए काफी है। यह यूरोपीय नाटो देशों के जीडीपी का सिर्फ 0.2% है। युद्ध में हुए नुकसान और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को देखते हुए रूस के लिए युद्ध जारी रखना फौजी और आर्थिक दृष्टि से विनाशकारी होगा।
ऐसी स्थिति में यूक्रेन और यूरोप की अनुकूल शर्तों पर रूस को बातचीत की टेबल पर लाना संभव होगा। यह केवल यूक्रेन का साथ देने का मामला नहीं है। यह यूरोप के हित में है। रूस के खिलाफ यूक्रेन को मजबूत करने से यूरोपीय देशों की सिक्योरिटी बेहतर होगी।
यूक्रेन को सहारा देने के लिए हमारी डिफेन्स इंडस्ट्री में भारी निवेश से भविष्य में समूचा यूरोप सुरक्षित होगा। यूरोप ऐसा नहीं करता है तो वह अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी से पीछे हट रहा होगा। मुश्किल दौर में फंडिंग को लेकर राजनीति के जाल में फंसना आसान है। लेकिन यह भूल होगी।
यूरोपियन यूनियन ने कोविड-19 के बाद आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिए 72 लाख करोड़ रुपए से अधिक के बॉन्ड जारी किए थे। ग्लोबल वित्तीय संकट के दौर में यूरोपीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए भारी धन जुटाया गया था। इस वक्त हमारे सामने ज्यादा बड़ी चुनौती है। नाटो के बिना भी यूक्रेन यूरोपीय सिक्योरिटी इंफ्रास्ट्रक्चर का हिस्सा है।
रूस को भारी नुकसान
पिछले छह माह में रूस को सीरिया में मुंह की खाना पड़ी है। वह कुर्स्क क्षेत्र से यूक्रेन की तीन ब्रिगेड को खदेड़ नहीं पा रहा है। यूक्रेन में कुछ किलोमीटर जमीन पर कब्जा करने के लिए उसके दो लाख सैनिक मारे गए या घायल हुए हैं। पिछले साल रूस को हर किलोमीटर पर 4 हजार से अधिक सैनिकों का नुकसान उठाना पड़ा है।
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सना मारिन का कॉलम: यूरोप के लिए अब अपनी ताकत दिखाने का समय