in

संजय कुमार का कॉलम: हम बच्चों की पढ़ाई में अंग्रेजी की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं Politics & News

संजय कुमार का कॉलम:  हम बच्चों की पढ़ाई में अंग्रेजी की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं Politics & News

[ad_1]

  • Hindi News
  • Opinion
  • Sanjay Kumar’s Column We Cannot Ignore English In Children’s Education

22 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार

नए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क (नेशनल करिकुलम फ्रैमवर्क या एनसीएफ) में क्षेत्रीय भाषाओं में बु​नियादी शिक्षा देने पर जोर दिए जाने का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन जिस वैश्वीकृत दुनिया में हम आज रह रहे हैं, उसकी जरूरतों को देखते हुए अंग्रेजी में शिक्षा प्रदान करने पर भी पर्याप्त ध्यान देना जरूरी है।

भले ही हम अंग्रेजी को बाहरी भाषा बताकर उसकी आलोचना करते हों, लेकिन हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में यह बेहद जरूरी होती जा रही है। सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक प्रगति में अंग्रेजी की महत्ता देखते हुए अब इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भारतीय युवा इस भाषा को न केवल रोजगार, बल्कि व्यावसायिक और सामाजिक तौर पर भी महत्वपूर्ण मानते हैं।

एनसीएफ इस बात पर जोर देता है कि स्कूलों में साक्षरता की पहली भाषा (आर-1) आदर्श तौर पर विद्यार्थी की मातृभाषा या एक जानी-पहचानी क्षेत्रीय/राज्यभाषा होनी चाहिए, क्योंकि इससे विद्यार्थियों का भाषाई, सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास होगा।

वो बेहतर ढंग से पढ़ाई कर पाएंगे। यदि संसाधनों की कमी, कक्षाओं की विविधता और किसी बोली की मानक लिपि का अभाव होने जैसी अन्य व्यावहारिक समस्याएं आती हों तो आर-1 के तौर पर राज्यभाषा का उपयोग किया जा सकता है।

विद्यार्थी जब तक किसी दूसरी भाषा में बुनियादी साक्षरता हासिल ना कर लें, उनके लिए निर्देशों का माध्यम आर-1 ही रहनी चाहिए। यानी जोर इस बात पर है कि विद्यार्थी दो भाषाओं (आर-1 और आर-2) को भली प्रकार से समझने लग जाएं।

एनसीएफ के एकीकृत और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सभी स्कूलों को एक इम्प्लीमेंटेशन कमेटी बनानी है, जो विद्यार्थियों की मातृभाषा की मैपिंग, भाषा-संसाधनों और पाठ्यक्रम में फेरबदल के लिए जिम्मेदार होगी। गर्मी की छुट्टियां खत्म होने तक सभी स्कूलों को पाठ्यक्रम में फेरबदल का काम पूरा कर लेना है, ताकि निर्देशों की भाषा के तौर पर आर-1 का उपयोग और जरूरत पड़ने पर सही तरीके से आर-2 (मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा के अलावा दूसरी वैकल्पिक भाषा) का प्रयोग किया जा सके।

जुलाई 2025 में फ्रेमवर्क का पालन शुरू होने से पहले शिक्षकों का प्रशिक्षण भी पूरा हो जाना चाहिए। स्कूल चाहें तो पाठ्यक्रमों में बदलाव, संसाधनों की खरीद आदि के लिए कुछ अतिरिक्त समय ले सकते हैं, लेकिन ध्यान रखना होगा कि बेवजह देरी ना हो और मासिक रिपोर्ट समय से भेजी जा सकें।

इसमें संदेह नहीं कि एनसीएफ को बहुत सावधानीपूर्वक विकसित किया गया होगा, इसके बावजूद यह नौकरी की तलाश कर रहे भारतीय युवाओं की आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं है। लोकनीति-सीएसडीएस की ओर से 2016 में 15 से 33 वर्ष के युवाओं पर किए गए एक सर्वे में 62 प्रतिशत युवाओं ने स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को महत्वपूर्ण माना, 23 प्रतिशत ने नहीं माना और 15 प्रतिशत ने कोई राय नहीं दी।

2021 के एक अन्य सर्वे में 38 प्रतिशत युवाओं ने माना कि नौकरी तलाशने में अंग्रेजी बोलने की क्षमता का महत्व है। 35 प्रतिशत ने इसे ​थोड़ा जरूरी माना, जबकि 18 प्रतिशत ने माना कि यह कतई महत्वपूर्ण नहीं है।

अंग्रेजी को लेकर भारतीय युवाओं की सोच में अब भी शायद ही कोई बदलाव हुआ हो। हाल के एक सर्वे में भी 46 प्रतिशत युवाओं ने माना है कि नौकरी तलाशने में अंग्रेजी का ज्ञान बहुत जरूरी है। 31 प्रतिशत कहते हैं कि यह किसी हद तक जरूरी है। सिर्फ 11 प्रतिशत मानते हैं कि यह बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं और 5 प्रतिशत इस मत के बिल्कुल खिलाफ हैं।

भारतीय युवा अंग्रेजी को ना सिर्फ जॉब-मार्केट के लिए बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा और आत्मविश्वास के लिए भी जरूरी मानते हैं। एक सर्वे के अनुसार 23 प्रतिशत युवाओं ने माना है कि वे अंग्रेजी ना बोल पाने को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं।

25 प्रतिशत का कहना है कि उन्हें इससे थोड़ी चिंता होती है। 32 प्रतिशत कहते हैं कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अंग्रेजी नहीं बोल पाते, जबकि 17 प्रतिशत ने बताया कि इस बात की चिंता तो होती है, लेकिन ज्यादा नहीं।

इन सर्वेक्षणों में भारतीय युवाओं द्वारा जताई गई राय को देखें तो यह साफ है कि बड़ी संख्या में भारतीय युवा अंग्रेजी को अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण मानते हैं। यह सही है कि किसी के लिए भी हिंदी या उसकी कोई भी अन्य क्षेत्रीय मातृभाषा महत्वपूर्ण है, लेकिन सावधानी से विचार करना होगा कि क्या अंग्रेजी की अनदेखी की कीमत पर ऐसा होना चाहिए? इससे भी ज्यादा जरूरी है कि अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं में एक संतुलन बनाया जाए।

इसमें संदेह नहीं है कि किसी भी युवा छात्र के लिए हिंदी या उसकी क्षेत्रीय मातृभाषा अधिक महत्वपूर्ण होती है, लेकिन हमें सावधानी से इस पर विचार करना होगा कि क्या अंग्रेजी की अनदेखी की कीमत पर ऐसा होना चाहिए? (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

खबरें और भी हैं…

[ad_2]
संजय कुमार का कॉलम: हम बच्चों की पढ़ाई में अंग्रेजी की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं

Rohtak News: फिजियोथेरेपिस्ट से मिसेज इंडिया बनीं डॉ. रचना भारद्वाज  Latest Haryana News

Rohtak News: फिजियोथेरेपिस्ट से मिसेज इंडिया बनीं डॉ. रचना भारद्वाज Latest Haryana News

Sirsa News: डबवाली नागरिक अस्पताल में चार बेड का आइसोलेशन वार्ड तैयार Latest Haryana News

Sirsa News: डबवाली नागरिक अस्पताल में चार बेड का आइसोलेशन वार्ड तैयार Latest Haryana News