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- Sanjay Kumar’s Column Many Factors Work Behind The Selection Of The Chief Minister
संजय कुमार प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार
दिल्ली की नई मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार विधायक बनी रेखा गुप्ता को चुना जाना आश्चर्य तो जगाता है। लेकिन कई अन्य दावेदारों के बीच उन्हें चुने जाने के तीन मुख्य कारण हैं। पहली बात तो यह कि इस बार दिल्ली विधानसभा में प्रवेश करने वाले नवनिर्वाचित भाजपा विधायकों में एक नहीं, कई दिग्गज थे। एक को दूसरे से ऊपर रखना भाजपा के लिए बहुत कठिन होता। रेखा गुप्ता को जाति के आधार पर दूसरों से ऊपर चुना गया।
दूसरा, पिछले एक दशक के दौरान भाजपा ने कई राज्यों में सरकारें बनाई हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में सिर्फ दो महिलाओं को ही चुना गया था, वह भी कुछ समय पहले। भाजपा के वर्तमान मुख्यमंत्रियों में से एक भी महिला नहीं थी। दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में एक महिला-चेहरा भाजपा के लिए सामाजिक और राजनीतिक रूप से जरूरी हो गया था।
सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि हालांकि सरकार महिला आरक्षण विधेयक पारित करने में कामयाब रही है, लेकिन यह 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले ही लागू हो पाएगा। आम आदमी पार्टी हार के बावजूद महिला मतदाताओं के बीच अधिक लोकप्रिय रही थी। ऐसे में अगले पांच वर्षों में महिला वोटों को लामबंद करने से भाजपा को दिल्ली में अपने राजनीतिक आधार को मजबूत करने में मदद मिलेगी। पार्टी ने एक महिला को मुख्यमंत्री बनाकर ऐसा ही करने का प्रयास किया है।
यह सभी को अच्छी तरह से पता है कि इस बार दिल्ली में भाजपा की ओर से कई दिग्गज नेता निर्वाचित हुए हैं और उन सभी का मुख्यमंत्री पद पर दावा था। उनमें से कुछ बहुत अनुभवी हैं, कई बार सदन के लिए चुने जा चुके हैं। कुछ ने आप के वरिष्ठ नेताओं को पराजित किया है। कुछ ऐसे हैं, जो प्रभावशाली जाति-समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने पार्टी की जीत में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कई दिनों के बाद अंतिम समय में रेखा गुप्ता को चुना जाना बताता है कि इनमें से किसी एक को चुनना आसान नहीं रहा होगा। रेखा गुप्ता के पक्ष में जो बात काम करती दिखी, वो यह थी कि विभिन्न राज्यों में भाजपा के 14 मुख्यमंत्रियों में एक भी महिला मुख्यमंत्री नहीं थी। जिन छह राज्यों में उसके सहयोगी दल (एनडीए गठबंधन) सत्ता में हैं, वहां भी कोई महिला सीएम नहीं थी। जब भाजपा राजस्थान की सत्ता में वापस लौटी, तो वहां भी उसने वसुंधरा राजे सिंधिया के बजाय भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया।
भाजपा महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने का जितना चाहे श्रेय ले, कई राज्यों में सत्ता के बावजूद महिलाओं को मुख्यमंत्री न बनाना महिला मतदाताओं के बीच सकारात्मक संदेश नहीं भेज रहा था। इस अभाव की अब पूर्ति कर ली गई है। देशभर में राजनीतिक दलों को महिला वोटों के महत्व का एहसास हो गया है, क्योंकि अब महिलाएं बड़ी संख्या में मतदान करने आ रही हैं।
भाजपा सहित सभी पार्टियां महिला मतदाताओं को लामबंद करने के लिए कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत करके उन्हें सकारात्मक संदेश देने की कोशिश कर रही हैं। भाजपा कई राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी के प्रति लोगों की नाराजगी के कारण मौजूदा सरकारों को अपदस्थ करने में कामयाब रही है।
इसमें महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में एकजुट करने का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कुछ राज्यों में भाजपा की हाल की बड़ी और कुछ राज्यों में अप्रत्याशित जीत महिला मतदाताओं के बीच भाजपा के व्यापक समर्थन के कारण ही संभव हो पाई है। मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र आदि में बड़ी जीत के लिए महिला मतदाताओं के बीच भाजपा की लोकप्रियता को उचित श्रेय दिया जाना चाहिए।
लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि उपरोक्त सभी राज्यों में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं के बीच भाजपा को बढ़त हासिल थी। यद्यपि भाजपा दिल्ली में आप को आसानी से पराजित करने में सफल रही, लेकिन लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षणों के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि आप को महिला मतदाताओं के बीच छह प्रतिशत अंकों की बढ़त हासिल है।
लगातार चुनावों में भाजपा ने महिला मतदाताओं के बीच अपना समर्थन आधार मजबूत किया, जिससे पार्टी को न केवल सत्ता बरकरार रखने में मदद मिली, बल्कि बड़ी जीत भी दर्ज हुई। भाजपा को दिल्ली में भी ऐसा करने की जरूरत थी, ताकि वहां की राजनीति में उसकी जड़ें वर्तमान की तुलना में कहीं अधिक गहरी हो जाएं। एक महिला को मुख्यमंत्री बनाने से भाजपा को दिल्ली की महिला मतदाताओं के बीच अपना समर्थन आधार मजबूत करने में निश्चय ही मदद मिलेगी।
- भाजपा महिला आरक्षण विधेयक का जितना चाहे श्रेय ले, कई राज्यों में सत्ता के बावजूद महिलाओं को मुख्यमंत्री न बनाना महिला मतदाताओं के बीच सकारात्मक संदेश नहीं भेज रहा था। इस अभाव की अब पूर्ति कर ली गई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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