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सऊदी अरब में 50 साल बाद बंद हुआ कफाला: 1.3 करोड़ प्रवासी मजदूरों को फायदा, 5 देशों में अभी भी यह सिस्टम मौजूद Today World News

सऊदी अरब में 50 साल बाद बंद हुआ कफाला:  1.3 करोड़ प्रवासी मजदूरों को फायदा, 5 देशों में अभी भी यह सिस्टम मौजूद Today World News

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रियाद5 मिनट पहले

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एआई जनरेटेड इमेज

सऊदी अरब ने 70 साल पुरानी कफाला सिस्टम को आधिकारिक तौर पर खत्म कर दिया है। एपी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बदलाव का ऐलान जून 2025 में ही कर दिया गया था, लेकिन अब ये आधिकारिक तौर पर खत्म कर दिया गया है।

कफाला सिस्टम के खत्म होने से 1.3 करोड़ से ज्यादा विदेशी मजदूरों को फायदा होगा। इन मजदूरों में ज्यादातर लोग भारत, बांग्लादेश, नेपाल और फिलीपींस से आते हैं।

सऊदी अरब ने कफाला सिस्टम खत्म कर दिया है लेकिन मिडिल में UAE, कुवैत, ओमान, बहरीन और जॉर्डन जैसे देशों में अभी भी यह सिस्टम मौजूद है।

मजदूरों पर कंट्रोल के लिए बना कफाला

कफाला शब्द, कफील से बना है। कफील का मतलब होता है स्पॉन्सर या जिम्मेदार व्यक्ति। यानी वह व्यक्ति जो किसी विदेशी मजदूर के रहने और काम करने के लिए जिम्मेदार होता है।

1950 के दशक में खाड़ी के देशों में तेल उद्योग तेजी से बढ़ रहा था। तेल की मांग बहुत बढ़ रही थी, और इन देशों में स्थानीय लोगों की संख्या कम थी। इसलिए उन्हें बहुत सारे विदेशी मजदूरों की जरूरत थी।

विदेशी मजदूरों के आने-जाने और काम करने को नियंत्रित करना भी जरूरी था। इसी लिए कफाला सिस्टम बनाया गया था। इसमें कफील को बहुत ज्यादा ताकत दे गई।

कफाला सिस्टम में क्या दिक्कतें हैं

जब कोई मजदूर इन देशों में काम करने आता है, तो वह कफाला सिस्टम के तहत ही एंट्री करता है, और उसके ऊपर वहां के नियम और कानून लागू होते हैं।

कफील तय करता है कि मजदूर क्या काम करेगा, कितने घंटे काम करेगा, उसकी सैलरी कितनी होगी और वह कहां रहेगा।

कफील की अनुमति के बिना नौकरी नहीं बदल सकते, देश नहीं छोड़ सकते थे, और अधिकारियों से सीधे शिकायत नहीं कर सकते थे। इस वजह से मजदूर अक्सर कफील के कंट्रोल में फंस जाते थे।

मानवाधिकार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) कफाला सिस्टम की दशकों से कड़ी आलोचना करते रहे थे और इसे “आधुनिक गुलामी” कहते थे, क्योंकि इस व्यवस्था ने श्रमिकों के सबसे बुनियादी अधिकारों को छीन लिया था और जबरन श्रम तथा मानव तस्करी को बढ़ावा दिया था।

कफाला सिस्टम की 3 बड़ी दिक्कतें

नौकरी बदलने पर पाबंदी: अगर मालिक उनके साथ बुरा व्यवहार करता था, कम वेतन देता था, या उनसे 18-18 घंटे काम कराता था, तब भी वे आसानी से नौकरी छोड़कर दूसरी जगह काम नहीं ढूंढ़ सकते थे। उन्हें नया काम शुरू करने के लिए अपने कफील की इजाजत लेना जरूरी होता था।

अगर कोई मजदूर बिना इजाजत के नौकरी छोड़ता था, तो उसे “अवैध निवासी” माना जाता था और उसे गिरफ्तार किया जा सकता था।

देश छोड़ने पर रोक: मजदूर देश छोड़कर अपने घर भी नहीं जा सकते थे, यहां तक कि पारिवारिक आपातकाल में भी नहीं। उन्हें देश से बाहर जाने के लिए अपने नियोक्ता से एक्जिट वीजा मंजूर कराना होता था, लेकिन मालिक अक्सर मना कर देते थे, जिससे कर्मचारी बंधक बने रहते थे।

पासपोर्ट जब्त करना: मजदूरों को कैदी जैसा बनाने के लिए, कफील अक्सर उनके पासपोर्ट ले लेते थे। पहचान पत्र न होने और यात्रा का कोई साधन न होने के कारण वे सचमुच फंस जाते थे।

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