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संजय कुमार का कॉलम: ‘इंडिया’ गठबंधन में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है Politics & News

संजय कुमार का कॉलम:  ‘इंडिया’ गठबंधन में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है Politics & News

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6 घंटे पहले

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संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार

इंडिया गठबंधन ने जिस तरह से उपराष्ट्रपति- जो कि राज्यसभा के सभापति भी हैं- को हटाने के लिए एकजुट होकर नोटिस पेश किया, उससे गठबंधन सहयोगियों के बीच मजबूत संबंध का आभास हो सकता है। लेकिन यह केवल एक भ्रम है। हाल के दिनों के राजनीतिक घटनाक्रमों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के बीच दरार बढ़ती जा रही है।

ऐसा नहीं है कि विभिन्न मुद्दों पर उनके बीच पहले ही कोई मतभेद नहीं थे। विचारधाराओं का टकराव और राज्यों के स्तर पर राजनीतिक प्रतिस्पर्धा पहले भी थी। लेकिन विभिन्न मुद्दों पर गठबंधन सहयोगियों के बीच समन्वय और परस्पर संवाद की कमी ने इसे और बढ़ा दिया है।

तमाम मतभेदों के बावजूद, इंडिया के सहयोगी लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा के खिलाफ एक ताकतवर मोर्चा बनाने में कामयाब रहे थे। हां, बंगाल, पंजाब और केरल जैसे कुछ राज्य जरूर अपवाद थे। लेकिन कांग्रेस, टीएमसी, सपा और द्रमुक के अच्छे प्रदर्शन ने भाजपा के खिलाफ विपक्ष के एकजुट संघर्ष की उम्मीदें जगाई थीं।

लेकिन हरियाणा में कांग्रेस की अप्रत्याशित हार और महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की करारी पराजय ने सहयोगियों में उभरते मतभेद के संकेत दिए। अदाणी, संभल और यूपी उपचुनाव परिणामों पर गठबंधन सहयोगियों द्वारा अपनाए गए अलग-अलग रुख ने मतभेद को और बढ़ाने में ही योगदान दिया है।

हरियाणा में भाजपा को हराने में कांग्रेस की असमर्थता ने कुछ इंडिया गठबंधन सहयोगियों- खासकर टीएमसी और सपा के बीच इस विश्वास को मजबूत किया कि कांग्रेस आमने-सामने के मुकाबले में भाजपा से पार नहीं पा सकती है।

विश्वास जगा था कि कांग्रेस आम चुनाव के बाद पुनरुद्धार की राह पर आगे बढ़ रही है। लेकिन हरियाणा में हार, विजेता गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद जम्मू-कश्मीर और झारखंड में खराब प्रदर्शन और महाराष्ट्र में भारी पराजय के बाद यह टूट गया। टीमसी ने अदाणी मुद्दे पर संसद में कांग्रेस के नेतृत्व वाले विरोध-प्रदर्शन से खुद को अलग कर लिया।

टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन ने पार्टी के रुख को व्यक्त करते हुए कहा कि संसद में भाजपा को घेरने की रणनीति में विपक्षी दल एकजुट हैं, लेकिन उनके पास अलग-अलग रणनीतियां हैं। टीएमसी ने संभल मुद्दे पर सपा सहित विभिन्न मुद्दों पर अन्य विपक्षी दलों का समर्थन किया, लेकिन अदाणी मुद्दे पर विरोध-प्रदर्शन में शामिल नहीं होने का फैसला किया।

एक सपा नेता ने कहा, कई दल हमेशा कांग्रेस के पीछे खड़े होकर अपनी चुनावी संभावनाओं को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं क्योंकि कांग्रेस कभी-कभी राहुल गांधी के प्रभाव के कारण किसी एक मुद्दे में उलझ जाती है।

वहीं अन्य दलों को किसानों की मांगों और संभल के मुद्दे को छोड़ने में कोई फायदा नहीं दिखता, क्योंकि यूपी चुनाव सिर्फ दो साल दूर हैं। टीएमसी सांसद काकोली घोष दस्तीदार ने कहा, हम नहीं चाहते कि कोई एक मुद्दा संसद को बाधित कर दे।

समाजवादी पार्टी द्वारा उठाए उत्तर प्रदेश उपचुनावों में विसंगतियों के मुद्दे पर कांग्रेस की चुप्पी पर अखिलेश यादव के समक्ष कई सांसदों ने नाराजगी जताई। एक ने कहा, जब अखिलेश यादव ने अध्यक्ष से समय मांगा और पार्टी के सांसदों और विधायकों को संभल जाने से रोके जाने का मुद्दा उठाया तब कांग्रेस संसद के बाहर अदाणी के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रही थी।

विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी को इस मुद्दे को भी अध्यक्ष के समक्ष उठाना चाहिए था। सांसद ने पूछा, जब सपा ने संसद में संभल हिंसा का मुद्दा उठाया तो कांग्रेस ने जानबूझकर चुप्पी साधी, लेकिन एक दिन बाद राहुल और प्रियंका खुद ही संभल के लिए रवाना हो गए।

इसे कोई क्या समझे? सपा नेतृत्व लोकसभा में फैजाबाद सांसद अवधेश प्रसाद को अग्रिम पंक्ति से हटाने पर कांग्रेस की चुप्पी से भी नाराज है। एक सांसद ने कहा, क्या कांग्रेस प्रियंका के लिए अग्रिम पंक्ति में सीट आरक्षित रखना चाहती है?

सपा की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष अबू आजमी ने हाल ही में घोषणा की कि उनकी पार्टी ने महा विकास अघाड़ी से बाहर रहने का फैसला किया है। ऐसा उन्होंने उद्धव के सहयोगी मिलिंद नार्वेकर द्वारा बाबरी विध्वंस में शामिल लोगों की कथित तौर पर प्रशंसा करने के बाद किया।

इंडिया गठबंधन सहयोगी विभिन्न चुनावों में सीट-बंटवारे के मुद्दे को भी हल नहीं कर पाए हैं। हरियाणा में अगर कांग्रेस ने आप के साथ गठबंधन किया होता तो नतीजे अलग हो सकते थे। अब आप ने साफ कर दिया है कि वह दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी। इस सबसे इं​डिया गठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान लग रहे हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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