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संजय कुमार का कॉलम: दिल्ली में स्विंग-वोटर्स पर निर्भर करेंगे चुनावी नतीजे Politics & News

संजय कुमार का कॉलम:  दिल्ली में स्विंग-वोटर्स पर निर्भर करेंगे चुनावी नतीजे Politics & News

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4 घंटे पहले

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संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार

कुछ राज्य ऐसे हैं, जो कुछ ही समय के अंतराल पर होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग परिणाम देते हैं। लेकिन दिल्ली में तो एक के बाद एक होने वाले चुनावों में परिणाम पूरी तरह से उलट जाते हैं।

दिल्ली में जहां भाजपा लोकसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज करती है, वहीं आप भारी बहुमत से विधानसभा चुनाव जीत लेती है। ऐसा एक बार होता तो संयोग माना जा सकता था, लेकिन दो बार हो चुका है। इसका कारण यह है कि दिल्ली में बड़ी संख्या में स्विंग वोटर्स हैं, जो लोकसभा में भाजपा को वोट देते हैं, पर विधानसभा में आप के पीछे लामबंद हो जाते हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव तक दिल्ली में आप लोकप्रिय हो चुकी थी और उसे 32.9% वोट मिले थे, लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। दूसरी ओर, भाजपा ने 46.4% वोटों के साथ सभी 7 सीटें जीत ली थीं। लेकिन जब 2015 में विधानसभा चुनाव हुए तो आप को 54.3% वोट मिले और उसने कुल 70 विधानसभा सीटों में से 67 पर जीत हासिल कर ली।

अगले चुनावों में फिर यही कहानी दोहराई गई। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आप को 18.1% वोट मिले और वह एक भी सीट नहीं जीत सकी। भाजपा 56.5% वोटों के साथ एक बार फिर सभी 7 सीटों पर जीत गई।

​​जब 2020 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए, तो आप को 53.5% वोट मिले और उसने 62 विधानसभा सीटें जीतीं। 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिल्ली को 54.3% वोट मिले और उसने 2014 और 2019 की तरह सभी 7 सीटें जीतकर हैट्रिक पूरी कर ली।

कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाली आप को 24.1% वोट ही मिले। जाहिर है कि दिल्ली में कम से कम 12 से 15% ऐसे स्विंग-वोटर्स हैं, जो दो चुनावों के बीच अपनी राजनीतिक पसंद को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में बदल लेते हैं।

जब दो चुनावों के बीच दो अलग-अलग पार्टियों के लिए वोटरों का झुकाव होता है, तो मान लेना चाहिए कि विभिन्न सामाजिक समूहों के मतदाताओं के बीच भी यह झुकाव अलग-अलग अनुपात में देखा जाएगा। दिल्ली चुनाव में मतदाता का आर्थिक वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षण के साक्ष्य बताते हैं कि 2019 और 2020 के चुनावों के बीच आप के पक्ष में सबसे बड़ा झुकाव गरीब और निम्न आय वर्ग के मतदाताओं का था। 2019 और 2020 के बीच गरीब वर्ग के मतदाताओं में से 40% और निम्न आय वर्ग के मतदाताओं में से 41% मतदाता आप की ओर चले गए, लेकिन अमीर आय वर्ग के मतदाताओं में से 30% ही आप की ओर आए। वहीं भाजपा को विधानसभा चुनाव में सभी आर्थिक वर्ग के मतदाताओं के बीच निगेटिव स्विंग का सामना करना पड़ा।

सर्वेक्षण के निष्कर्ष विभिन्न समुदायों के मतदाताओं के बीच आप के पक्ष में पॉजिटिव स्विंग का संकेत देते हैं, हालांकि अलग-अलग अनुपात में। 2019 और 2020 के चुनावों के बीच आप के पक्ष में सबसे बड़ा झुकाव मुसलमानों (55%), सिख (45%) और दलितों (45%) के बीच देखा गया।

लोकसभा चुनाव में इन समुदायों के वोट आप और कांग्रेस के बीच बंट गए थे क्योंकि कई लोगों ने राष्ट्रीय चुनाव के दौरान कांग्रेस को भाजपा के लिए बड़ी चुनौती के रूप में देखा था। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान जब इन वोटरों को लगा कि मुकाबला केवल आप और भाजपा के बीच है, तो भाजपा को हराने के लिए बड़ी संख्या में आप की ओर अपना रुख कर लिया।

ऐसा नहीं है कि अन्य समुदायों के वोटों में कोई बदलाव नहीं हुआ, 2019 और 2020 के चुनावों के बीच यह सभी समुदायों के बीच आप की ओर स्थानांतरित हो गया। विभिन्न उच्च जाति के मतदाताओं में आप के प्रति पॉजिटिव स्विंग 19-25% के बीच था, जबकि ओबीसी जातियों में यह 30-35% के बीच था।

सर्वेक्षण के निष्कर्षों से यह भी संकेत मिलता है कि 2019 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनावों के बीच आप की ओर युवा मतदाताओं का बड़ा झुकाव देखने को मिला। हालांकि युवा वोटर तभी से आप का समर्थन-आधार बने हुए हैं, जब पार्टी का गठन भी नहीं हुआ था और वह एक सामाजिक आंदोलन हुआ करती थी।

18-25 वर्ष आयु के वोटरों में आप के प्रति पॉजिटिव स्विंग 42% था, 26-35 वर्ष के लोगों में 37% और 56 वर्ष से अधिक के मतदाताओं में 35%। युवा मतदाताओं ने 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान आप को बड़े पैमाने पर समर्थन दिया था, लेकिन उनमें से भी कई ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को वोट दिए।

आप का प्रदर्शन इस पर निर्भर करेगा है कि वह लोकसभा चुनाव के बाद से अपने पक्ष में कितने स्विंग-वोट हासिल कर पाती है। अगर उसे 2015 और 2020 जैसा ही स्विंग मिलता है तो उसके पास जीत की हैट्रिक का अच्छा मौका है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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